नई दिल्ली: दिल्ली के सीएम और एलजी के अधिकारों पर चल रही सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों ने एक तरह से शर्तों के साथ दिल्ली का बॉस दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को माना है। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जनमत के साथ अगर सरकार का गठन हुआ है, तो उसका अपना महत्व है। तीन जजों ने कहा कि एलजी को दिल्ली सरकार की सलाह से काम करना चाहिए। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि शक्ति एक जगह केंद्रित नहीं हो सकती है लेकिन एलजी ही दिल्ली के प्रसाशक हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एलजी और सीएम को साथ मिलकर काम करना चाहिए और एक-दूसरे को खुद से बढ़कर नहीं समझना चाहिए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि एलजी को यह बात समझनी चाहिए कि मंत्रिमंडल जनता के प्रति जवाबदेह है और एलजी सरकार के हर काम में बाधा नहीं डाल सकते।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने टिप्पणी करते हुए कहा कि संविधान का पालन सभी की ड्यूटी है, संविधान के मुताबिक ही प्रशासनिक फैसले लेना सामूहिक ड्यूटी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य के बीच भी सौहार्दपूर्ण रिश्ते होने चाहिए। राज्यों को राज्य और समवर्ती सूची के तहत संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल करने का हक है।
फैसला सुनाते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि राष्ट्र तब फेल हो जाता है, जब देश की लोकतांत्रिक संस्थाएं बंद हो जाती हैं। हमारी सोसाइटी में अलग विचारों के साथ चलना जरूरी है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा है कि मतभेदों के बीच भी राजनेताओं और अधिकारियों को मिलजुल कर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि असली शक्ति और जिम्मेदारी चुनी हुई सरकार की ही बनती है। उपराज्यपाल मंत्रिमंडल के फैसलों को लटका कर नहीं रख सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा है कि एलजी का काम राष्ट्रहित का ध्यान रखना है, उन्हें इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि चुनी हुई सरकार के पास लोगों की सहमति है।
इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा, 'यह दिल्ली के लोगों और लोकतंत्र की एक बड़ी जीत है।'
वहीं पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कहा, "मुझे लगता है कि जो सुप्रीम कोर्ट ने कहा वह साफ है। अगर दिल्ली सरकार और एलजी साथ काम नहीं कर सकते तो दिल्ली को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। कांग्रेस ने 15 साल तक दिल्ली पर शासन किया पर कोई विवाद नहीं हुआ।"
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रशासनिक मुखिया हैं और कोई भी फैसला उनकी मंजूरी के बिना नहीं लिया जाए। फैसले को चुनौती देने के बाद मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने पिछले साल 2 नवंबर से सुनवाई शुरू की थी। महज 15 सुनवाई में पूरे मामले को सुनने के बाद 6 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रखा गया था। आम आदमी पार्टी की सरकार की ओर से पी चिदंबरम, गोपाल सुब्रह्मण्यम, राजीव धवन और इंदिरा जयसिंह जैसे नामी वकीलों ने दलीलें पेश की थी।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक बार कोर्ट ने कहा था कि पहली नज़र में उपराज्यपाल ही दिल्ली के प्रमुख नज़र आते हैं लेकिन रोज़ाना के कामकाज में उनकी दखलंदाज़ी से मुश्किल आ सकती है। दिल्ली के लोगों के हित मे राज्य सरकार और एलजी को मिल कर काम करना चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि चुनी हुई सरकार के पास कुछ शक्तियां होनी चाहिए, नहीं तो वह काम नहीं कर पाएगी।
वहीं, इस पर केंद्र और उप-राज्यपाल की तरफ से ये दलील दी गई थी कि दिल्ली एक राज्य नहीं है, इसलिए उपराज्यपाल को यहां विशेष अधिकार मिले हैं। जबकि दिल्ली सरकार की दलील थी कि दिल्ली का दर्जा दूसरे केंद्रशासित क्षेत्रों से अलग है। संविधान के अनुच्छेद 239 AA के तहत दिल्ली में विधानसभा का प्रावधान किया है। यहां निर्वाचित प्रतिनिधियों के ज़रिए एक सरकार का गठन होता है। उसे फैसले लेने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। बता दें कि 2015 में दूसरी बार सत्ता में आने के बाद से ही केजरीवाल सरकार और उप-राज्यपाल के बीच अधिकारों की जंग चल रही है।
पहले तत्कालीन एलजी नजीब जंग के साथ केजरीवाल सरकार का विवाद चला, बाद में दिसंबर, 2016 में अनिल बैजल के एलजी बनने के बाद से दोबारा शुरू हुई ये जंग अब तक जारी है। विवादों की बात करें तो मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट के बाद अधिकारियों ने हड़ताल कर दी। घर-घर राशन वितरण की योजना को मंजूरी नहीं देने पर भी विवाद रहा। इसे लेकर पिछले दिनों केजरीवाल ने 3 मंत्रियों के साथ 9 दिन तक उपराज्यपाल सचिवालय में धरना और भूख हड़ताल भी की थी। हालांकि आज तीन साल से चल रही इस जंग का पटाक्षेप हो सकता है।