नई दिल्ली: एनडीए उम्मीदवार वेंकैया नायडू ने उपराष्ट्रपति चुनाव जीत लिया है। वे 11 अगस्त को उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे। राजनीतिक कार्यकर्ता से लेकर उपराष्ट्रपति पद तक पहुंचने के लिए उन्होंने लंबी यात्रा तय की है।
आडवाणी के करीबी हैं नायडू
सार के दशक में जब भाजपा का पूर्ववर्ती संगठन जनसंघ अपनी पहचान बना ही रहा था और दक्षिण में उसका कोई आधार नहीं था, तब आंध्र प्रदेश का एक युवा पार्टी कार्यकर्ता अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गजों के पोस्टर लगाने में व्यस्त रहता था।
अपनी हाजिरजवाबी के लिए मशहूर हैं नायडू
आंध्र प्रदेश के नेल्लूर जिले के एक सीधे-सादे कृषक परिवार से ताल्लुक रखने वाले भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नायडू को उनकी वाक् क्षमता के लिए जाना जाता है। अपनी हाजिरजवाबी के लिए नायडू मशहूर हैं। आंध्र प्रदेश विधानसभा में दो बार सदस्य रह चुके नायडू कभी लोकसभा के सदस्य नहीं रहे। हालांकि वह तीन बार कर्नाटक से राज्यसभा में पहुंच चुके हैं और फिलहाल उच्च सदन में ही राजस्थान का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
जब PM मोदी ने नायडू को कहा ‘गारू’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नायडू को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुने जाने के बाद उनके लिए तेलुगू के शब्द गारू का इस्तेमाल किया था जो किसी को सम्मान देने के लिए बोला जाता है। मोदी ने ट्वीट किया, एक कृषक पुत्र। एम वेंकैया नायडू गारू सार्वजनिक जीवन में वर्षों का अनुभव रखते हैं और हर राजनीतिक वर्ग में सराहे जाते हैं।
मोदी सरकार में संसदीय कार्य मंत्री भी रह चुके हैं नायडू
एक समय आडवाणी के करीबी रहे नायडू ने 2014 के आम चुनावों से पहले प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी का जोरदार समर्थन किया। नायडू सूचना प्रसारण और शहरी विकास मंत्रालयों का कामकाज संभाल रहे थें। वह मोदी सरकार में संसदीय कार्य मंत्री भी रह चुके हैं।
दो कार्यकाल में रहे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष
अटल बिहारी वाजपेयी के समय एनडीए की पहली सरकार में 68 वर्षीय नायडू ग्रामीण विकास मंत्री रहे। वह जुलाई 2002 से अक्टूबर 2004 तक लगातार दो कार्यकाल में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। 2004 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद उन्होंने पद छोड़ दिया। इमरजेंसी के दौरान नायडू एबीवीपी के कार्यकर्ता रहे और जेल में भी रहे।
सभी दलों से अच्छे संबंध
मोदी सरकार में संसदीय कार्य मंत्री के नाते उन्होंने संसद में सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध की स्थिति में सोनिया गांधी समेत विपक्ष के नेताओं से संपर्क साधकर गतिरोध को दूर करने का प्रयास किया। अपने भाषण और वक्तव्यों में तुकांत शब्द बोलने के कारण भी उन्हें अच्छा वक्ता माना जाता है।