नई दिल्ली: प्रशंसित पत्रकार एवं लेखक बर्टिल लिंटनर के अनुसार चीन के साथ अगला बड़ा संघर्ष हिमालय पर नहीं बल्कि हिंद महासागर को लेकर होगा। लिंटनर ने यहां बुधवार शाम को अपनी नई किताब 'चाइनाज इंडिया वॉर : कोलिशन कोर्स ऑन द रूफ' के विमोचन के दौरान एक पैनल चर्चा में बोलते हुए वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) पहल के तहत चीन के समुद्री रुझान पर प्रश्न किया। लिंटनर ने कहा, "आपने ओबीओआर- वन बेल्ट वन रोड के बारे में सुना होगा। वह पुराने व्यापार मार्गों को पुनर्जीवित करना चाहते हैं। उनके पास एक समय सिल्क रोड नामक भूमि मार्ग था। लेकिन एक समुद्री सिल्क रूट? यह क्या है।"
उन्होंने कहा कि आखिरी बार चीनी जहाजों ने हिंद महासागर में 15वीं सदी में प्रवेश किया था, जब यून्नान प्रांत के मुस्लिम झेंग हे अपने नौसेनिक बेड़े के साथ भारत, दक्षिण पूर्व एशिया और अफ्रीका के लिए रवाना हुए थे। यह बताते हुए कि झेंग केवल एक खोजी था, लिंटनर ने कहा कि उसके बाद चीन ने महासागरों में रुचि नहीं दिखाई।
उन्होंने कहा, "चीन के पास कभी अपनी नौसेना नहीं थी। अपने देश में डाकुओं से निपटने के लिए उनके पास सिर्फ नदियों में गश्त लगाने वाली नौकाएं थी। अब चीन पहली बार एक नौसेना का विकास कर रहा है।" उन्होंने कहा, "वह 600 सालों तक हिंद महासागर से दूर रहे.. मुझे नहीं लगता कि हिमालय में युद्ध होने वाला है। चीन के साथ किसी भी प्रकार का संघर्ष हिंद महासागर में होगा।"
अपनी नई किताब में लिंटनर ने माना कि 1962 भारत-चीन युद्ध के लिए भारत को जिम्मेदार माना जाता है जबकि असल में चीन ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सीमावर्ती क्षेत्रों में फॉरवर्ड पॉलिसी शुरू करने से पहले ही 1959 में युद्ध की तैयारी शुरू कर दी थी। नेविल मैक्सवेल की किताब 'इंडियाज चाइना वॉर' में कहा गया कि भारत ने चीन को युद्ध के लिए उकसाया था। इस पर लिंटनर ने प्रश्न करते हुए कहा कि जमीनी हकीकत को देखकर यह सच नहीं लगता।
दक्षिणपूर्वी और दक्षिण एशिया पर अपनी विशेषज्ञता के लिए जाने-जाने वाले स्वीडन के पत्रकार लिंटनर ने 1961 के नवंबर में भारत द्वारा अपनाए गए फॉरवर्ड पॉलिसी की ओर संकेत करते हुए कहा कि कैसे चीन दुनिया के सबसे कठिन इलाकों में से एक क्षेत्र में एक वर्ष से भी कम समय में भारी सैन्य उपकरणों सहित हजारों सैनिकों को जुटाने में सक्षम रहा। लिंटनर का मानना है कि मैक्सवेल ने यह कहकर गलती की कि चीन के साथ भारत के सीमावर्ती मुद्दों के कारण 1962 का युद्ध शुरू हुआ था।
यह बताते हुए कि 1962 में चीन एक अत्यंत गोपनीय देश था, लिंटनर ने कहा कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी में माओ से-तुंग (माओ जेदोंग) की स्थिति 1950 के दशक में काफी अस्थिर हो गई थी, क्योंकि चीन को औद्योगिक बनाने की उनकी नीति ग्रेट लीप फॉरवर्ड पॉलिसी त्रासदी में बदल गई थी। लिंटनर ने कहा, "उस तरह की स्थिति में किसी विवादित सीमा पर किस तरह का देश युद्ध में कूदेगा? केवल एक ऐसा देश या देश का नेता जिसे अपनी पार्टी को एकजुट करने की जरुरत हो और जो दोबारा शक्ति पाने के लिए सरकार और सेना को अपने साथ करना चाहता हो।"
भारत ने चीन के साथ युद्ध क्यों किया इसपर लिंटनर ने कहा कि तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा 1959 में भारत आ गए। सीमा विवाद के साथ बीजिंग के लिए नई दिल्ली को दुश्मन कहना और सुविधाजनकहो गया था। लिंटनर ने इसका का एक अन्य कारण यह बताया कि 1950 के दशक में भारत नए स्वतंत्र देशों की आवाज था, जबकि माओ तीसरी दुनिया का नेता बनना चाहते थे।