Sunday, December 22, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. भारत
  3. राष्ट्रीय
  4. आखिर भारत में इसे क्यों कहा जाता है ‘उड़ता ताबूत’?

आखिर भारत में इसे क्यों कहा जाता है ‘उड़ता ताबूत’?

पचास साल पहले 1963 में भारत के आकाश में पहली बार सुपरसोनिक लड़ाकू विमान मिग-21 की गरज सुनाई दी थी। दरअसल योजना तो अमेरिका से एफ-104 स्टार फाइटर व फ्रांस से मिराज-तीन विमान खरीदने की थी। अमेरिका ने अपना विमान बेचने से मना कर दिया और मिराज-तीन की कीमत

India TV News Desk
Published : May 23, 2017 9:10 IST
MiG-21
MiG-21

नई दिल्ली: भारतीय वायु सेना की रीढ़ की हड्‌डी कहे जाने वाले लड़ाकू विमान मिग 21 को भारत ने रूस से खरीदे थे। रूस में बने ये विमान प्रशिक्षण के दौरान आए दिन क्रैश होते रहे हैं और चौंकाने वाली बात ये है कि खरीदे गए कुल 872 मिग विमानों में से आधे से ज्यादा अब तक दुर्घटनाग्रस्त हो चुके हैं। यही कारण है कि भारत में मिग-21 को 'उड़ता ताबूत' कहा जाने लगा है। इन विमान हादसों में 200 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। बता दें कि वायुसेना सेना के इन विमानों को वायु सेना से धीरे-धीरे हटाने की कवायद शुरू कर चुका है लेकिन अभी तक इन्हें पूरी तरह से हटाया नहीं गया है। (ये भी पढ़ें: भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा स्टेनलेस स्टील उत्पादक बना, जापान को पछाड़ा)

मिग सीरिज के विमान को अचूक मारक क्षमता वाला लड़ाकू विमान माना जाता है। भारतीय वायुसेना की रीढ़ माने जाने वाले मिग श्रेणी के 872 विमान चालीस साल से सेवा दे रहे हैं। वायु सेना के रिकॉर्ड के मुताबिक तकनीकी खराबी के कारण इनमें से अब तक आधे से अधिक 483 विमान क्रेश हो चुके हैं। इसमें 172 पायलट अपनी जान गंवा चुके हैं। रूस से तकनीकी लाइसेंस के आधार पर हिन्दुस्तान एयरोनोटिकल्स लिमिटेड ने मिग-27 विमानों का उत्पादन किया है। इसका लाइसेंस 2012 तक वैध था। इस अवधि तक कुल 188 विमान बनाए जाने का लक्ष्य था।

पचास साल पहले 1963 में भारत के आकाश में पहली बार सुपरसोनिक लड़ाकू विमान मिग-21 की गरज सुनाई दी थी। दरअसल योजना तो अमेरिका से एफ-104 स्टार फाइटर व फ्रांस से मिराज-तीन विमान खरीदने की थी। अमेरिका ने अपना विमान बेचने से मना कर दिया और मिराज-तीन की कीमत बहुत ज्यादा थी। लिहाजा चीन के हमले से दो महीने पहले अगस्त 1962 में सोवियत संघ से मिग-21 विमान खरीदने का समझौता किया गया। पहली मिग-21 स्क्वाड्रन ने 1963 में चंडीगढ़ से शुरुआती उड़ान भरी।

समझौते के तहत सोवियत संघ ने मिग-21 विमान भारत में ही बनाने की टेक्नोलाजी मुहैया कराई। हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स में मिग-21 विमान का निर्माण होने के बाद वायुसेना के लड़ाकू विमान बेड़े में मिग-21 विमानों का पचास फीसद से ज्यादा आधिपत्य हो गया। एक इंजन वाले इस जेट विमान ने पाकिस्तान के खिलाफ 1965 व 1971 में हुए युद्ध में अपनी उपयोगिता भी साबित की।

लेकिन पिछले कुछ सालों में हुए हादसों ने इन विमानों को ‘उड़न ताबूत’ का उपनाम दे दिया गया है। आंकड़े इस बात की पुष्टि भी करते हैं। 1963 से वायुसेना के बेड़े में शामिल हुए आठ सौ से ज्यादा मिग-21 विमानों में से करीब 280 हादसों में ध्वस्त हो चुके हैं।

पुरानी पीढ़ी के मिग-21 विमानों को जरूर हटा दिया गया है। फिर भी करीब दो सौ मिग-21 विमान वायुसेना के बेड़े में सक्रिय है। सौ परिष्कृत मिग-21 विमानों को वायुसेना 2017 तक इस्तेमाल करने वाली है। मिग-21 विमान का तत्कालीन सोवियत संघ से अनुबंध करने की वजह से कूटनीतिक स्तर पर शीतयुद्ध के दौरान भारत को सोवियत खेमे में मान लिया गया। लेकिन इसके अलावा कोई और चारा नहीं था।

1980 के दशक के मध्य में एक मिग-21 विमान खड़ा करने में साढ़े तीन करोड़ रुपए की लागत आती थी जबकि अमेरिका का एफ-104 स्टार फाइटर पहुंच के बाहर था और फ्रांस का मिराज या जगुआर विमान करीब दस गुना ज्यादा महंगा था।

वायुसेना ने शुरुआत तो मिग-21 विमानों से की। यह सिलसिला मिग-23, मिग-25, मिग-27 व मिग-29 विमानों तक पहुंचा। कुल बारह सौ मिग विमान लिए गए जो पूरी क्षमता का 75 फीसद हैं। इनमें से दो तिहाई मिग-21 विमान हैं। हालांकि बाद में ब्रिटेन और फ्रांस से लड़ाकू विमान लिए गए लेकिन आधिपत्य मिग विमानों का ही रहा।

Latest India News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement