नई दिल्ली: दिल्ली और एनसीआर में वायु प्रदूषण में कमी लाने के संबंध में 34 श्रेणियों के उद्योगों के लिए सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन का मानदंड तय न करने को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को पर्यावरण मंत्रालय पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया। ये उत्सर्जन मानक उन उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो उवर्रक, नाइट्रिक एसिड और अन्य खतरनाक चीजों का उत्पादन करते हैं, और जिसमें पेट कोक और फर्नेस तेल का प्रयोग होता है।
न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की खंडपीठ ने पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा 23 अक्टूबर को जारी किए गए मसौदे को अपवाद करार देते हुए मानक जारी करने में हुई देरी को 'आलसी और सुस्त' करार दिया। अदालत ने कहा कि अगर जुर्माने की रकम 2 लाख रुपये नहीं चुकाए जाते हैं तो इसके गंभीर परिणाम होंगे।
अदालत ने इस पर 'आश्चर्य' व्यक्त किया कि इस साल की 27 जून को दिए गए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की सिफारिशों पर मंत्रालय कुंडली मारकर बैठा रहा। जो मसौदा 23 अक्टूबर को जारी किया गया है, उस पर जनता को आपत्तियां दर्ज कराने के लिए 60 दिनों का समय दिया गया है। इसके बाद मंत्रालय उत्सर्जन मानदंडों को तय करने से पहले इस संबंध में मिली आपत्तियों की जांच करेगा, जोकि साल 2018 के फरवरी के पहले नहीं हो सकेगा।