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कौन है किसान आंदोलन के पीछे? ये रही पूरी जानकारी

केंद्र सरकार द्वारा सितंबर माह में लागू किए गए कृषि कानूनों का विरोध करते हुए हजारों की संख्या में किसान, ‘दिल्ली चलो’ के आह्वान पर अपने ट्रैक्टर-ट्रॉलियों और अन्य वाहनों से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पहुंचे हुए हैं।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: December 03, 2020 23:31 IST
कौन है किसान आंदोलन के पीछे? ये रही पूरी जानकारी- India TV Hindi
Image Source : PTI कौन है किसान आंदोलन के पीछे? ये रही पूरी जानकारी

नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा सितंबर माह में लागू किए गए कृषि कानूनों का विरोध करते हुए हजारों की संख्या में किसान, ‘दिल्ली चलो’ के आह्वान पर अपने ट्रैक्टर-ट्रॉलियों और अन्य वाहनों से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली पहुंचे हुए हैं। किसान अपनी मांगों को लेकर आज भी दिल्ली बॉर्डर पर जमे हुए हैं, जिसकी वजह से ट्रैफिक का हाल बेहद बुरा है। हजारों की संख्या में किसान दिल्ली की बाहर बॉर्डरों पर ढेरा डाले हुए हैं और अपनी मांगों को बुलंद कर रहे हैं। सरकार से भी बातचीत चल रही है लेकिन अभी तक कोई रास्ता नहीं निकला है। हर रोज के साथ किसानों की संख्या बढ़ती ही जा रही है और इसी वजह से अब दिल्ली के बॉर्डरों पर ट्रैफिक का बुरा हाल है, आम लोगों को आवाजाही में बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

बॉर्डर पर कहां, कैसा है ट्रैफिक का हाल?

टिकरी बॉर्डर, झड़ौदा बॉर्डर, झटिकरा बॉर्डर पर यातायात पूरी तरह से बंद है। बाडुसराय बॉर्डर को केवल दो पहिया वाहनों के लिए खोला गया है। सिंघु बॉर्डर पर दोनों तरफ से आवाजाही बंद है। इतनी ही नहीं, लामपुर, औचंदी और अन्य छोटी एंट्री को भी बंद कर दिया गया है और लोगों को वैकल्पिक मार्ग अपनाने की सलाह जारी की गई है। वहीं, नोएडा लिंक रोड पर चिल्ला बॉर्डर गौतम बुद्ध द्वार के पास किसानों के जमावड़े के कारण यातायात के लिए बंद है। ट्रैफिक एडवायजरी में लोगों को नोएडा जाने के लिए नोएडा लिंक रोड से बचने और नोएडा के बजाय NH 24 और DND का उपयोग करने की सलाह दी गई है। वहीं, सिग्नेचर ब्रिज से रोहिणी और इसके विपरीत, जीटीके रोड, एनएच 44 और सिंघु बॉर्डर, औचंदी और लामपुर बॉर्डर तक आउटर रिंग रोड से बचने को कहा गया है।

कौन हैं किसान आंदोलन के पीछे?

किसानों से ‘‘दिल्ली चलो’’ का आह्वान अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने किया था और राष्ट्रीय किसान महासंघ तथा भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के विभिन्न गुटों ने इस आह्वान को अपना समर्थन दिया। यह मार्च संयुक्त किसान मोर्चा के तत्वावधान में हो रहा है। राष्ट्रीय किसान महासंगठन, जय किसान आंदोलन, ऑल इंडिया किसान मजदूर सभा, क्रांतिकारी किसान यूनियन, भारतीय किसान यूनियन (दकुंडा), बीकेयू (राजेवाल), बीकेयू (एकता-उगराहां), बीकेयू (चादुनी) इस मोर्चे में शामिल हैं। ज्यादातर प्रदर्शनकारी पंजाब से हैं लेकिन हरियाणा से भी अच्छी खासी संख्या में किसान आए हैं। इनके अलावा उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड से भी ‘दिल्ली चलो’ प्रदर्शन को समर्थन मिलने लगा है, यहां से भी किसान अब दिल्ली पहुच रहे हैं।

किसान आंदोलन के पीछे हैं राजनीतिक ताकतें?

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 28 नवंबर को आरोप लगाया था कि केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ कुछ राजनीतिक दल एवं संगठन किसान आंदोलन को ''प्रायोजित'' कर रहे हैं। खट्टर ने पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पर भी हमला बोला और दावा किया वह इस मसले पर उनसे बातचीत करना चाहते थे और तीन दिन तक उनके कार्यालय में टेलीफोन किया लेकिन उन्होंने इसका कोई उत्तर नहीं दिया। खट्टर ने कहा था कि पंजाब के मुख्यमंत्री के कार्यालय के अधिकारी पंजाब के प्रदर्शनकारी किसानों को निर्देश दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन की शुरूआत पंजाब के किसानों ने की है और कुछ राजनीतिक दल एवं संगठन इसे ''प्रायोजित'' कर रहे हैं। हालांकि, गृहमंत्री अमित शाह ने इस बात से इनकार करते हुए कहा था कि उन्होंने कभी किसानों के आंदोलन के पीछे राजनीतिक लोगों को हाथ नहीं बताया।

क्या है किसानों का डर?

पंजाब और हरियाणा के किसान संगठनों का कहना है कि केंद्र द्वारा हाल ही में लागू किए गये कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी। उनकी दलील है कि कालांतर में बड़े कॉरपोरेट घराने अपनी मर्जी चलायेंगे और किसानों को उनकी उपज का कम दाम मिलेगा। किसानों को डर है कि नए कानूनों के कारण मंडी प्रणाली के एक प्रकार से खत्म हो जाने के बाद उन्हें अपनी फसलों का समुचित दाम नहीं मिलेगा और उन्हें रिण उपलब्ध कराने में मददगार कमीशन एजेंट ‘‘आढ़ती’’ भी इस धंधे से बाहर हो जायेंगे। 

किसानों की मांगें?

अहम मांग इन तीनों कानूनों को वापस लेने की है, जिनके बारे में उनका दावा है कि ये कानून उनकी फसलों की बिक्री को विनियमन से दूर करते हैं। किसान संगठन इस कानूनी आश्वासन के बाद मान भी जायेंगे कि आदर्श रूप से इन कानूनों में एक संशोधन के माध्यम से एमएसपी व्यवस्था जारी रहेगी। ये किसान प्रस्तावित बिजली (संशोधन) विधेयक 2020 को भी वापस लेने पर जोर दे रहे हैं। उन्हें आशंका है कि इस विधेयक के कानून का रूप लेने के बाद उन्हें बिजली में मिलने वाली सब्सिडी खत्म हो जाएगी। 

वह कानून कौनसे हैं, जिनका विरोध हो रहा है?

जिन कानूनों को लेकर किसान विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं वे कृषक उपज व्‍यापार और वाणिज्‍य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम- 2020, कृषक (सशक्‍तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम- 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम- 2020 हैं।

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