सुप्रीम कोर्ट में आज किसानों से बातचीत के लिए बनाई गई कमेटी के दोबारा गठन करने की माँग वाली याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान कमेटी के सदस्यों पर आरोप लगाए जाने पर कोर्ट ने आपत्ति ज़ाहिर की। सदस्यों पर लग रहे आरोपों पर सीजेआई ने कहा कि समिति के सदस्यों की अपनी विचारधारा हो सकती है, सुप्रीम कोर्ट के जज की भी अपनी कोई न कोई विचार धारा होती है। लेकिन जब वह समित में होता है तो उस पर पूर्वाग्रहों का आरोप लगाना ठीक बात नहीं है।
उच्चतम न्यायालय ने कृषि कानूनों पर बने गतिरोध को समाप्त कराने के लिए उसके द्वारा गठित समिति के सदस्यों पर आक्षेप लगाए जाने पर अप्रसन्नता जताई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा समिति के किसी सदस्य पर केवल इस लिए आक्षेप लगा रहे हैं क्योंकि उसने कृषि कानूनों पर राय व्यक्त की है। इसमें पक्षपाती होने का प्रश्न ही कहां हैं? हमने समिति को फैसला सुनाने का अधिकार नहीं दिया है। कोर्ट ने कहा हमने समिति में विशेषज्ञों को नियुक्त किया है, क्योंकि हम विशेषज्ञ नहीं हैं।
याचिका कर्ता को लताड़ लगाते हुए कहा कि आपके आवेदन का आधार यह है कि सभी चार लोग अयोग्य हैं। सीजेआई ने पूछा कि आप उस निष्कर्ष पर कैसे आते हैं। वे कृषि के क्षेत्र में जानकार हैं। वे विशेषज्ञ हैं। अतीत में उन्होंने जो कुछ विचार व्यक्त किए हैं, उसके आधार पर आप ऐसा कैसे कह सकते हैं।
समिति के पास नहीं हैं विशेष अधिकार
कोर्ट ने साफ दिया कि समिति को कोई भी विशेष अधिकार नहीं दिया है। समिति के सदस्यों को चीजों को स्थगित करने की कोई शक्ति नहीं दी गई है। उन्हें हमें रिपोर्ट करना होगा। पूर्वाग्रह का सवाल कहां है। अगर आप समिति के सामने पेश नहीं होना चाहते हैं। तो मत दिखाइए। लेकिन किसी को इस तरह से बदनाम मत कीजिए।
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