देहरादून. उत्तराखंड में अंतरधार्मिक विवाह पर प्रोत्साहन राशि बांटे जाने पर मचे बवाल के बाद प्रदेश सरकार ने शनिवार को कहा कि इस मामले में जारी आदेश को ठीक करने की कार्रवाई की जा रही है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सलाहकार आलोक भट्ट द्वारा सोशल मीडिया में जारी एक बयान में कहा गया है कि संशोधन की कार्रवाई में समय लगेगा पर इस आदेश को ठीक कर दिया जाएगा।
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उत्तराखंड सरकार के अंतरधार्मिक विवाह करने वाले दंपतियों को पचास हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि दिए जाने के मामले ने तब तूल पकड लिया जब टिहरी के समाज कल्याण अधिकारी ने इस संबंध में जानकारी देने हेतु एक प्रेस नोट जारी किया। वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद उत्तराखंड में इससे संबंधित नियमावली को जस की तस स्वीकार कर लिया गया था जिसमें ऐसे विवाह करने वाले दंपतियों को 10,000 रुपए दिए जाते थे।
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वर्ष 2014 में उत्तराखंड की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने इसमें संशोधन कर इस प्रोत्साहन राशि को बढाकर 50,000 रुपए कर दिया। अंतरधार्मिक के अलावा अंतरजातीय विवाह करने वाले दंपतियों को भी यह प्रोत्साहन राशि दी जाती है। प्रदेश के सामाजिक कल्याण विभाग के अधिकारियों ने यहां बताया कि यह प्रोत्साहन राशि सभी कानूनी रूप से रजिस्ट्रर्ड अंतरधार्मिक विवाह करने वाले दंपतियों को दी जाती है। अंतरधार्मिक विवाह किसी मान्यता प्राप्त मंदिर, मस्जिद, गिरिजाघर या देवस्थान में संपन्न होना चाहिए।
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उन्होंने बताया कि अंतरजातीय विवाह संबंधों में प्रोत्साहन राशि पाने के लिए दंपति में से पति या पत्नी किसी एक का भारतीय संविधान के अनुच्छेद 341 के अनुसार, अनुसूचित जाति का होना आवश्यक है। ऐसे विवाह करने वाले दंपति शादी के एक साल बाद तक प्रोत्साहन राशि पाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। भट्ट ने कहा कि इस साल अभी तक किसी अंतरधार्मिक विवाह करने वाले दंपति को यह राशि नहीं दी गयी है। उन्होंने कहा, ' इस पर मचा बवाल आधारहीन है क्योंकि योजना मुख्य रूप से अंतरजातीय विवाहों को बढावा देने के लिए है।'