नई दिल्ली। देश में कोरोना वायरस को काबू में करने के लिए सरकार ने मार्च में ही लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी और अगर लॉकडाउन नहीं लगता तो अगस्त तक ही 25 लाख से ज्यादा लोगों की कोरोना की वजह से जान जा सकती थी। कोरोना को लेकर भारत सरकार की Department of Science & Technology द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।
कमेटी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लॉकडाउन नहीं होने की स्थिति में ही जून तक देश में एक्टिव कोरोना वायरस सिम्टोमैटिक मामलों का आंकड़ा 1.40 करोड़ हो सकता था और फरवरी 2021 तक यह आंकड़ा 2.04 करोड़ को पार कर सकता था। लेकिन समय रहते लॉकडाउन ने न सिर्फ कोरोना के संक्रमण को ज्यादा फैलने रोका बल्कि ज्यादा से ज्यादा लोगों की जान भी बच सकी।
कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक अगर सरकार सिर्फ पहली अप्रैल से पहली मई के बीच ही लॉकडाउन लगाती तो भी देश में कोरोना को लेकर स्थिति खराब हो सकती थी। रिपोर्ट के मुताबिक ऐसी स्थिति में अगस्त तक देश में 6-10 लाख लोगों की जान जा सकती थी और जुलाई तक कोरोना मरीजों का आंकड़ा 40-50 लाख तक पहुंच चुका होता, इतना ही नहीं ऐसी स्थिति में फरवरी 2021 तक कुल कोरोना मरीजों का आंकड़ा 1.5-1.7 करोड़ के बीच होता।
लेकिन सरकार ने कोरोना के खतरे को समय रहते भांप लिया था और मार्च में ही लॉकडाउन का ऐलान कर दिया था। समय रहते लॉकडाउन की वजह से ही अब देश में एक्टिव कोरोना मामलों की संख्या 8 लाख से नीचे है और सितंबर तक मौतों का आंकड़ा 1 लाख के करीब था। अगर सरकार ने समय रहते लॉकडाउन नहीं किया होता तो हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर बोझ की वजह से मृत्यु दर को संभालना मुश्किल होता।
हालांकि कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा स्थिति में भी फरवरी 2021 तक देश के कुल कोरोना मरीजों की संख्या 1.06 करोड़ तक पहुंच सकती है। कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश और बिहार में प्रवासी मजदूरों की वजह से संक्रमण का प्रभाव बहुत मामूली रहा है।
कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अभी भी कोरोना का खतरा कम नहीं हुआ है और आगे कोरोना से सतर्कता बहुत जरूरी है। रिपोर्ट में कहा गया है ठंड के मौसम में कोरोना का संक्रमण कैसा होगा इसके बारे में फिलहाल कोई जानकारी नहीं है।