नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान खत्म करने के बाद लगायी गयी पाबंदियों से संबंधित मुद्दों की गंभीरता वह समझता है। न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब इस मामले में एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि नागरिकों के अधिकारों से संबंधित मामले की सुनवाई स्थगित कराके सरकार ने इसमें विलंब कर दिया है।
पीठ ने इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान जम्मू-कश्मीर प्रशासन का प्रतिनिधित्व कर रहे सालिसीटर जनरल तुषार मेहता अथवा किसी भी अतिरिक्त सालिसीटर जनरल के न्यायालय में उपस्थित नहीं रहने पर अप्रसन्नता व्यक्त की। पीठ ने कहा, ‘‘हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि किसी भी आधार पर मामले को स्थगित नहीं किया जायेगा। बेहतर होगा कि सालिसीटर जनरल इस मामले में पेश हों और बहस करें। पीठ ने कहा, ‘‘हम इस विषय की गंभीरता के प्रति सचेत हैं।’’
भोजनावकश के बाद आगे शुरू हुयी सुनवाई के दौरान न्यायालय में दो अतिरिक्त सालिसीटर जनरल उपस्थित थे। दवे ने अपनी बहस आगे बढ़ाते हुये कहा कि अगस्त से अक्टूबर के दौरान शीर्ष अदालत में लंबित इस मामले में कुछ नहीं हुआ क्योंकि तीन महीने से अधिक समय से पाबंदियां लगी होने के तथ्य के बावजूद सरकार ने सुनवाई स्थगित करायी। पीठ ने जब दवे से यह पूछा कि क्या वह मामले की सुनवाई में विलंब के लिये न्यायालय की आलोचना कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि वह सरकार के रवैये के खिलाफ हैं।
दवे ने कहा, ‘‘यह बहुत ही गंभीर मामला है। शीर्ष अदालत इसकी सुनवाई करने के प्रति गंभीरता दिखा रही है।’’ दवे ने कहा कि देश में अदालतें ही नागरिकों के अधिकारों की ‘सर्वोच्च संरक्षक’ हैं और शीर्ष अदालत ने हमेशा ही लोगों के अधिकारों की रक्षा की है। उन्होंने कहा कि घाटी में करीब 70 लाख लोग रहते हैं और सरकार आतंकवाद से कश्मीर के प्रभावित होने के नाम पर इस तरह की पाबंदियों को न्यायोचित नहीं ठहरा सकती है।
दवे ने कहा, ‘‘सरकार की यह दलील सिरे से अस्वीकार करनी होगी कि कश्मीर में लंबे समय से आतंकवाद होने की वजह से ही ये सारी कार्रवाई की गयी है। ये नागरिकों की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों के रास्ते में नहीं आ सकती है। कल, वे कह सकते हैं कि नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पाबंदियां लगायी जायेंगी। क्या सरकार ऐसा कर सकती है? वे आतंकी घटनाओं की आड़ नहीं ले सकते हैं।’’
दवे ने हांगकांग में लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शन का जिक्र किया और कहा कि वहां इस तरह का कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। उन्होंने कहा कि हांगकांग में एक प्रतिबंध लगाया गया कि प्रदर्शनकारी मास्क नहीं लगा सकते और इसे भी वहां की शीर्ष अदालत ने कल रद्द कर दिया। दवे ने कहा कि प्राधिकारी अपने हलफनामे में यह नहीं कह सकते कि चूंकि यह मामला सुरक्षा से जुड़ा है, न्यायालय को इससे अलग रहना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘सरकार ने कहा है कि कृपया इस मामले में हस्तक्षेप मत कीजिये क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है।’’
उन्होंने कहा कि सरकार ने इस आधार पर भी सुनवाई स्थगित करायी थी। इस पर पीठ ने कहा, ‘‘नहीं, उन्होंने हमारे समक्ष ऐसा नहीं कहा है।’’ इस पर दवे ने कहा, ‘‘इस पीठ के समक्ष नहीं लेकिन सरकार ने इस संस्थान के समक्ष यह कहा था।’’ इस मामले में सुनवाई अधूरी रही जो अब बृहस्पतिवार को आगे जारी रहेगी।
अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान पांच अगस्त को समाप्त करने के बाद से कश्मीर घाटी में संचार व्यवस्था और इंटरनेट बाधित करने सहित अनेक पाबंदियों के खिलाफ शीर्ष अदालत में कई याचिकायें दायर की गयी हैं। जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने संबंधी संविधान के अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधान खत्म करने के केन्द्र के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली अन्य याचिकाओं पर पांच सदस्यीय संविधान पीठ अलग से सुनवाई कर रही है।