नई दिल्ली: अयोध्या मामले में दायर पुनर्विचार याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में 'इन चैम्बर' सुनवाई खत्म हो गई है। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ इन पुनर्विचार याचिकाओं पर चैंबर में करीब 50 मिनट तक विचार-विमर्श चला। पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या जमीन विवाद मामले में नौ नवंबर को अपना फैसला सुनाया था। अदालत ने विवादित जमीन रामलला को यानी राम मंदिर बनाने के लिए देने का फैसला किया था।
अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की विशेष पीठ के 9 नवम्बर के फैसले पर पुनर्विचार के लिए कुल 18 याचिकाएं दाखिल की गई हैं। इनमें 9 याचिकाएं पक्षकारों की ओर से हैं और बाकी नौ अन्य याचिकाकर्ता हैं। मुस्लिम पक्ष से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी रिव्यू पिटिशन डाली है। इस याचिका में 14 बिन्दुओं पर पुनर्विचार का आग्रह किया गया है।
याचिकाकर्ताओं की तरफ से कहा गया है कि बाबरी मस्जिद के पुनर्निर्माण का निर्देश देकर ही इस प्रकरण में पूरा न्याय हो सकता है। इसके साथ साथ निर्मोही अखाड़े ने भी रिव्यू पिटिशन डाली है। निर्मोही अखाड़े ने जमीन के फैसले को लेकर याचिका नहीं डाली है बल्कि शैबियत राइट्स, कब्जे और लिमिटेशन के बारे में फैसले पर सवाल उठाए हैं। निर्मोही अखाड़े ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर के ट्रस्ट में भूमिका तय करने की भी मांग की है।
वहीं एक दूसरी याचिका 40 से अधिक लोगों ने संयुक्त रूप से दायर की है। संयुक्त याचिका दायर करने वालों में इतिहासकार इरफान हबीब, अर्थशास्त्री एवं राजनीतिक विश्लेषक प्रभात पटनायक, मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर, नंदिनी सुंदर और जॉन दयाल शामिल हैं।
हिन्दू महासभा ने न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करके मस्जिद निर्माण के लिये पांच एकड़ भूमि उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को आबंटित करने के निर्देश पर सवाल उठाये हैं। महासभा ने फैसले से इस अंश को हटाने का अनुरोध किया है जिसमें विवादित ढांचे को मस्जिद घोषित किया गया है।