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3 तलाक: गेंद अब मोदी सरकार के पाले में!

अब सबकी निगाहें मोदी सरकार पर होंगी, क्योंकि गेंद फिर सरकार के पाले में है। सरकार ने अदालत में कहा था कि इस्लाम में तीन तलाक जरूरी धार्मिक रिवाज नहीं है, जिसका वह विरोध करती है। चूंकि संविधान पुरुषों और महिलाओं को बराबरी का अधिकार देता है, इसलिए अदाल

Reported by: IANS
Published on: August 23, 2017 14:32 IST
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने अगले छह महीने तक मुस्लिम पुरुषों के महिलाओं को एक साथ तीन बार तलाक यानी उन्हें इंस्टैंट या तुरत-फुरत तलाक दे दिए जाने पर रोक लगा दी है। अदालत ने कहा, "6 महीने में संसद कानून बनाए, जिसमें मुस्लिम संस्थाओं की चिंताओं व शरीयत का ख्याल रखा जाए। सभी पक्ष मतभेद भूलकर राजनीति से इतर निर्णय लें और सरकार की मदद करें। समय सीमा में कानून नहीं बना तो निषेधाज्ञा जारी रहेगी।" ये भी पढ़ें: ट्रिपल तलाक़ पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फ़ैसले के पीछे हैं ये पांच महिलाएं

अब सबकी निगाहें मोदी सरकार पर होंगी, क्योंकि गेंद फिर सरकार के पाले में है। सरकार ने अदालत में कहा था कि इस्लाम में तीन तलाक जरूरी धार्मिक रिवाज नहीं है, जिसका वह विरोध करती है। चूंकि संविधान पुरुषों और महिलाओं को बराबरी का अधिकार देता है, इसलिए अदालत को इसी आधार पर इस प्रथा की समीक्षा करनी चाहिए।

हर धर्म की जजों वाली बेंच में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई तथा पारसी धर्म को मानने वालों में चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आर.एफ. नरीमन, जस्टिस यू.यू. ललित और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल थे। इन्होंने तीन तलाक को शून्य, असंवैधानिक और गैर कानूनी बताया। यह संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का हनन है। महिलाओं से जुड़ा होने के बावजूद इस बेंच में किसी महिला जज को शामिल न किए जाने की खूब आलोचना भी हुई।

3 तलाक पर लड़ाई की शुरुआत उत्तराखंड के काशीपुर की 38 वर्षीया शायरा बानो ने मुख्य याचिकाकर्ता के रूप में रूप में जरूर की, लेकिन बाद में इसमें 17 पक्ष-विपक्ष के संगठन और जुड़ते चले गए। सभी याचिकाओं पर 18 महीने बाद, इसी साल 12 मई से 18 मई के बीच सुनवाई हुई और मंगलवार को पांच जजों की बेंच ने 3-2 के आधार पर बहुमत से फैसला सुना दिया।

दो जज 3 तलाक के पक्ष में थे, जबकि तीन इसके खिलाफ। बहुमत के आधार पर तीन जजों के फैसले को बेंच का फैसला माना गया। जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और जस्टिस उदय उमेश ललित ने माना कि तीन तलाक इस्लाम का मौलिक रूप से हिस्सा नहीं है, यह कानूनी रूप से प्रतिबंधित है साथ ही शरीयत भी इसकी इजाजत नहीं देता। जबकि, चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर ने कहा कि तीन तलाक इस्लामिक रीति-रिवाजों का अभिन्न हिस्सा है तथा इसे संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है।

इस पूरे घटनाक्रम का दिलचस्प पहलू यह है कि इसकी असल शुरुआत अक्टूबर, 2015 में एक हिंदू मामले से हुई। हिंदू उत्तराधिकार कानून पर कर्नाटक की फूलवती ने अपनी पैतृक संपत्ति में हिस्से के लिए सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी। दरअसल, प्रकाश एंड अदर्स वर्सेस फूलवती एंड अदर्स केस की सुनवाई के दौरान हिंदू सक्सेशन कानून को लेकर सुनवाई जारी थी, जिसमें प्रकाश के वकील ने कहा कि हिंदू कानून में खामियों और कमियों की बात होती रहती है, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ में तमाम ऐसे प्रावधान हैं, जो सीधे-सीधे मुस्लिम महिलाओं के साथ ज्यादती की इजाजत देते हैं।

इसी पर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अनिल दवे और जस्टिस ए.के. गोयल ने स्वत: संज्ञान लेते हुए एक पीआईएल दायर करने का फैसला सुना दिया और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने को कहा।

इसके बाद फरवरी, 2016 में शायरा बानो ने सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी और 3 तलाक को असंवैधानिक करार दिए जाने की गुहार लगाई। इन्हीं के बाद आफरीन रहमान और नीलोफर सहित 4 अन्य महिलाओं ने भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। इस दौरान कुछ मुस्लिमों के कुछ धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने भी उन्हें सुने जाने की अपील की। इन्हें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 16 फरवरी को सभी पक्षों को 30 मार्च तक हलफनामा दायर करने को कहा और 11 मई से प्रतिदिन सुनवाई का फैसला दिया।

इस्लामी कानून में तलाक शौहर का विशेषाधिकार होता है, मगर तब, जब निकाहनामे में अलग बातें न जोड़ी गई हों। हालांकि मुगलों के दौर में भी तलाक के इक्के-दुक्के मामले सामने आए हैं। इसका एक दिलचस्प ऐतिहासिक वाकया भी है।

मजलिस-ए-जहांगीर में 20 जून, 1611 को बादशाह जहांगीर ने बीवी की रजामंदी के बिना शौहर द्वार दिए गए तलाक को अवैध बताया और वहां हाजिर काजी ने इसकी इजाजत दी। यूं तो तीन तलाक 1400 साल पुरानी प्रथा है, जिसमें मुस्लिम पुरुष, तीन बार तलाक कहकर अपनी शादी से अलग हो सकता है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में कई ऐसे प्रकरणों ने सबको चौंका दिया, जिसमें मुस्लिम महिलाओं को स्काइप के जरिए, कागज पर लिख कर या फिर एसएमएस के जरिये तलाक दे दिया गया।

निश्चित रूप से यह मुस्लिम महिलाओं के हक में नहीं है। बहुत से मुस्लिम देशों में यह प्रतिबंधित है। मिस्र पहला देश है, जहां 1929 में ही प्रतिबंधित किया गया, जबकि पाकिस्तान, बांग्लादेश, सूडान, सीरिया, ट्यूनीशिया, इराक, श्रीलंका, यूएई, अफगानिस्तान, तुर्की, लीबिया, मलेशिया और कुवैत भी इन पर प्रतिबंध है। जाहिर इंसाफ के लिए पीड़िताएं खुद सामने आईं, सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाईं, जिसने इन्हें अंतत: मुकाम तक पहुंचाया और करोड़ों भारतीय मुस्लिम महिलाओं के मानवीय, नैतिक, सामाजिक अधिकारों का संरक्षण कर, इंसाफ की राह पुख्ता की। काश! विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के पति गवर्नर स्वराज का बेहद भावनात्मक ट्वीट "तलाक तो दे रहे हो नजर-ए-कहर के साथ, जवानी भी मेरी लौटा दो मेहर के साथ" सच हो पाता!

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