नई दिल्ली: भारत के ट्विटर ट्रेंड्स में एक हैशटैग ने अधिकांश लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा। गुरुवार की दोपहर को ट्विटर पर पॉलिटिकल ट्रेंड्स के अंतर्गत ‘#आर्टिकल_30_हटाओ’ ट्रेंड कर रहा था। बता दें कि भारत के संविधान का आर्टिकल 30 देश में अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थानों की स्थापना और उनको चलाने के अधिकार के बारे में है। ट्विटर पर ‘#आर्टिकल_30_हटाओ’ ट्रेंड कराने वाले लोगों का मानना है कि यह देश के बहुसंख्यकों के साथ भेदभाव है, और उन्हें अपने धर्म के अनुसार शिक्षण संस्थानों को चलाने की अनुमति नहीं है।
क्या है आर्टिकल 30 में?
बता दें कि संविधान का ‘भाग-3’ देश के नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों के बारे में बात करता है। इस भाग में आर्टिकल 12 से 35 तक शामिल हैं। जहां तक आर्टिकल 30 का सवाल है, तो जैसा कि हमने बताया कि यह अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थानों की स्थापना और उनको चलाने का अधिकार देता है। इसके तहत भाषा और धर्म, दोनों के आधार पर अल्पसंख्यक की श्रेणी में आने वाले समुदाय को यह अधिकार दिया गया है।
आर्टिकल 30(1) और 30(1A)
आर्टिकल 30(1) में लिखा है, ‘भाषा या धर्म के आधार पर जो भी अल्पसंख्यक हैं, उन्हें अपनी मान्यता के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उन्हें चलाने का अधिकार होग।’ आर्टिकल 30(1A) में लिखा है, ‘यदि किसी अल्पसंख्यक समुदाय के द्वारा स्थापित और संचालित शिक्षण संस्थान का अधिग्रहण राज्य द्वारा ज़रूरी हो जाता है, ऐसी स्थिति में राज्य, अधिग्रहण के एवज में देने वाला मुआवजा ऐसे तय करेगी कि अल्पसंख्यकों को मिले अधिकार में अंतर न आए।’
आर्टिकल 30(2)
इसके मुताबिक, ‘शैक्षणिक संस्थाओं को सहायता देने के दौरान, राज्य किसी भी संस्थान के साथ इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगा कि वो धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के अधीन संचालित किया जाता है।’ बता दें कि 27 जनवरी, 2014 के भारत के राजपत्र के मुताबिक, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा मिला है।
आर्टिकल 30 की विशेषताएं
आर्टिकल 30 में समानता के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ अधिकारों की रक्षा करने का शामिल है। इसके अलावा इसमें धर्म और भाषा के आधार पर सभी अल्पसंख्यकों को अपनी पसंद के अनुसार शैक्षणिक संस्थानों को स्थापित और प्रबंध करने का अधिकार है। साथ ही इसके अंतर्गत देश की सरकार धर्म या भाषा की वजह से किसी भी अल्पसंख्यक समूह द्वारा संचालित शैक्षिक संस्थानों को सहायता देने में कोई भी भेदभाव नहीं करने की बात कही गई है।
आलोचक क्या कहते हैं?
आलोचकों का कहना है कि अल्पसंख्यकों के पास स्थापित शैक्षिक संस्थानों का व्यक्तिगत नियंत्रण होता है, जिसका अर्थ यह है कि सरकार इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकती। साथ ही उनका मानना है कि जहां अल्पसंख्यक संस्थान पूर्ण स्वतंत्रता का आनंद लेते हैं, वहीं हिंदू संस्थानों को सरकार के हस्तक्षेप का सामना करना पड़ता है, जो गैर-अल्पसंख्यक के खिलाफ साफ भेदभाव है।