नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आज भारतीय दंड संहिता ( भादंसं ) की धारा 377 को चुनौती देने वाली दो याचिकाओं पर केन्द्र को नोटिस जारी किया। यह धारा समान लिंग के वयस्कों के बीच आपसी सहमति से यौन संबंधों सहित अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध घोषित करती है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने एलजीबीटी अधिकार कार्यकर्ताओं आरिफ जफर , अशोक कवि तथा मुंबई के एनजीओ ‘ हमसफर ट्रस्ट’ सहित अन्य की याचिकाओं पर विधि एवं न्याय , गृह और स्वास्थ्य मंत्रालयों से जवाब मांगा।
जफर की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने कहा , ‘‘यह पहली बार है जब अदालत के सामने एक गिरफ्तार व्यक्ति भादंसं की धारा 377 को हटाने का अनुरोध कर रहा है। वह 47 दिन जेल में बंद था। ’’ जफर ने अपनी याचिका में दावा किया कि जब वह तथा उनके चार साथी, पुरूषों के साथ यौन संबंध बनाने वाले पुरूषों को कंडोम बांट रहे थे तो उनका अपमान किया गया और उन्हें सार्वजनिक रूप से पीटा गया।
इसके बाद पुलिस ने भादंसं की धाराओं 109 ( उकसाना ), 120 बी ( आपराधिक साजिश ), 292 ( अश्लील पुस्तकों की बिक्री ) और 377 ( अप्राकृतिक यौन संबंध ) के तहत उन्हें गिरफ्तार किया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय से जमानत मिलने से पहले जफर को 47 दिन जेल में बिताने पड़े।