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सुप्रीम कोर्ट का स्कूलों में योग अनिवार्य करने से इंकार

अदालत का यह फैसला एक वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय और दिल्ली भाजपा प्रवक्ता और वकील जे.सी. सेठ की दो याचिकाओं पर आया है। उपाध्याय ने अदालत से मानव संसाधन विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद और

Written by: India TV News Desk
Published on: August 08, 2017 14:09 IST
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नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि योग किसी पर थोपा नहीं जा सकता। न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत इस पर कोई फैसला नहीं कर सकती कि स्कूलों में क्या सिखाया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि इस मामले में सरकार ही फैसला ले सकती है। अदालत ने स्कूलों में कक्षा एक से आठ तक के छात्रों के लिए योग अनिवार्य करने का निर्देश देने की मांग संबंधी याचिकाएं खारिज करते हुए यह कहा। ये भी पढ़ें: नौकरीपेशा लोगों के लिए खुशखबरी, सरकार जल्द ही ले सकती है यह बड़ा फैसला

अदालत का यह फैसला एक वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय और दिल्ली भाजपा प्रवक्ता और वकील जे.सी. सेठ की दो याचिकाओं पर आया है। उपाध्याय ने अदालत से मानव संसाधन विकास मंत्रालय, राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद और केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड को 'कक्षा एक से आठ तक के छात्रों को योग और स्वास्थ्य शिक्षा पर मानक पाठ्यपुस्तकें प्रदान करने' का निर्देश देने की मांग की थी।

न्यायमूर्ति एमबी लोकुर की अगुआई वाली पीठ ने याचिका ख़ारिज करते हुए कहा कि ऐसे मुद्दे पर सरकार फैसला कर सकती है। पीठ ने कहा, ‘हम यह कहने वाले कोई नहीं हैं कि स्कूलों में क्या पढ़ाया जाना चाहिए। यह हमारा काम नहीं है। हम कैसे इस पर निर्देश दे सकते हैं।’ न्यायालय ने कहा कि उसके लिए ऐसी राहत देना संभव नहीं है जो याचिका दायर करने वाले वकील और दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय तथा जेसी सेठ ने मांगी है।

न्यायालय ने कहा, ‘स्कूलों में क्या पढ़ाया जाना चाहिए यह मौलिक अधिकार नहीं है।’ उपाध्याय ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय, एनसीईआरटी, एनसीटीई और सीबीएसई को यह निर्देश देने की मांग की थी कि वे जीवन, शिक्षा और समानता जैसे विभिन्न मौलिक अधिकारों की भावना को ध्यान में रखते हुए पहली से आठवीं कक्षा के छात्रों के लिए योग और स्वास्थ्य शिक्षा की मानक किताबें उपलब्ध कराए। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 29 नवंबर को केंद्र से कहा था कि वह याचिका को एक अभिवेदन की तरह ले और इस पर फैसला करें।

याचिका में कहा गया था, ‘राज्य का यह कर्तव्य है कि वह सभी नागरिकों खासतौर से बच्चों और किशोरों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराए। कल्याणकारी राज्य में यह राज्य का कर्तव्य होता है कि वह अच्छे स्वास्थ्य के अनुकूल परिस्थितियों को बनाए रखना सुनिश्चित करें। इसमें कहा गया था कि सभी बच्चों को योग और स्वास्थ्य शिक्षा दिए बिना या योग का प्रचार-प्रसार करने के लिए राष्ट्रीय योग नीति तय किए बिना स्वास्थ्य के अधिकार को सुरक्षित नहीं किया जा सकता।’

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