बलात्कार (शब्द)...हमें चुभता हैं....शर्मसार करता है..दु:ख पहुचाता है...रूह कंपाता है...
जब-जब वीभत्स कर्म हमारे बीच आता है....देश भर में गुस्सा फूटता है....
जघन्य अपराध के कई रिकॉर्ड हैं जब हमारे समाज में इस तरह की क्रूरता हुई....
आंकड़ों का ऐसा अंबार है, जिसने सभ्य इंसान और व्यवस्था को शर्मिंदा कर दिया, लेकिन....
क्या ये गुस्सा धीरे-धीरे बैठ गया है ??
अब क्या होगा...??
क्या फिर शर्मसार करने वाली....अंतरात्मा को झकझोरने वाली घटना का इंतज़ार करेंगे..??
क्या बार-बार उस दर्द को महसूस करेंगे जो मासूम बच्चियों को हमेशा-हमेशा के लिए मार देता है...??
क्या बदला....2012 से 2018 तक....निर्भया से कठुआ तक...!
सिर्फ आंकड़े....पिछले करीब साढ़े पांच साल मे आंकड़े बढ़कर डेढ़ लाख हो गए...ये सिर्फ वो आंकड़े हैं जो देश मे ऑन रिकॉर्ड है....!
इन आंकड़ों का मतलब समझते हैं...हर 18 मिनट मे एक बलात्कार !
क्या हुआ.... कुछ शर्मिंदगी महसुस हूई...??
क्या लगता है....सिर्फ सुविधाओं और सहूलियत से समाज बनता है...
क्या वजह है जो ऐसे मामले बढ़ते जा रहे हैं..??..इंसानियत मरती जा रही है....??
और सबसे बड़ा अफसोस....इंसाफ छिटकता जा रहा है....?
क्या हम इतने बेफिक्र लोग है....नाबालिग या उसके जैसी बच्चियों को क्या हम कुछ ही दिनों मे भूल जाएंगे....
इन बच्चियों के नाम भी क्या सिर्फ डेटा और रिकॉर्ड मे दफ्न हो जाएंगे...?
क्या वाकई कोई फर्क नहीं पड़ता...हम इतने बेफिक्र.... बेशर्म हो गए हैं..?
रेप ...यौन शोषण ...ये कोई सामान्य घटना नहीं हैं...असामान्य है..बर्बर है....बर्बरता की कोई डिग्री तय नहीं की जा सकती....?
तो फिर क्यों हर बार ये नारा कि सबको समान अधिकार ...सर्वधर्म समभाव....?
कोई खौफ नहीं ...कोई डर नहीं...सज़ा को लेकर कोई सख्त कानून नहीं....?
औरतों ....बच्चियों के साथ होने वाले अपराधों में सज़ा की दर बहुत कम है.... 5 में से 1 से भी कम अपराधी को अदालतों मे सज़ा दी जाती हैं....उससे भी बड़ा दुख इस बात का कि अगर आप किसी भी लड़की के साथ अपराध करेंगे तो 5 में से 4 बार आसानी से आज़ाद हो जाएंगे...
इस मरे हुए समाज में अगर आज आप जिंदा है तो इस बात को समझिए कि सभी को सोच बदलनी होगी...औरतों का साथ देने के लिए ...महिलाओं के हक के लिए आवाज़ उठाने के लिए औरत होना ज़रुरी नहीं...बल्कि मर्द भी बोल सकते हैं।
इस बात को इस तरह देखने की ज़रूरत है कि सभ्य समाज में न सिर्फ अपनी आवाज़ बुलंद की जाए बल्कि औरतों के प्रति ऐसी सोच पेश की जाए कि समाज में महिलाएं सुरक्षित महसुस कर सकें...
हकीकत में महिलाओं के प्रति नज़रिए में बदलाव तभी संभव है...जब वाकई इंसान की सोच ...उसका व्यवहार अच्छा हो....चाहे शख्स पढ़ा-लिखा हो या अनपढ़...उसकी सोच ही साबित कर सकती है कि वो अपने साथ, अपने आस-पास रहने वाली महिलाओं, लड़कियों, बच्चियों को कितना सम्मान देता है। न सिर्फ महिला होना सम्मान की बात है..उस सम्मान को बनाए रखना उससे भी बड़ी बात है।
(ब्लॉग लेखिका सुरभि आर शर्मा देश के नंबर वन चैनल इंडिया टीवी में न्यूज एंकर हैं)