नई दिल्ली. विकास दुबे का सुबह-सुबह एनकाउंटर और उसपर उठते तमाम सवालों को आप भली भांति जान चुके होंगे, लेकिन विकास दुबे के एनकाउंटर और राजनीतिक छींटाकशी के और भी कई मायने हैं। दरअसल, हर राजनीतिक किरदार ने इस अपराधी की मौत को भी भुनाने की कोशिश की लेकिन विकास ने जिनके परिवार के लोगों की हत्या की, उन्होंने उसके एनकाउंटर संतुष्टता जताई है।
एनकाउंटर पर राजनीति
दरअसल आमतौर पर जब हमारी क्षति बहुत निजी होती है तो दिल से यही चित्कार उठती है कि ख़ून का बदला ख़ून। स्वभाविक है, इंसान है तो ये बातें होती ही हैं। लेकिन ये चित्कार ना तो कानून की नज़र में सही है और ना ही भारतीय संस्कृति का परिचायक है लेकिन जब राजनीति से जुड़े लोग सस्ती लोकप्रियता या सियासी फायदे के लिए सुर्खियां बंटोरने की कोशिश करते हैं और अपने आपको पाक साफ दिखाने की कोशिश में सवाल उठाने लगते हैं और वो भी तब या वो ख़ुद ऐसे एनकाउंटर की राजनीति करते रहे हो या फिर उनकी पार्टियों के शासन काल में सैंकड़ों एनकाउटंर होते रहे हैं तो सवाल उठता है कि आज विकास दुबे के एनकाउंटर पर सियासी बवाल क्यों?नेताओं ने उठाए ये सवाल
विकास दुबे के एनकाउंटर पर प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्वीट कर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि अपराधी का अंत हो गया, अपराध और उसको सरंक्षण देने वाले लोगों का क्या? यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा कि दरअसल ये कार नहीं पलटी है, राज़ खुलने से सरकार पलटने से बचाई गयी है।
बसपा प्रमुख मायावती ने इस एनकाउंटर पर कहा कि कानपुर पुलिस हत्याकाण्ड की तथा साथ ही इसके मुख्य आरोपी दुर्दान्त विकास दुबे को मध्यप्रदेश से कानपुर लाते समय आज पुलिस की गाड़ी के पलटने व उसके भागने पर यूपी पुलिस द्वारा उसे मार गिराए जाने आदि के समस्त मामलों की माननीय सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि यह उच्च-स्तरीय जांच इसलिए भी जरूरी है ताकि कानपुर नरसंहार में शहीद हुए 8 पुलिसकर्मियों के परिवार को सही इन्साफ मिल सके। साथ ही, पुलिस व आपराधिक राजनीतिक तत्वों के गठजोड़ की भी सही शिनाख्त करके उन्हें भी सख्त सजा दिलाई जा सके। ऐसे कदमों से ही यूपी अपराध-मुक्त हो सकता है।
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि जिसका शक था वह हो गया। विकास दुबे का किन किन राजनैतिक लोगों से, पुलिस व अन्य शासकीय अधिकारियों से उसका संपर्क था, अब उजागर नहीं हो पाएगा। पिछले 3-4 दिनों में विकास दुबे के 2 अन्य साथियों का भी एनकाउंटर हुआ है लेकिन तीनों एनकाउंटर का पैटर्न एक समान क्यों है? शिवसेना की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने ट्वीट कर कहा कि न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।
एनकाउंटर पर क्यों गर्म है सियासत?
अब आपको बताते हैं कि विकास दुबे के एनकाउंटर पर सियासत क्यों गर्म है। आज विपक्ष विकास दुबे के एनकाउंटर पर क्यों सवाल उठा रहा है इसकी वजह भी समझना ज़रूरी है। कांग्रेस की नेता और सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी कानपुर कांड के बाद से ही मुखर हैं, आज भी उन्होंने कई सवाल खड़े किए। दरअसल प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सियासी ज़मीन ढूंढ रही हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पिछले 30 साल से सत्ता से बाहर है। प्रियंका गांधी पर यूपी में कांग्रेस को सत्ता में वापसी की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
सवाल उठाने वालों में दूसरा नाम है उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का। अखिलेश समाजवादी पार्टी को अपने पूरे कंधे पर लेकर चल रहे हैं। समाजवादी पार्टी को वापस सत्ता में लौटाना चाहते हैं पिछले विधानसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद समाजवादी पार्टी के अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
तीसरी प्रमुख नेता हैं मायावती। BSP प्रमुख मायावती के लिए अगला चुनाव पार्टी के अस्तित्व बचाने वाला साबित होगा। पिछले 2 चुनावों में हुई हार की वजह से बहुजन समाज पार्टी टूटने के कगार पर है। ऐसे में वो राजनीति का कोई अवसर छोड़ना नहीं चाहती है। मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने भी लगातार सवाल किए हैं। दिग्विजय तुष्टीकरण की राजनीति के चलते अपनी ही पार्टी पर सवाल खड़े करते हैं। मध्यप्रदेश में सरकार गिरने बाद से वो अपनी सियासत एक्टिव रखना चाहते हैं।
एनकाउंटर पर उठते रहे हैं सवाल
हिंदी फिल्म का एक मशहूर डॉयलॉग है, 'जिनके अपने घर शीशे के हों वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते'। यही मूल बात सभी नेता भूल रहे हैं कि जब इनकी सरकार थी तो इसी तरीके अपराधियों का एनकाउंटर किया जाता था। एनकांउटर सही है या गलत इस पर बहस हो सकती है लेकिन एनकांउटर की सियासत पर सवाल उठाने ज़रूरी हैं ताकि सियासी तस्वीर साफ हो सके। .आइए आपको उन एनकाउंटर की याद दिलाते हैं जो विवादों में रहते हुए चर्चा की वजह बन गए।
दिसंबर 2019 में हैदराबाद में एक लड़की के रेप के बाद पुलिस ने 4 आरोपियों का एनकाउंटर किया था। पहले पुलिस ने सभी आरोपियों को गिरफ्तार किया था इसके बाद पुलिस जब आरोपियों को घटनास्थल पर लेकर जा रही थी तो उन्होंने भागने की कोशिश की और पुलिस ने मुठभेड़ में आरोपियों को मार गिराया था। इसके अलावा सिंतबर 2008 में दिल्ली के बाटला हाउस में इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकियों का एनकाउंटर किया था इसमें इंस्पेक्टर मोहन शर्मा शहीद हो गए थे उस समय भी कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने अपनी ही पार्टी पर सवाल उठाये थे ।
नवंबर 2005 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार के दौरान यूपी STF ने चंबल के कुख़्यात डाकू निर्भय सिंह का एनकाउंटर किया था। निर्भय गुर्जर का दावा था कि उसके तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह से बहुत अच्छे संबंध और उसने नेताजी को सोने का मुकुट पहनाया है। इस बात से सत्ता और अपराधी के संबंधों को उजागर होने से पहले ही डाकू निर्भय सिंह का एनकाउंटर हो गया था। अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री थे तो ये कहा जाता था कि यूपी में है दम यहां अपराध हैं कम लेकिन उत्तर प्रदेश के लोगों को कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ।
जुलाई 2007 में जब मायावती की सरकार थी तब यूपी के सबसे बड़े खूंखार डकैत शिवकुमार पटेल उर्फ"ददुआ" का एनकाउंटर हुआ था, तब भी एनकाउंटर के तरीके पर सवाल उठे थे। 22 जुलाई 2007 के ठीक एक साल बाद 4 अगस्त 2008 को यूपी एसटीएफ की उसी टीम ने ठोकिया को उसी के गांव में मुठभेड़ में ढेर कर दिया। एसटीएफ के तत्कालीन एसएसपी अमिताभ यश जिन्होंने ददुआ का भी इनकाउंटर किया था उनकी टीम ने ठोकिया से अपने जवानों की शहादत का बदला ले लिया था। बीहड़ से एक और आतंक का खात्मा हुआ था।
इसके अलावा 1982 में महाराष्ट में कांग्रेस सरकार के दौरान मुंबई पुलिस ने मान्या सुर्वे नाम के गैंगस्टर का एनकाउंटर किया था। मुंबई पुलिस के मुताबिक मान्या सुर्वे को आत्मसमर्पण करने का मौका दिया लेकिन फायरिंग शुरू हो गई इसलिए एनकाउंटर कर करना पड़ा। साल 2016 में भोपाल की सेंट्रल जेल से 30-31 अक्टूबर की दरमियानी रात भागे 8 सिमी आतंकियों को पहाड़ी पर घेरकर पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया था। पुलिस की दलील थी कि जेल से भागने के बाद आतंकियों ढूंढकर घेरा गया इसके बाद दोनों तरफ से गोलीबारी शुरू हो गई। जेल से भागने के बाद आतंकवादियों तक हथियार कैसे पहुंचे ये बड़ा सवाल रहा है ।
क्या फर्जी होती हैं ज्यादतर एनकाउंटर?
वैसे एनकाउंटर की थ्योरी में पुलिस की हमेशा यही दलील रहती है कि अपराधी भागने की कोशिश कर रहा था या क्रास फायरिंग शुरू हो गई। ऐसा हम क्यों कह रहे हैं इसके पीछे की वजह भी समझनी भी जरूरी है। National Human Rights Commission की एक रिपोर्ट कहती है कि साल 2000 से 2017 के दौरान देश भर में 1 हज़ार 782 फर्ज़ी एनकाउंटर हुए, इनमें से अकेले उत्तर प्रदेश में करीब 45 प्रतिशत यानी 794 एनकाउंटर फर्ज़ी थे। इस दौरान यूपी में सबसे ज़्यादा 9 साल समाजवादी पार्टी और करीब साढ़े 5 साल मायावती सरकार का राज था। लेकिन इसके बावजूद आज अपनी सियासत को चमकाने के लिए ये सभी नेता अपने पुराने दिनों को याद नहीं करना चाहते हैं।
फर्ज़ी एनकाउंटर के मामले में हर राज्य का कमोवेश एक ही हाल है कहीं कम तो कहीं ज़्यादा और इस पर सियायत का भी लंबा इतिहास है। ऐसा इसलिए भी किया जाता है क्योंकि जब भी कोई हाई प्रोफाइल केस आता है। जब भी कोई बड़ा नाम सामने आता है तो एनकाउंटर हो जाता है ताकी जानकारी आगे बढ़ ना पाये ताकि जांच आगे बढ़ ना पाये जिससे अपराध और सत्ता के रिश्तों की बात वहीं दब जाये।
एनकाउंटर पर क्या कहता है कानून?
अब आपको बताते हैं कि एनकाउंटर पर कानून क्या कहता है। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एनकाउंटर पर एक अहम फैसला दिया। इस फैसले में एनकाउंटर से जुड़ी जांच के लिए गाइडलाइंस जारी की गई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर एनकाउंटर के दौरान पुलिस को किसी वजह से गोली चलानी पड़ती है और कस्टडी में मौजूद आरोपी की मौत हो जाती है तो ऐसी हालत में एफआईआर दर्ज होगी। इसकी छानबीन उस थाने की पुलिस नहीं बल्कि किसी और थाने की पुलिस करेगी। इसकी जांच सीआईडी या दूसरी जांच एजेंसी भी कर सकती है।
लिहाजा कानून में पुलिस को एनकाउंटर का अधिकार नहीं है। संविधान में साफ साफ लिखा है, जब तक कोई आरोपी दोषी साबित ना हो जाए। पुलिस का काम है कि पहले वो आरोपी को गिरफ्तार करे, फिर सबूत जुटाए और कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करे। जानकार मानते हैं कि रूल ऑल लॉ यानि जहां कानून का राज है वहां एनकाउंटर की कोई जगह नहीं है। इसी आधार पर एनकाउंटर से जुड़े मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाया गया। जस्टिस रंगनाथ मिश्र में कहा था कि अगर एनकाउंटर होता है तो ऐसे मामले में धारा 302 यानि हत्या का केस दर्ज होना चाहिए।
विकास दुबे के एनकाउंटर पर जो सवाल उठ रहे हैं उन्हें भी समझना ज़रूरी है। एनकाउंटर पर सबसे बड़े सवाल जो उठ रहा है वो यह है कि जब विकास दुबे को उज्जैन में निहत्थे गार्ड ने पकड़ा था तो वो यूपी की हथियारबंद पुलिस से पिस्टल छीनकर कैसे भाग रहा था? पहले चर्चा थी कि विकास को चार्टर्ड प्लेन के जरिए उज्जैन से इंदौर और फिर वहां से यूपी ले जाया जाएगा, लेकिन गुरुवार शाम को अचानक कहा गया कि उसे सड़क के रास्ते ले जाया जाएगा। पुलिस के काफिले में कई गाड़ियां थीं लेकिन एक्सीडेंट सिर्फ उसी गाड़ी का हुआ जिसमें विकास दुबे सवार था? पुलिस के काफिले के पीछे मीडिया की गाड़ियां चल रही थीं लेकिन चेक पोस्ट लगाकर मीडिया को रोक दिया गया
एनकाउंटर के साथ दबे ये सवाल
विकास दुबे के एनकाउंटर के साथ उन सवालों का भी एनकाउंटर हो गया जो विकास दुबे से जुड़े हुए थे। विकास दुबे के किन-किन पुलिस वालों से दोस्ती थी। विकास दुबे का सियासी कनेक्शन क्या था। कौन-कौन से बड़े खुलासे करने वाला था विकास दुबे और तीन जुलाई की रात को विकास दुबे को गिरफ़्तार करने का आदेश किसने दिया था? ये वो सवाल हैं जिनके जवाब अब कभी नहीं मिल पायेंगे।