नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि जब मादक पदार्थ संबंधी मामले सुनवाई के लिए रखे जाते हैं तो अदालतों को बताया जाता है कि पुलिस द्वारा जब्त नशीली दवाओं को चुहे खा गए। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी दिल्ली के थानों को कबाड़मुक्त बनाने संबंधी मुद्दों पर विचार करते हुए की।
पीठ ने पूछा कि थानों में बेकार पड़े जब्त वाहनों पर कई वर्षों तक अगर कोई मालिकाना हक जताने नहीं आता तो उस स्थिति में उन्हें बेचा क्यों नहीं जाता। न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर, न्यायूमूर्ति अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने ये टिप्पणियां दिल्ली पुलिस के इस बयान पर कीं कि थानों से जब्त सामान और वाहन हटाकर उन्हें कबाड़मुक्त बनाने के लिए चार सप्ताह में नीति बनाई जाएगी।
पीठ ने कहा, ‘‘एनडीपीएस (मादक पदार्थ संबंधी कानून) मामलों में, तीन चार साल बाद जब मामले विचार के लिए अदालत में आते हैं तो मालखाने में (जब्त नशीली दवाओं में से) कुछ भी नहीं बचता और पुलिस कहती है कि चूहे खा गए।’’ मालखाना थानों का वह कक्ष होता है जहां पुलिस द्वारा जांच के दौरान जब्त सामग्री रखी जाती है।
शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी करके इस मामले में मदद करने को कहा। उन्होंने कहा कि इन प्रशासनिक मुद्दों को निपटाने के लिए इस तरह की मदद की जरूरत होती है। पीठ ने इस मामले में आगे की सुनवाई के लिए 10 अक्टूबर की तारीख तय की।