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पंजाब के गोदामों में पांच साल में 700 करोड़ का गेहूं खराब: CAG

देश के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने पाया है कि पंजाब में 2011 से 2016 के बीच पांच साल में 700 करोड़ रुपये मूल्य का भारतीय खाद्य निगम (FCI) का गेहूं खराब हुआ।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : August 04, 2017 18:13 IST
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नयी दिल्ली: देश के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने पाया है कि पंजाब में  2011 से 2016 के बीच पांच साल में 700 करोड़ रुपये मूल्य का भारतीय खाद्य निगम (FCI) का गेहूं खराब हुआ। इसका कारण भंडारण की सुविधा की कमी के कारण अनाज को खुले में रखा जाना था। कैग की संसद में आज पेश ताजा रिपोर्ट के अनुसार खराब गेहूं का भंडार राशन की दुकानों के जरिये आपूर्ति नहीं की जा सकी। 

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने 2011-16 के दौरान भंडारण क्षमता सृजित करने के लिये पीईजी प्राइवेट एंटरप्रेन्यूर गारंटी योजना के क्रियान्व्यन तथा भारतीय खाद्य निगम (FCI) के अपने कर्ज, श्रम तथा प्रोत्साहन भुगतान के प्रबंधन के तरीकों का ऑडिट किया है। CAG ने यह पाया कि एफसीआई ने 2013-14 में थोक ग्राहकों को कम भाव पर गेहूं बेचने से 38.89 करोड़ रुपये की वसूली नहीं हो पायी।  इसके अलावा, अधिशेष कार्यबल को युक्तिसंगत नहीं किये जाने और अपने गोदामों में महंगे श्रम की नियुक्ति से एफसीआई को 237.65 करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्यय करना पड़ा। 

CAG के अनुसार इतना ही नहीं FCI ने अधिक दर तथा वास्तिवक दूरी के बजाए लंबी दूरी तक अनाज परिवहन के बिल का भुगतान कर परिवहन ठेकेदारों को क्रमश: 14.73 लाख रुपये तथा 37.89 लाख रुपये का अधिक भुगतान किया। पीईजी योजना के बारे में आडिटर ने कहा कि शुरूआती वर्ष में इसका क्रियान्वयन नगण्य था और सात साल बाद भी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं हो पाया। योजना का क्रियान्वयन विभिन्न खामियों के कारण प्रभावित हुआ। पंजाब में 53.56 लाख टन गेहूं चूबतरा बनाकर खुले में ढककर कवर्ड एंड प्लिंथ-सीएपीऔर मंडी में रखे गये थे। रिपोर्ट के अनुसार इसमें से 700.30 करोड़ रुपये मूल्य के 4.72 लाख टन गेहूं खराब हो गया। इस गेहूं को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये नहीं बेचे जाने योग्य घोषित किया मार्च 2016 गया। इसका कारण इसे खुले में रखा जाना था। 

CAG के अनुसार पीईजी योजना के क्रियान्वयन में देरी से बड़ी मात्रा में गेहूं खुले में रखे गये और इस प्रकार का भंडार 2011-12 में 103.36 लाख टन से बढ़कर 2012-13 में 132.68 लाख करोड़ रुपये हो गया। इसके अलावा कैग ने पाया कि गोदामों के निर्माण का ठेका बहुत कम ठेकेदारों को दिया गया। इसके कारण 2012-13 से 2015-16 के बीच किराये के रूप में 21.04 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ निजी इकाइयों को दिये गये। एफसीआई में श्रमिकों के बारे में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने कहा कि FCI गोदामों में श्रम प्रबंधन गतिविधियों में कमी पायी गयी जिसका कारण खराब प्रसाशनिक नियंत्रण है। नियमों का उल्लंघन कर काम न करने वाले को वेतन दिया गया और अस्वीकार्य प्रोत्साहन भुगतान दिया गया। 

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