Friday, November 22, 2024
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इमरजेंसी के दौरान पुलिस ने कैसे किया था टॉर्चर, INDIA TV के एडिटर इन चीफ रजत शर्मा की अनकही दास्तां

इक्कीस महीने बाद जब चुनाव हुए तो जनता ने कांग्रेस को उखाड़ फेंका। इंदिरा गांधी और संजय गांधी चुनाव हार गए। जो नई सरकार बनी उसने संविधान में ऐसे बदलाव किए कि अब किसी के लिए इमरजेंसी लगाना मुश्किल है। जनता के अधिकारों को छीनना अब आसान नहीं है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: June 25, 2020 23:24 IST
इमरजेंसी के दौरान पुलिस ने कैसे किया था टॉर्चर, INDIA TV के एडिटर इन चीफ रजत शर्मा की अनकही दास्तां- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV इमरजेंसी के दौरान पुलिस ने कैसे किया था टॉर्चर, INDIA TV के एडिटर इन चीफ रजत शर्मा की अनकही दास्तां

नई दिल्ली: 25 जून 1975 को पूरे देश में इमरजेंसी लगा दी गई थी और रातों रात देश के हर विरोधी दल के नेता को जेल में डाल दिया गया था। इमरजेंसी का विरोध करनेवालों को पुलिस का जुल्म भी झेलना पड़ा था। 45 साल पहले हुई इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को इंडिया टीवी के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा ने याद करते हुए अपनी आपबीती दर्शकों के साथ साझा की। इंडिया टीवी के शो आज की बात की शुरुआत उन्होंने इमरजेंसी की घटना को याद करते हुए किया। उन्होंने कहा, 'वो काली रात मुझे आज भी याद है, जब लोकतंत्र का गला घोंटा गया था। रातों-रात देश के हर विरोधी दल के नेता को जेल में डाल दिया गया था।अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गई थी। अदालतों के गले में फंदा डाल दिया गया।' 

रजत शर्मा ने कहा कि इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए इमरजेंसी लगाई थी। उन्होंने कहा, 'इमरजेंसी लागू होते ही सारी ताकत इंदिरा गांधी के बेटे संजय गाधी के हाथ में आ गई। कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता संजय गांधी के सामने कांपते थे। पूरा देश एक तरह से एक जेल में तब्दील हो गया था। चारों ओर डर और खौफ का माहौल था।' 

उन्होंने कहा, 'मेरी उम्र सिर्फ 18 साल थी और मैं श्रीराम कॉलेज में पढ़ता था। उस समय देश में चल रहे जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में शामिल था। अरूण जेटली दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष थे और पूरे देश की छात्र संघर्ष समिति के भी अध्यक्ष थे। मैं उनकी टीम में था। 25 जून की रात पुलिस अरुण जेटली को गिरफ्तार करने उनके घर पहुंची। अरुण जेटली के पिता वकील थे। उन्होंने पुलिस को कानूनी बातों में उलझाया और अरूण जेटली आधी रात को पिछले दरवाजे से निकल गए। उसी रात कॉलेज के हॉस्टल में हम सब लोग मिले। इसमें विजय गोयल भी थे। सुबह तक तो पता भी नहीं था कि रात को देश के बड़े-बड़े नेताओं मुरारजी देसाई,अटल बिहारी वाजपेयी, चौधरी चरण सिंह, चन्द्रशेखऱ, प्रकाश सिंह बादल सबको जेल में डाल दिया गया था। पूरे देश में एक ही रात में हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया।'

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रजत शर्मा ने कहा- 'हमें इस बात का भी अंदाजा नहीं था कि इमरजेंसी क्या होती है। हमने यूनिवर्सिटी में एक जुलूस निकाला और तानाशाही के खिलाफ नारे लगाए। हमारे नारे थे 'सच कहनाअगर बगावत है तो समझो हम भी बागी हैं'। आज भी वो नारे मेरे कानों में गूंजते हैं। लेकिन जब जुलूस खत्म हुआ उसके बाद अरूण जेटली यूनिवर्सिटी के कॉफी हाउस में स्टूडेट्स को संबोधित कर रहे थे। उसी वक्त चारों तरफ से पुलिस ने घेर लिया। जो पुलिसवाले हमें जानते थे और दोस्त थे, उन्होंने कान में कहा भाग जाओ। मैं और विजय गोयल स्कूटर पर बैठकर भाग निकले। लेकिन अरूण जेटली को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और जेल भेज दिया। धीरे-धीरे पता चला कि इमरजेंसी में जनता के सारे अधिकार छीन लिए गए थे। पुलिस को देखते ही गोली मारने का अधिकार था। न बोलने की आजादी थी और न लिखने की। अखबारों पर सेंसरशिप लगा दी गई थी और हम लोग अंडर ग्राउंड हो गए। 

इमरजेंसी के दौरान अंडर ग्राउंड होने के बाद रजत शर्मा ने अखबार निकालना शुरू किया। उन्होंने कहा-' मैंने और विजय गोयल ने मिलकर एक अखबार निकालने का फैसला किया। इस हस्तलिखित अखबार (हैंडरिटन न्यूजपेपर) का नाम रखा मशाल। इस अखबार में हमने पूरी बैकग्राउंड लिखी। कैसे इलहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का इलेक्शन सेटअसाइड कर दिया था। जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने कहा कि इंदिरा जी ने चुनाव जीतने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा लिया था। इसके बाद पूरे देश से उनके इस्तीफे की आवाज उठने लगी। जयप्रकाश नारायण ने नारा लगाया 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'। इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बने रहने के लिए इमरजेंसी लगाई थी। हम इस अखबार में लिखते थे कि कैसे संजय गांधी पर्दे के पीछे से सत्ता का इल्तेमाल करते थे। कैसे वो अनकॉन्स्टीट्यूशनल पावर बन गए थे। हम अपने अखबार मशाल में जेल में बंद नेताओं का हाल भी लिखते थे, उनके संदेश छापते थे। रात में इस साइक्लोस्टाइल अखबार की कॉपियां अंधेरे में लोगों के घरों में डाल देते थे।'

रजत शर्मा ने बताया कि अखबार निकालने के दौरान ही एक दिन वे पुलिस की पकड़ में आ गए। उन्होंने कहा-'एक रात पुलिस ने छापा मारा। विजय गोयल अंधेरे का फायदा उटाकर भाग गए और मैं उस अखबार की कॉपियां समेटने के चक्कर में पकड़ा गया। थाने में पुलिस ने काफी पिटाई की। पहले थप्पड़- घूंसे मारे और फिर डराया कि बर्फ की सिल्ली पर लिटा देंगे। मैं बहुत पतला-दुबला था। लेकिन पता नहीं क्यों डर नहीं लगा। रात में पुलिस ने कुर्सी पर बैठा कर पैर सामने बांध दिए और सिनस पर डंडे मारे। खून भी निकला लेकिन पता नहीं कहां से हिम्मत और ताकत आई कि मैंने उन्हें कुछ नहीं बताया। 17 -18 की उम्र क्या होती है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी छिनने का बड़ा दुख था। बाद में मुझे तिहाड़ जेल भेज दिया गया'

रजत शर्मा ने इमरजेंसी के दौरान लोगों में खौफ का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा-'आज के जमाने के लोग समझ भी नहीं पाएंगे उन इक्कीस महीनों में कितना खौफ था। कितनी घुटन थी।कितने जुल्म हुए। तब न प्राइवेट टीवी था, न सोशल मीडिया। दूरदर्शन और ऑल इंडिया रेडियो पर सिर्फ सरकारी खबरें बताई जाती थी।  मैं एक किस्सा आपको बताता हूं। एक दिन संजय गांधी ने तय किया कि इमरजेंसी के समर्थन के लिए फिल्म सितारों का शो किया जाए। दिल्ली में शो ऑर्गेनाइज किया गया। इस शो का नाम था 'गीतों भरी शाम' इनका आयोजन यूथ कांग्रेस ने किया था। सारे फिल्म स्टार्स को मुफ्त में आना पड़ा। दिलीप कुमार, राजकपूर से लेकर लता मंगेशकर, मुकेश,अमिताभ बच्चन, शशि कपूर, राखी,अमजद खान, ऋषि कपूर तक सब लोग आए। बस एक किशोर कुमार ने आने से इंकार कर दिया। बस उसी दिन से किशोर कुमार के गाने रेडियो पर बैन कर दिए गए। फिल्म प्रोड्यूशर्स को हिदायत दी गई कि कोई किशोर कुमार को रिकॉर्ड न करे। ऐसी थी तानाशाही।'

रजत शर्मा ने आगे कहा-'ऐसे सैकड़ों किस्से मेरे पास में हैं लेकिन 'अंधेरा छटा...सूरज निकला'। इक्कीस महीने बाद जब चुनाव हुए तो जनता ने कांग्रेस को उखाड़ फेंका। इंदिरा गांधी और संजय गांधी चुनाव हार गए। जो नई सरकार बनी उसने संविधान में ऐसे बदलाव किए कि अब किसी के लिए इमरजेंसी लगाना मुश्किल है। जनता के अधिकारों को छीनना अब आसान नहीं है। आज के दिन उन तमाम लोगों को याद करना चाहिए। जिनके त्याग और तपस्या से अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता बच पाई। जेल में मैने देखा था कि संघर्ष में RSS और जमात-ए-इस्लामी साथ थे। जनसंघ और समाजवादी साथ थे। अकाली और कांग्रेस के बागी साथ थे। सब मिलकर साथ लड़े। एक बात साफ हो गई कि हमारे देश के लोग दो वक्त भूखे रह सकते हैं, पुलिस का जुल्म सह सकते हैं लेकिन अपने बोलने की आजादी को किसी कीमत पर खोना नहीं चाहते। उस वक्त के जुल्म को याद रखना चाहिए, उस वक्त के संघर्ष को याद रखना चाहिए। इमरजेंसी के वक्त देश भर में जैसी एकजुटता थी वैसी ही एकजुटता की आज भी जरूरत है। आज भी चीन के खिलाफ देश एक है।आज भी सिर्फ कांग्रेस देश से अलग खड़ी है।

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