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देश के इस गांव में दुल्हन संग 7 फेरे दूल्हा नहीं उसकी बहन लेती है, जानिए क्या है कारण

क्या आपने कोई ऐसी प्रथा सुनी है कि दूल्हा अपनी ही शादी में दुल्हन के साथ सात फेरे नहीं ले सकता। ये सुनकर आप भी चौंक गए ना, जानिए भारत में ऐसा कहां और क्यों होता है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: December 03, 2020 17:08 IST
Wedding ritual- India TV Hindi
Image Source : SOCIAL MEDIA Wedding ritual

नई दिल्ली। भारत को ऐसे ही नहीं विविधताओं से भरा देश कहा जाता है, यहां हजारों जातियों के लोग रहते हैं और उनके रस्मो-रिवाज भी अलग-अलग होते हैं। यहां कई ऐसे शहर-गांव हैं, जहां आज भी पुरानी परंपराओं को मान्यताओं के रूप में निभाया जाता है। मगर क्या आपने कोई ऐसी प्रथा सुनी है कि दूल्हा अपनी ही शादी में दुल्हन के साथ सात फेरे नहीं ले सकता। ये सुनकर आप भी चौंक गए ना, अपनी ही शादी में दूल्हा दुल्हन के साथ 7 फेरे नहीं लेता है बल्कि मंडप में दूल्हे का प्रतिनिधित्व करने के लिए उसकी अविवाहित बहन या उसके परिवार की कोई अविवाहित महिला दुल्हन के साथ फेरे लेती है, लेकिन यह बात बिल्कुल सच है। जानिए भारत में ऐसा कहां और क्यों होता है। 

दरअसल, गुजरात के छोटा उदयपुर के सुरखेड़ा, नदासा और अंबल गांव में कई सालों से बड़ी अनोखी परंपरा निभाई जा रही है। इन तीनों गांवों में आदिवासी रहते हैं और इन गांवों में दूल्हे की शारीरिक मौजूदगी के बिना ही शादी होती है। इन गांवों में आज भी दूल्हा अपनी शादी में नहीं जाता है। इन गांवों में दूल्हे के बिना शादी की जाती है और दूल्हे की जगह उसकी बहन बारात लेकर दुल्हन के घर जाती है। 

सुरखेड़ा गांव के रहने वाले लोग बताते हैं कि दूल्हे की बहन ही बारात की अगुआई करते हुए फेरे लेकर दुल्हन को घर लेकर आती है, जबकि दूल्हे को घर के अंदर ही अपनी मां के साथ रुकना होता है। दूल्हे द्वारा निभाई जाने वाली शादी की सभी रस्में उसकी बहन ही निभाती है। ननद ही भाभी के साथ शादी की सारी रस्मों को निभाती है। दूल्हे की बहन दुल्हन के साथ सात फेरे भी लेती है। उसके बाद वह भाभी को घर लेकर आती है। शादी में दूल्हा शेरवानी पहनता है और सिर पर साफा बांधता है, लेकिन वह दुल्हन के घर जाने के बजाय मां के साथ घर पर ही दुल्हन के आने का इंतजार करता है।

अजीबोगरीब परंपरा के पीछे ये है वजह

इन तीनों गांवों में इस परंपरा के पीछे एक पौराणिक कथा है। कथा के मुताबिक, तीन गांवों सुरखेड़ा, नदासा और अंबल के ग्राम देवता अविवाहित थे, इसलिए उनको सम्मान देने के लिए यहां के दूल्हे घर पर ही शादी के दिन अंदर रखा जाता है। माना जाता है कि ऐसा करने से दूल्हे को आने वाली परेशानियों से बचाया जाता है और दूल्हा-दुल्हन का वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। यहां की प्रथा के मुताबिक, शादी के समय दूल्हा शेरवानी-साफा पहनता है और पारंपरिक तलवार भी साथ रखता है। मगर वह दुल्हन के साथ सात फेरे नहीं ले सकता। सुरखेड़ा के निवासी बताते हैं कि जब-जब लोगों ने ये प्रथा तोड़ने की कोशिश की तो उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। या तो ऐसा करने वाले लोगों की शादी टूट गई, या उन पर अन्य विपत्तियां आ गईं। ऐसे में लोगों में ये विश्वास और मजबूत हो गया कि अगर इस प्रथा का अनुसरण नहीं किया तो कोई न कोई नुकसान हो सकता है। यहां के लोगों का मानना है कि इस परंपरा से शादी करना शुभ होता है। अगर कोई इस परंपरा से शादी नहीं करता है तो दूल्हा-दुल्हन का वैवाहिक जीवन खराब हो जाता है। उनके जीवन में समस्याओं का अंबार लग जाता है।

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