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'नेशनल इमरजेंसी के वक्त चुप नहीं रह सकते', सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना से उपजे हालात पर केंद्र से मांगा जवाब

सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना से उपजे हालात पर स्वत: संज्ञान लेते हुए आज की सुनवाई में केंद्र सरकार से ऑक्सीजन सप्लाई से लेकर विभिन्न पहलुओं पर रिपोर्ट मांगी है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: April 27, 2021 14:46 IST
'नेशनल इमरजेंसी के वक्त चुप नहीं रह सकते', सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना से उपजे हालात पर केंद्र सरकार से - India TV Hindi
Image Source : FILE 'नेशनल इमरजेंसी के वक्त चुप नहीं रह सकते', सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना से उपजे हालात पर केंद्र सरकार से मांगा जवाब

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना से उपजे हालात पर स्वत: संज्ञान लेते हुए आज की सुनवाई में केंद्र सरकार से ऑक्सीजन सप्लाई से लेकर विभिन्न पहलुओं पर रिपोर्ट मांगी है। सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा नेशनल इमरजेंसी के वक्त चुप नहीं रह सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 टीकों की अलग-अलग कीमतें निर्धारित करने के मुद्दे पर केन्द्र सरकार से सफाई मांगी। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट अपने अधिकार क्षेत्र के दायरे में कोविड-19 की स्थिति की निगरानी करने के लिये बेहतर स्थिति में हैं। साथ ही कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कोविड-19 के प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय नीति तैयार करने पर उसकी स्वत: संज्ञान सुनवाई का मतलब हाईकोर्ट  के मुकदमों को दबाना नहीं है। 

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिसएस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर महामारी की स्थिति पर नजर रखने के लिए बेहतर स्थिति में है। पीठ ने कहा कि कुछ राष्ट्रीय मुद्दों पर शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप की आवश्यकता है क्योंकि कुछ मामले राज्यों के बीच समन्वय से संबंधित हो सकते हैं। पीठ ने कहा, ‘‘हम पूरक भूमिका निभा रहे हैं, अगर उच्च न्यायालयों को क्षेत्रीय सीमाओं के कारण मुकदमों की सुनवाई में कोई दिक्कत होती है तो हम मदद करेंगे।’’

देश के कोविड-19 की मौजूदा लहर से जूझने के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर स्थिति का गत बृहस्पतिवार को स्वत: संज्ञान लिया था और कहा था कि वह ऑक्सीजन की आपूर्ति तथा कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए आवश्यक दवाओं समेत अन्य मुद्दों पर “राष्ट्रीय योजना” चाहता है। शीर्ष अदालत ने वायरस से संक्रमित मरीजों के लिए ऑक्सीजन को इलाज का ‘‘आवश्यक हिस्सा’’ बताते हुए कहा था कि ऐसा लगता है कि काफी ‘‘घबराहट’’ पैदा कर दी गई है जिसके कारण लोगों ने राहत के लिए अलग अलग उच्च न्यायालयों में याचिकायें दायर कीं। 

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