नई दिल्ली। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी/राकांपा) के महासचिव और प्रवक्ता डीपी त्रिपाठी का लंबी बीमारी के बाद 67 साल की उम्र में आज गुरुवार को दिल्ली के अस्पताल में निधन हो गया। वह कैंसर से पीड़ित थे। डीपी त्रिपाठी का पूरा नाम देवी प्रसाद त्रिपाठी है। डीपी त्रिपाठी का जन्म उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में 29 नवंबर 1952 को हुआ था। राज्यसभा सांसद रहे एनसीपी के दिवंगत महासचिव डीपी त्रिपाठी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष रह चुके हैं। डीपी त्रिपाठी ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी, लेकिन सोनिया गांधी को लेकर कांग्रेस छोड़कर एनसीपी ज्वॉइन कर लिया था। दिवंगत डीपी त्रिपाठी 3 अप्रैल 2012 से 2 अप्रैल 2018 के दौरान महाराष्ट्र से राज्यसभा सासंद रहे हैं।
16 साल की उम्र में ही आ गए थे राजनीति में
इतना ही नहीं डीपी त्रिपाठी ने बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में राजनीति के प्रोफेसर के रूप में पढ़ाया था। बताया जा रहा है कि 16 साल की उम्र में ही डीपी त्रिपाठी ने राजनीति में कदम रख दिया था। वह बहुत ही जल्द पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के सहयोगियों में से एक बन गए थे। हालांकि सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार के साथ ही उन्होंने भी पार्टी छोड़ दी थी। इसके बाद वह वर्ष 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में शामिल हो गए, औप बाद में पार्टी के महासचिव और मुख्य प्रवक्ता बन गए। NCP सुप्रीमो शरद पवार के करीबियों में भी डीपी त्रिपाठी गिने जाते थे।
राज्यसभा से विदाई में दिया था सेक्स के मुद्दे को उठाते दिया था भाषण
पिछले साल 2018 में राज्यसभा से डीपी त्रिपाठी का कार्यकाल समाप्त हुआ था। उस समय अपने विदाई भाषण में डीपी त्रिपाठी ने सेक्स के मुद्दे को उठाते हुए कहा था कि आज तक इस पर संसद में चर्चा नहीं हुई, जबकि गांधी जी और लोहिया ने भी इस पर बात की थी। उन्होंने कहा था कि सेक्स से जुड़ी बीमारियों के चलते मौतें होती हैं, लेकिन इस पर कभी बात नहीं हुई। उन्होंने कहा था कि जिस देश में कामसूत्र जैसी पुस्तक लिखी गई थीं, वहां की संसद में सेक्स जैसे विषय पर कभी बात नहीं की गई। इस पुस्तक को लिखने वाले वात्स्यायन को ऋषि का दर्जा प्राप्त था। अजंता-अलोरा की गुफाएं और खजुराहो के स्मारक इसी पर समर्पित हैं, लेकिन कभी संसद तक में यह मसला नहीं उठा। 1968 में राजनीति में आए डीपी त्रिपाठी को संसद के अच्छे वक्ताओं में शुमार किया जाता था। आपातकाल में आंदोलन के चलते वह जेल में भी रहे थे।