नई दिल्ली: देश की पूर्वी सीमा पर चीनी सैन्य जमावड़े पर बढ़ती चिंता के बीच सरकार ने सामरिक रूप से अहम भारत तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) कमान को चंडीगढ़ से जम्मू-कश्मीर में लेह भेजने का आदेश दिया है। आधिकारिक सूत्रों ने बृहस्पतिवार को बताया। आईटीबीपी के उत्तरपश्चिम फ्रंटियर को शांतिकाल में चीन से लगी भारत की 3488 किलोमीटर लंबी सीमा की पहरेदारी करने की जिम्मेदारी है। इसका मुखिया पुलिस महानिरिक्षक रैंक का अधिकारी होता है जो सेना के मेजर जनरल के समतुल्य है।
पीटीआई भाषा को मिले दस्तावेज के अनुसार फ्रंटियर को मार्च अंत तक ‘‘दल-बल और साजो-सामान’’ के साथ लेह पहुंच जाने को कहा गया है। उसे नई जगह पर एक अप्रैल से संचालन शुरू कर देना है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि लेह जम्मू-कश्मीर का पर्वतीय जिला है जो सेना के 14 कोर का ठिकाना है। नया स्थानांतरण ‘‘सामरिक एवं रक्षा आयोजना के लिए’’ दोनों बलों को बेहतर तरीके से संपर्क करने का मौका देगा।
करगिल संघर्ष के बाद सेना ने लेह में एक विशेष कोर तैयार किया जो आईटीबीपी पर संचालनात्मक नियंत्रण की मांग करता रहा है लेकिन सरकार इसे बार बार रद्द करती रही है। आईटीबीपी के महानिदेशक एसएस देसवाल ने भाषा के साथ बात में इस खबर की पुष्टि की। उन्होंने कहा, ‘‘हमें सीमा पर रहना है और यही वजह है कि फ्रंटियर को अग्रिम क्षेत्र में भेजा जा रहा है।’’ केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने 2015 में इस सामरिक कदम का प्रस्ताव तैयार किया जा चुका था लेकिन कुछ ‘‘प्रशासनिक कारणों’’ से यह साकार नहीं हो सका था।
आईटीबीपी ने हाल में ही वाहनों और संचार उपकरणों का एक यंत्रीकृत दस्ता तैनात किया है। सभी हथियार, तोपखाने और युद्धक साजो-सामान ले जाना है। लेह सड़क और वायुमार्ग दोनों से जुड़ा है। आईटीबीपी को लद्दाख की आठ हजार से 14 हजार फुट ऊंची बर्फीली पहाड़ियों पर 40 सीमा चौकी की स्थापना की इजाजत है जहां तापमान शुन्य से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे तक चला जाता है। इन चौकियों में मौसम नियंत्रण तंत्र और सुविधाएं होंगी।
अब तक लेह में आईटीबीपी का एक सेक्टर प्रतिष्ठान है जिसका नेतृत्व डीआईजी रैंक का एक अधिकारी करता है। इसके तकरीबन 90 हजार कर्मी ने सिर्फ इलाके की मनोरम पैंगोंग झील की निगरानी करते हैं, बल्कि चीन से गुजरने वाली हिमालयी पर्वतीय श्रंखला की ऊपरी हिस्सों पर भी निगाह रखते हैं।
उल्लेखनीय है कि अरूणाचल प्रदेश और लेह दोनों क्षेत्रों में चीन की जनमुक्ति सेना के प्रवेश की घटनाएं कई बार हुई हैं।