Friday, November 22, 2024
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विरोध के बाद भी मासूम बेटी को छोड़कर अनामिका ने लिया संन्यास, पति ने पहले ही ले ली थी दीक्षा

मध्य प्रदेश के नीमच जिले के करोड़पति कारोबारी परिवार के बेटे के बाद उनकी बहू अनामिका ने भी तमाम विरोधों को दरकिनार करते हुए सोमवार को गुजरात के सूरत में दीक्षा ले ली।

Edited by: India TV News Desk
Updated on: September 26, 2017 15:54 IST
anamika diksha- India TV Hindi
anamika diksha

नीमच/सूरत: मध्य प्रदेश के नीमच जिले के करोड़पति कारोबारी परिवार के बेटे के बाद उनकी बहू अनामिका ने भी तमाम विरोधों को दरकिनार करते हुए सोमवार को गुजरात के सूरत में दीक्षा ले ली। दंपति ने अपनी दो वर्ष 10 माह की बेटी इभ्या को अनामिका के भाई व भाभी (इभ्या के मामा-मामी) के हवाले कर दिया है।

नीमच के जैन समाज से मिली जानकारी के अनुसार, सुमित राठौर और उनकी पत्नी अनामिका ने दीक्षा लेने का संकल्प लिया, मगर सवाल उठे कि उनकी दुधमुंही बेटी है, तो उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए। परिवार के लोग भी यही चाहते थे मगर वह दोनों किसी भी स्थिति में राजी नहीं हुए।

पति पहले ही बन गए थे सुमित राठौर से सुमित मुनि

पूर्व घोषित कार्यक्रम के मुताबिक, दंपति को सूरत में 23 सितंबर को दीक्षा लेना थी, मगर इभ्या का मामला राजस्थान मानवाधिकार आयोग के पास पहुंचने के चलते अनामिका की दीक्षा नहीं हो पाई। सुमित ने विधिवत दीक्षा ली और वह सुमित राठौर से सुमित मुनि बन गए।

दीक्षा लेने से पहले भाई-भाभी को सौंपी बेटी

जैन समाज के लोगों के अनुसार, अनामिका 23 सितंबर को सूरत से लौट आई और उसने बेटी इभ्या को अपने भाई-भाभी को सौंपने यानि गोद देने की प्रक्रिया पूरी की। उसके बाद 25 सितंबर को सूरत में आयोजित समारोह में आचार्य रामलाल से विधिवत दीक्षा ले ली। अनामिका का मायका राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के कपासन में है।

सूरत में आयोजित दीक्षा कार्यक्रम में हिस्सा लेकर लौटे लोगों के अनुसार, सोमवार की सुबह अनामिका को दीक्षित किया गया। उसके बाद उनका मुंडन कराया गया और सफेद वस्त्र धारण कराए गए और उन्हें नया नाम साध्वी अनाकार श्रीजी मिला।

सुमित ने लंदन से फॉरन ट्रेड में किया था MBA, अनामिका ने की है इंजीनियरिंग

सुमित के चाचा सुशील ने मंगलवार को बताया कि सुमित ने लंदन से फॉरन ट्रेड में एमबीए किया था। वहीं अनामिका ने इंजीनियरिंग की है। जब उनसे सुमित व उनकी पत्नी द्वारा इतनी कम उम्र में दीक्षा लेकर मुनि व साध्वी बनने को लेकर सवाल किया गया तो उनका कहना था कि यह भाव कब किसमें आ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। वैराग्य और सन्यास की कोई उम्र नहीं है।

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