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अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर ही बनना चाहिए: वसीम रिजवी

राम मंदिर मसले के हल में मदद करने के लिए इससे जुड़े पक्षकारों की श्रीश्री रविशंकर से ये पहली मुलाकात नहीं है। इससे पहले श्रीश्री रविशंकर ने निर्मोही अखाड़े और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नुमाइंदों को बातचीत के लिए बुलाया था। 6 अक्टूबर को बे

Written by: India TV News Desk
Published : October 31, 2017 14:56 IST
ravi-shankar
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नई दिल्ली: अयोध्या में राम मंदिर के फार्मूले को लेकर बेंगलुरू में इन दिनों मीटिंग का दौर चल रहा है और इसमें मध्यस्थ की भूमिका में खुद आधात्मिक गुरू श्रीश्री रविशंकर हैं। अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर आज श्री श्री रविशंकर और उत्तर प्रदेश में शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी के बीच बेंगलुरु में मुलाकात हुई। श्रीश्री से मुलाकात के बाद वसीम रिजवी ने कहा कि राम जन्मभूमि पर मंदिर ही बनना चाहिए। साथ ही उन्होंने अयोध्या में किसी अन्य मुस्लिम आबादी वाली जगह पर मस्जिद बनाने की वकालत की।

राम मंदिर मसले के हल में मदद करने के लिए इससे जुड़े पक्षकारों की  श्रीश्री रविशंकर से ये पहली मुलाकात नहीं है। इससे पहले श्रीश्री रविशंकर ने निर्मोही अखाड़े और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नुमाइंदों को बातचीत के लिए बुलाया था। 6 अक्टूबर को बेंगलुरु में दोनों पक्षों की श्रीश्री रविशंकर से इस मामले पर बात हुई थी। श्रीश्री रविशंकर की मौजूदगी में दोनों पक्षों में काफी देर तक बात हुई। खास बात ये रही कि इस मामले से जुड़े कई पक्षों ने आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट की बात पर सकारात्मक रुख भी दिखाया।

दरअसल कई सालों से ये मामला अदालत में है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले का समाधान अदालत से बाहर आपसी सहमति से करने की अपील की है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या इस मामले का समाधान कोर्ट के बाहर निकलेगा। दरअसल ये मामला बीते सौ साल से भी ज्यादा समय से कोर्ट में है। पहली बार राम मंदिर बनाने के लिए 1885 में ये मामला कोर्ट पहुंचा था तब महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में राम मंदिर निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की थी। तब से लेकर अबतक ये मामला विवादों की ज़द में है।

बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक और मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के मेंबर जफरयाब जिलानी का कहना है कि राम मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए। हालांकि राम मंदिर विवाद में पक्षकार महंत धर्मदास ने श्री श्री रविशंकर की पहल का स्वागत किया है। एक महीने बाद दिसंबर के महीने में इस मामले की अगली सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू होगी लेकिन इस सुनवाई से पहले ये कोशिश की जा रही है कि आपसी सहमति से इस विवाद को सुलझा लिया जाए।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राम मंदिर का मामला धर्म और आस्था से जुड़ा है ऐसे में कोर्ट से बाहर इस मसले पर सहमति बनती है तो ये अच्छा रहेगा। कोर्ट ने ये भी कहा था कि अगर जरूरी हुआ तो सुप्रीम कोर्ट के जज मध्यस्थता को तैयार हैं। कोर्ट के इस रूख के बाद रविशंकर की ये पहल इस मामले में मील का पत्थर साबित हो सकता है। अगर सहमति से विवाद का निपटारा होता है तो ये दोनों पक्षों के लिए बेहतर होगा।

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