नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र ने रविवार को मन की बात कार्यक्रम के दौरान बताया कि कोरोना वायरस की इस संकट की घड़ी में भारत ने कैसे दुनिया से मिल बांटकर संकट का सामना करने की अपनी संस्कृति का परिचय कराया। प्रधानमंत्री मोदी ने यह भी बताया कि प्रकृति, विकृति और संस्कृति क्या होती है और कैसे संकट की घड़ी में इनकी पहचान होती है।
पीएम मोदी ने कहा कि हम अपनी किसी वस्तु के बारे में जब हम कहते हैं, ये मेरा है, मैं इसका उपयोग करता हूं, तो इस भावना को स्वाभाविक माना जाता है और इससे किसी को ऐतराज नहीं होता, इसे प्रकृति कह सकते हैं। लेकिन जो मेरा नहीं है, जिसपर मेरा हक नहीं है और उसे छीनकर मैं उपयोग में लाता हूं तो इसे विकृति कह सकते हैं। प्रकृति और विकृतकि से ऊपर जब कोई सोचता है तो हमें संस्कृति नजर आती है। जब कोई अपनी मेहनत से कमाई चीज, अपने लिए जरूरी चीज, कम हो या अधिक इसकी परवाह किए बिना, खुद की चिंता छोड़कर अपने हक के हिस्से को बांटकर, किसी दूसरे के हिस्से की जरूर प ूरी करता है वहीं तो संस्कृति है। कसौटी के काल में ही इन गुणों का परीक्षण होता है।
मन की बात कार्यक्रम में पीएम मोदी ने कहा, “पिछले दिनों भारत ने अपने संस्कारों के अनुरूप अपनी संस्कृति का निर्वहन करते हुए कुछ फैसले लिए। संकट की इस घड़ी में दुनिया के समृद्ध देशों के लिए भी दवाओं का संकट ज्यादा रहा है, यह ऐसा समय है कि अगर भारत किसी को दवा न भी दे तो कोई भारत को दोषी नहीं माानता। हर देश समझता है कि भारत के लिए अपने नागरिकों का जीवन बचाना भी प्राथमिकता है। लेकिन भारत ने अपनी संस्कृति के अनुरूप फैसला लेते हुए, दुनिया की जरूत पर ध्यान दिया, विश्व के हर जरूरतमंद तक दवा को पहुंचाने का बीड़ा उठाया और मानवता के काम को करके दिखाया।”
प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि दुनियाभर के देश भारत के इस प्रयास के लिए भारत का धन्यवाद कर रहे हैं, पीएम मोदी ने कहा, “आज जब मेरे अनेक देशों के राष्ट्रअध्यक्षों से बात होती है तो वे भारत की जनता का आभार जरूर व्यक्त करते हैं। जब वो कहते हैं, थैंक्यू इंडिया, थैंक्यू पीपुल्स ऑफउ इंडिया, तो देश के लिए गर्व बढ़ जाता है।”