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कौन थे रंगा और बिल्ला, जिनका जिक्र करते हुए कपिल सिब्बल ने पी चिदंबरम के लिए जमानत मांगी

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की जमानत के लिए दलील देते हुए उनके वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि चिदंबरम कोई रंगा और बिल्ला की तरह अपराधी नहीं है कि उन्हें जमानत नहीं दी जा सके

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: November 27, 2019 20:34 IST
P Chidambaram- India TV Hindi
Image Source : P CHIDAMBARAM P Chidambaram

नई दिल्ली। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की जमानत के लिए दलील देते हुए उनके वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि चिदंबरम कोई रंगा और बिल्ला की तरह अपराधी नहीं है कि उन्हें जमानत नहीं दी जा सके। कपिल सिब्बल की इस दलील ने 1978 के गीता एवं संजय चोपड़ा के अपहरण और हत्या के मामले को याद दिला दिया जिसमें एक नेवी अधिकारी की बेटी और बेटे का अपहरण और हत्या हुई थी और गुनहगारों का नाम रंगा और बिल्ला था। कुलजीत सिंह उर्फ रंगा और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला नाम के दोनो अपराधियों को इस अपराध के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी और 1982 में दोनों को फांसी दे दी गई थी।  

1978 का गीता और संजय चोपड़ा अपहरण और हत्याकांड ने उस समय दिल्ली सहित पूरे देश को हिला दिया था, उस समय के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने इस मामले में खुद जांच और कार्रवाई के आदेश दिए थे, उस समय की जनता पार्टी सरकार ने इस मामले को जिस तरह से डील किया था उसकी वजह से देशभर में सरकार की आलोचना हुई थी और 1978 के बाद हुए चुनाव में जनता पार्टी को हार का भी सामना करना पड़ा था। रंगा और बिल्ला ने जिन दो बच्चों को मार दिया था उनमें गीता की उम्र उस समय साढ़े 16 वर्ष और संजय की उम्र महज 14 वर्ष थी। 

रंगा और बिल्ला ने नेवी अधिकारी मदन मोहन चोपड़ा के दोनो बच्चों को गीता और संजय चोपड़ा को 26 अगस्त 1978 को फिरौती के लिए अपहरण किया था, लेकिन जब रंगा और बिल्ला को पता चला कि बच्चों के पिता नेवी के अधिकारी हैं तो दोनो बच्चों की हत्या कर दी गई। कुछ रिपोर्ट्स तो यह भी दावा करती हैं कि गीता के साथ दुष्कर्म भी किया गया था। अपहरण के 2 दिन बाद 28 अगस्त 1978 को दोनो बच्चों के शव मिले थे। मामला मीडिया में आया और दिल्ली पुलिस को तेजी से जांच बढ़ानी पड़ी तथा देशभर की पुलिस को रंगा और बिल्ला के बारे में जानकारी दे दी गई और मीडिया में भी उनके फोटो जारी हुए। 8 सितंबर 1978 को दोनो अपराधियों को गिरफ्तार किया गया, उनकी गिरफ्तारी में अखबार में छपी उनकी तस्वीर ने बड़ा योगदान किया, दोनो को आगरा में उस समय गिरफ्तार किया गया था जब दोनो गलती से कालका मेल के उस डिब्बे में चढ़ गए जो सैनिकों के लिए आरक्षित था, एक सैनिक ने अखबार में छपी उनकी फोटो से उनको पहचान लिया और बाद में दोनो को गिरफ्तार कर लिया गया था। 

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