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मुसलमानों को खलनायक दिखाने के लिए पैदा किए गए मिथक तोड़ने होंगे: पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त

देश के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा कि मुसलमानों को खलनायक के तौर पर दिखाने के लिए ‘‘हिंदुत्व समूहों द्वारा पैदा किए गए मिथकों’’ को तोड़ने का समय आ गया है। 

Reported by: Bhasha
Published on: March 07, 2021 16:35 IST
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी

नयी दिल्ली। देश के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस वाई कुरैशी ने कहा कि मुसलमानों को खलनायक के तौर पर दिखाने के लिए ‘‘हिंदुत्व समूहों द्वारा पैदा किए गए मिथकों’’ को तोड़ने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि इस्लाम परिवार नियोजन की अवधारणा का विरोध नहीं करता है और मुस्लिम भारत में सबसे कम बहुविवाह करने वाला समुदाय है।

कुरैशी ने अपनी नयी किताब ‘द पॉप्युलेशन मिथ: इस्लाम, फैमिली प्लानिंग एंड पॉलिटिक्स इन इंडिया’ में तर्क दिया है कि मुसलमानों ने जनसंख्या के मामले में हिंदुओं से आगे निकलने के लिए कोई संगठित षडयंत्र नहीं रचा है और उनकी संख्या देश में हिंदुओं की संख्या को कभी चुनौती नहीं दे सकती।

कुरैशी ने अपनी इस किताब के संबंध में ‘पीटीआई भाषा’ को फोन पर दिए साक्षात्कार में कहा, ‘‘यदि आप कोई झूठ सौ बार बोलें, तो वह सच बन जाता है।’’ उन्होंने कहा कि यह दुष्प्रचार ‘‘बहुत प्रबल’’ हो गया है और वर्षों से इस समुदाय के खिलाफ प्रचारित की जा रही इस बात को चुनौती देने का समय आ गया है। कुरैशी ने कहा कि एक मिथक यह है कि इस्लाम परिवार नियोजन के खिलाफ है और अधिकतर मुसलमान भी इस पर भरोसा करते हैं, लेकिन यह बात कतई सही नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘‘इस्लामी न्यायशास्त्र को यदि ध्यान से पढ़ें, तो यह पता चलता है कि इस्लाम परिवार नियोजन के खिलाफ कतई नहीं है। इसके विपरीत यह इस अवधारणा का अग्रणी है, लेकिन कुरान और हदीस की तोड़-मरोड़ की गई व्याख्याओं के कारण यह तथ्य धूमिल हो गया।’’ कुरैशी ने कहा, ‘‘मैंने तर्क दिया है कि कुरान ने परिवार नियोजन को कहीं भी प्रतिबंधित नहीं किया है।’’ उन्होंने कहा कि इस्लाम परिवार नियोजन के विचारों का समर्थक है, क्योंकि यह युवाओं से तभी विवाह करने की अपेक्षा करता है, जब वे अपने परिवार के पालन-पोषण के योग्य हो जाएं।

जुलाई 2010 से जून 2012 तक मुख्य निर्वाचन आयुक्त रहे कुरैशी ने कहा, ‘‘इस्लाम मां और बच्चे के स्वास्थ्य और उचित लालन-पालन पर जोर देता है।’’ कुरैशी ने अपनी पुस्तक में तर्क दिया कि परिवार नियोजन हिंदू बनाम मुसलमान का मामला नहीं है, क्योंकि दोनों समुदाय परिवार नियोजन व्यवहार को प्रभावित करने वाले सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में ‘‘कंधे से कंधा’’ मिलाकर खड़े हैं।

उन्होंने कहा कि यह सच है कि भारत की जनसांख्यिकी में हिंदू-मुस्लिम प्रजनन संबंधी अंतर बना हुआ है, लेकिन इसका मुख्य कारण साक्षरता, आय और सेवाओं तक पहुंच जैसे मामलों में मुसलमानों का अपेक्षाकृत पिछड़ा होना है। कुरैशी ने अपनी किताब में बहुविवाह जैसे मिथक को तोड़ने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व समूहों ने यह दुष्प्रचार किया है कि मुसलमान चार महिलाओं से विवाह करते हैं ताकि वे अपनी जनसंख्या बढ़ा सकें, जो निराधार है।

उन्होंने कहा, ‘‘1931 से 1960 तक की जनगणना से पुष्टि होती है कि सभी समुदायों में बहुविवाह कम हुआ है और इस मामले पर मौजूद एकमात्र सरकारी रिपोर्ट के अनुसार मुसलमानों में बहुविवाह का चलन सबसे कम है।’’ कुरैशी ने कहा कि यह अवधारणा भी गलत है कि इस्लाम में महिलाओं के साथ बुरा सुलूक होता है। उन्होंने कहा कि इस्लाम ने 14 सदी पहले ही महिलाओं को हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर दर्जा दे दिया था। मुसलमान महिलाओं को 1,400 साल पहले ही सम्पत्ति के अधिकार मिल गए थे, जबकि शेष दुनिया में ऐसा 20वीं सदी में हुआ। 

 

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