नई दिल्ली: मध्य प्रदेश की सियासत में आए भूचाल का कारण बने ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी शुरुआती पढ़ाई देहरादून के दून पब्लिक स्कूल से की। इसके बाद उन्होंने 1993 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय से बीए (अर्थशास्त्र) में डिग्री ली और फिर 2001 में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से उन्होंने MBA किया। इसके बाद जब वह भारत लौटे तो 2002 में वह गुना लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में जीतकर संसद पहुंच गए। तब उन्हें 4 लाख वोटों से जीत हासिल हुई थी। इसके बाद वह फिर 2004 में भी गुना से ही सांसद बने।
2004 में जीत के साथ शुरू हुए कार्यकाल के दौरान उन्होंने बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, स्वास्थ्य सुविधाओं को विकसित करने और अपने निर्वाचन क्षेत्र में पानी की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर काम किया। फिर 2008 में वह UPA-1 सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री (संचार और आईटी) बने। उन्होंने 500 डाकघरों में प्रोजेक्ट एरो की शुरुआत की, जिसने भारतीय डांक को एक जिम्मेदार संगठन में तब्दील कर दिया। इसके लिए उन्हें पीएम पुरस्कार भी मिला।
2009 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनाव में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने जीत हासिल की। इस बार उन्हें केंद्रीय राज्य मंत्री (वाणिज्य और उद्योग) बनाया गया। इस कार्यकाल में उन्होंने लेन-देन की लागत को कम करने और व्यवसायों के लिए सर्विस-ओरिएंटेड वातावरण बनाने पर ध्यान केंद्रित किया। उनके कार्यकाल के दौरान मंत्रालय की प्रमुख परियोजनाएं- 'ई-बिज़' और 'ई-ट्रेड' पोर्टल्स तथा भारतीय चाय को रीब्रांड करने के लिए टास्क फोर्स थी।
इसके बाद 2012 में उन्हें स्वतंत्र प्रभार देकर केंद्रीय राज्य मंत्री (पावर) बनाया गया। उन्होंने 2014 में भी चुनाव जीता लेकिन 2019 में वह हार गए। अपनी इस पहचान के अलावा उनके पास विरासत में मिली एक और पहचान भी है। ज्योतिरादित्य सिंधिया का ताल्लुक ग्वालियर के राजघराने से है। उनके पिता माधवराव सिंधिया कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता और ग्वालियर के महाराज थे।
(यह पूरी जानकारी ज्योतिरादित्य सिंधिया की आधिकारिक वेबसाइट से ली गई है)