नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परम बीर सिंह की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें उनके खिलाफ सभी जांचों को महाराष्ट्र से बाहर स्थानांतरित करने और राज्य पुलिस से सभी जांचों को एक स्वतंत्र एजेंसी को स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और वी.रामसुब्रमण्यम की पीठ ने सिंह का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील से कहा, '' जिनके घर कांच के होते हैं, वे दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते।''
पीठ ने सिंह का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी से कहा, "आप 30 साल से पुलिस फोर्स में हैं। अब आप यह नहीं कह सकते हैं कि आप राज्य के बाहर अपनी जांच चाहते हैं। आपको अपने फोर्स पर शक नहीं होना चाहिए।"
सिंह ने अपने लगाए आरोपों में कहा था तत्कालीन गृहमंत्री अनिल देशमुख ने शीर्ष पुलिस अधिकारियों को हर महीने 100 करोड़ रुपए की वसूली का टार्गेट दिया था। अपनी याचिका में उन्होंने दावा किया कि देशमुख ने उन्हें पुलिस में पोस्टिंग या तबादलों में भ्रष्टाचार सहित विभिन्न तरीकों से हर महीने 100 करोड़ रुपये जमा करने का लक्ष्य दिया था।
जेठमलानी ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल के खिलाफ मामले दर्ज किए जा रहे हैं और उन्हें पूर्व गृह मंत्री के संबंध में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को पत्र लिखने की सजा का सामना करना पड़ रहा है।
पीठ ने जवाब दिया, "यह चौंकाने वाला है कि आपने 30 साल तक एक ही सिस्टम में काम किया है और अब आप अचानक सभी पर आरोप लगा रहे हैं।"
जेठमलानी ने सिंह के खिलाफ मामलों की जांच कर रहे अधिकारियों पर राजनीतिक दबाव होने की बात कही, लेकिन शीर्ष अदालत ने आखिरकार याचिका खारिज करने का फैसला किया।
सिंह का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता पुनीत बाली ने अदालत से याचिका को खारिज नहीं करने और अपने मुवक्किल को अन्य कानूनी उपायों को आगे बढ़ाने की अनुमति देने का आग्रह किया। दलीलें सुनने के बाद पीठ ने सिंह को याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी।
एक लिखित याचिका सिंह ने आरोप लगाया था कि राज्य सरकार के जांच अधिकारी उन्हें इस बात की धमकी दे रहे हैं कि अगर वह देशमुख के खिलाफ अपनी शिकायत वापस नहीं लेते हैं, तो उन्हें झूठे मामलों में फंसा दिया जाएगा। इसी के मद्देनजर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि उनके खिलाफ पहले से शुरू की गई या विचाराधीन सभी जांच सीबीआई को हस्तांतरित कर दिया जाए।