नई दिल्ली. तारीख 7 जून... साल 2018... दिन गुरुवार। ये दिन भारत की राजनीति में हमेशा याद रखा जाएगा। दरअसल इस दिन कांग्रेस पार्टी के पूर्व दिग्गज नेता और भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय नागपुर में तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह में शिरकत की थी। प्रणव मुखर्जी की इस कार्यक्रम में शिरकत को कांग्रेस पार्टी के नेताओं की तरफ से आलोचना हुई थी। आइए आपको बताते हैं संघ के उस कार्यक्रम में क्या बोले थे पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी।
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बहुलतावाद एवं सहिष्णुता को भारत की आत्मा ’ करार देते हुए कहा था कि ‘धार्मिक मत और असहिष्णुता’ के माध्यम से भारत को परिभाषित करने का कोई भी प्रयास देश के अस्तित्व को कमजोर करेगा। उन्होंने कहा था, "हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को सभी प्रकार के भय एवं हिंसा , भले ही वह शारीरिक हो या मौखिक, से मुक्त करना होगा।"
मुखर्जी ने देश के हालात का उल्लेख करते हुए कहा था, "प्रति दिन हम अपने आसपास बढ़ी हुई हिंसा देखते हैं। इस हिंसा के मूल में भय, अविश्वास और अंधकार है।"
मुखर्जी ने कहा था कि असहिष्णुता से भारत की राष्ट्रीय पहचान कमजोर होगी। हमारा राष्ट्रवाद सार्वभौमवाद, सह अस्तित्व और सम्मिलन से उत्पन्न होता है। उन्होंने राष्ट्र की परिकल्पना को लेकर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विचारों का भी हवाला दिया। उन्होंने स्वतंत्र भारत के एकीकरण के लिए सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों का भी उल्लेख किया।
प्रणब मुखर्जी ने कहा था, "भारत में हम सहिष्णुता से अपनी शक्ति अर्जित करते हैं और अपने बहुलतावाद का सम्मान करते हैं। हम अपनी विविधता पर गर्व करते हैं।"
उन्होंने प्राचीन भारत से लेकर देश के स्वतंत्रता आंदोलत तक के इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा था कि हमारा राष्ट्रवाद 'वसुधैव कुटुम्बकम्' तथा 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' जैसे विचारों पर आधारित है। उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रवाद में विभिन्न विचारों का सम्मिलन हुआ है। उन्होंने कहा था कि घृणा और असहिष्णुता से हमारी राष्ट्रीयता कमजोर होती है।
मुखर्जी ने राष्ट्र की अवधारणा को लेकर सुरेन्द्र नाथ बनर्जी तथा बालगंगाधर तिलक के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा था कि हमारा राष्ट्रवाद किसी क्षेत्र, भाषा या धर्म विशेष के साथ बंधा हुआ नहीं है। उन्होंने कहा था कि हमारे लिए लोकतंत्र सबसे महत्वपूर्ण मार्गदशर्क है। हमारे राष्ट्रवाद का प्रवाह संविधान से होता है। "भारत की आत्मा बहुलतावाद एवं सहिष्णुता में बसती है।’’
उन्होंने कौटिल्य के अर्थशास्त्र का उल्लेख करते हुए कहा था कि उन्होंने ही लोगों की प्रसन्नता एवं खुशहाली को राजा की खुशहाली माना था। पूर्व राष्ट्रपति ने कहा था कि हमें अपने सार्वजनिक विमर्श को हिंसा से मुक्त करना होगा। साथ ही उन्होंने कहा था कि एक राष्ट्र के रूप में हमें शांति, सौहार्द्र और प्रसन्नता की ओर बढ़ना होगा।
अपने भाषण में मुखर्जी ने कहा था कि हमारे राष्ट्र को धर्म, हठधर्मिता या असहिष्णुता के माध्यम से परिभाषित करने का कोई भी प्रयास केवल हमारे अस्तित्व को ही कमजोर करेगा।
With input from Bhasha