नई दिल्ली: कैलास मानसरोवर यात्रा की तैयारी अब एक कदम और आगे बढ़ गई है। इस बार भारत और चीन के अलावा नेपाल से भी ये यात्रा गुजरेगी। नए रुट पर सहमती बन गई है और अब ये यात्रा दो देशों से नहीं बल्कि तीन देशों से होकर गुजरेगी। सरकार ने एक नया रास्ता पिछले दिनों ही बनाने का फैसला लिया है। इससे पहले जो भी यात्री जाते थे वो भारत-चीन के बीच पुराने उबड़-खाबड़ रास्ते से जाते थे लेकिन ये नया रास्ता बहुत हद तक सुगम है। चारों तरफ पहाड़ियों से घिरे रास्ते को भारत सरकार ने दारचुला से लेकर नावीधांग तक 70 किलोमीटर की सड़कों को पहले ही आसान बना दिया है और अब आगे का रास्ता आसान कैसे हो, सरकार इसकी तैयारी में लगी है क्योंकि इस बार की यात्रा दो देशों से नहीं तीन देशों से होकर गुजरेगी।
इस बार भारत से उच्च हिमालय जाने वाले कैलास मानसरोवर यात्री दो किमी का सफर नेपाल में करेंगे। नजंग पुल से नेपाल में प्रवेश करेंगे और दो किमी चलने के बाद लखनपुर पुल से भारत आएंगे। दोनों स्थानों पर पुलों का निर्माण 15 अप्रैल से पूर्व करने पर सहमति बनी। इस स्थान पर नेपाल की तरफ के मार्ग के संबंध में दार्चुला (नेपाल) के जिलाधिकारी ने बताया कि नजंग व लखनपुर के सामने नेपाल में दो किमी मार्ग में चार सौ मीटर हिस्सा क्षतिग्रस्त है, जिसे नेपाल प्रशासन निश्चित अवधि से पूर्व ठीक कराएगा।
कैलास का नया रास्ता
काठगोदाम (भारत)-भवाली (भारत)-अल्मोड़ा (भारत)-दीढल (भारत)-तवाघाट (भारत)-कालापानी (भारत)-नावीधांग (भारत)-लखनपुर (नेपाल)-नजंग (नेपाल)-नावीधांग (भारत)-लिपुलेख दर्रा (चीन)-तकलाकोट (चीन)-तारचेन (चीन)-कैलास मानसरोवर
उत्तराखंड के रास्ते में 19500 फीट की उंचाई तक पहुंचने के लिए भक्तों को कई दुर्गम पहाड़ियों को पार करना पड़ता है। उत्तराखंड के जरिए कैलास तक पहुंचने के लिए पुराने रुट पर लोगों को एक महीने का वक्त लगता था लेकिन चीन की सरहद नावीधांग तक सड़कें बन गई है इसलिए कहा जा रहा है कि 20 दिन में ये यात्रा पूरी हो जाएगी। पुराने रुट में नारायण आश्रम तक ही गाड़ी जाती है जबकि नये रुट पर सरकार की कोशिश है कि तवाघाट के आगे तक गाड़ियां चली जाए। फिलहाल जो रास्ते हैं उसमें 19 हजार 500 फीट की चढ़ाई है जबकि नए रुट में नेपाल के जुड़ जाने से चढ़ाई में कुछ कमी आ जाएगी।
कैलास पर्वत समुद्रतल से करीब 22 हजार फीट की ऊंचाई पर है। कैलास एक पिरामिड जैसा है जिसकी सतह पर बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। पुराणों के मुताबिक भगवान ब्रह्मा और शिव यहां तप किया करते थे। भक्त ये भी मानते हैं कि कैलास की परिक्रमा करने से कष्ट नष्ट हो जाते हैं और मोक्ष मिलता है और इसलिए शिव की सबसे बड़ी आराधना के लिए भक्त कैलास खींचे चले आते हैं। बता दें कि 23 मार्च तक रजिस्ट्रेशन होगी और उसके बाद जून से सितंबर तक चलने वाली इस यात्रा के लिए 1580 यात्रियों का चयन किया जाएगा।