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केंद्र को यूनिटेक का प्रबंधन लेने की अनुमति देने वाले एनसीएलटी के आदेश पर SC की रोक

न्यायालय ने कल केंद्र से सवाल किया था कि यूनिटेक के निदेशकों को निलंबित करने तथा उनकी जगह सरकार के प्रतिनिधियों को नामित करने के लिए एनसीएलटी में जाने की खातिर उसने उच्चतम न्यायालय की अनुमति क्यों नहीं ली। रीयल एस्टेट फर्म और उसके प्रमोटरों की ओर से

Reported by: Bhasha
Published on: December 13, 2017 13:50 IST
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नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के आठ दिसंबर के उस आदेश पर आज रोक लगा दी जिसमें केंद्र को रियलिटी फर्म यूनिटेक लिमिटेड का प्रबंधन अपने हाथ में लेने की अनुमति दी गई थी। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल के इस कथन पर विचार किया कि जब यह मामला शीर्ष न्यायालय में विचाराधीन है तब सरकार को राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) नहीं जाना चाहिए था। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र के एनसीएलटी में जाने पर कल अपनी नाखुशी जाहिर की थी। न्यायालय ने कहा था कि एनसीएलटी के आदेश पर रोक न्याय के हित में है।

न्यायालय ने कल केंद्र से सवाल किया था कि यूनिटेक के निदेशकों को निलंबित करने तथा उनकी जगह सरकार के प्रतिनिधियों को नामित करने के लिए एनसीएलटी में जाने की खातिर उसने उच्चतम न्यायालय की अनुमति क्यों नहीं ली। रीयल एस्टेट फर्म और उसके प्रमोटरों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ताओं मुकुल रोहतगी और रंजीत कुमार ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने मकान खरीदने वालों का पैसा लौटाने के लिए 750 करोड़ रूपये की व्यवस्था करने के उद्देश्य से समस्त संपत्ति बेचने की खातिर यूनिटेक के प्रमुख संजय चंद्रा को जेल से बातचीत करने के वास्ते समय दिया था। लेकिन इसी बीच केंद्र ने एनसीएलटी से संपर्क कर लिया।

रोहतगी ने दावा किया था कि एनसीएलटी ने कंपनी और उसके निदेशकों को कोई नोटिस नही दिया और उनका पक्ष जाने बगैर ही अंतरिम आदेश दे दिया जो की एक तरह से अंतिम आदेश है। एनसीएलटी ने केंद्र को रीयल एस्टेट फर्म का प्रबंधन अपने हाथ में लेने की अनुमति दे दी। इससे पहले, उच्चतम न्यायालय कल यूनिटेक लिमिटेड की उस अपील पर आज सुनवाई के लिए सहमत हो गया था जिसमे केंद्र को रीयल एस्टेट फर्म का प्रबंधन अपने हाथ में लेने की अनुमति देने के न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती दी गई है।

एनसीएलटी ने आठ दिसंबर को यूनिटेक लि के सभी आठ निदेशकों को, कुप्रबंधन तथा धन की हेराफेरी के आरोपों की वजह से निलंबित कर दिया था और केंद्र को यह अधिकार दिया था कि वह बोर्ड में अपने दस सदस्य नामित करे। एनसीएलटी ने यह आदेश तब दिया जब केंद्र घर खरीदने वाले करीब 20,000 लोगों के हितों की रक्षा के मद्देनजर न्यायाधिकरण से अनुरोध किया था। यूनिटेक का आरोप है कि अगर कंपनी का प्रबंधन केंद्र के हाथों में चला जाएगा तो उसके लिए (उच्चतम न्यायालय के आदेशानुसार) 750 करोड़ रूपये जमा करना मुश्किल हो जाएगा। न्यायालय ने घर खरीदने वालों के हितों की रक्षा के लिए फर्म को 750 करोड़ रूपये जमा करने का आदेश दिया था।

रीयल एस्टेट फर्म के प्रमुख संजय चंद्रा से उच्चतम न्यायालय ने 30 अक्तूबर को कहा था कि घर खरीदने वालों के हितों की रक्षा करने के लिए वह दिसंबर तक उसके समक्ष 750 करोड़ रूपये जमा करवाएं। चंद्रा के वकील ने उच्चतम न्यायालय को बताया कि उन्हें विभिन्न अदालतों, उपभोक्ता फोरम तथा आयोगों में नियमित आधार पर पेश किया जाना है जिससे धन की व्यवस्था करने में उन्हें बाधा आएगी। इसलिए विभिन्न न्यायिक निकायों द्वारा उनके खिलाफ जारी पेशी वारंटों पर 15 दिन के लिए रोक लगाई जाए।

उन्होंने यह भी कहा कि आरोपी को उनके वकीलों के माध्यम से अदालत में पेश होने की अनुमति दी जाए। यह अपील अस्वीकार कर दी गई। उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उसने पूर्व में सभी अधीनस्थ अदालतों को आरोपियों के खिलाफ फिलहाल कार्रवाई नही करने का आदेश दिया था। यह आदेश राज्य एवं राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोगों सहित सभी उपभोक्ता मंचों पर भी लागू होगा। पूर्व में उच्चतम न्यायालय ने सभी जेल अधिकारियों को चंद्रा की उनके कंपनी अधिकारियों तथा वकीलों के साथ मुलाकात की व्यवस्था करने के लिये कहा था ताकि वह मकान खरीदने वालों का पैसा वापस करने के लिए रूपयों का इंतजाम कर सकें तथा जारी आवास परियोजनाओं को पूरा किया जा सके।

साथ ही न्यायालय ने कहा था कि चंद्रा तथा कंपनी के खिलाफ लंबित कोई भी कार्रवाई भले ही जारी रहे और अंतिम आदेश जारी किया जाए लेकिन इन आदेशों की तामील के लिए बलपूर्वक कोई कार्रवाई न की जाए। गुड़गांव में यूनिटेक की परियोजनाओं ... वाइल्ड फ्लॉवर कंट्री और एनदी प्रोजेक्ट में घर खरीदने वाले 158 खरीददारों ने वर्ष 2015 में एक आपराधिक मामला दर्ज कराया था। इसी मामले में चंद्रा ने उच्चतम न्यायालय से अंतरिम जमानत मांगी थी। इससे पहले, 11 दिसंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय उनका अनुरोध ठुकरा चुका है।

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