नई दिल्ली। जम्मू कश्मीर में इंटरनेट की बहाली को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज अहम फैसला सुनाया। जस्टिस रमन्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इंटरनेट पर पाबंदी अनिश्चितकाल के लिए नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने कश्मीर प्रशासन से 1 हफ्ते के भीतर पाबंदियों की समीक्षा करे। जम्मू-कश्मीर प्रशासन से अस्पतालों, शैक्षणिक संस्थानों जैसी आवश्यक सेवाएं प्रदान करने वाली सभी संस्थाओं में इंटरनेट सेवाओं को बहाल करने के लिए कहा है। कोर्ट ने स्थिति की समीक्षा के लिए एक कमेटी के गठन का आदेश भी दिया। कोर्ट ने इस समीक्षा को सार्वजनिक करने को भी कहा, जिससे कोर्ट में इसे चुनौती दी जा सके।
कश्मीर में लगे प्रतिबंधों को लेकर उच्च्मत न्यायालय ने कहा, किसी विचार को दबाने के लिए धारा 144 सीआरपीसी (निषेधाज्ञा) का इस्तेमाल उपकरण के तौर पर नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि इंटरनेट की आजादी आज के समय में बेहद अहम है। बहुत सा कारोबार भी इंटरनेट के जरिए होता है। लेकिन आजादी और सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करना बेहद जरूरी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट कश्मीर की राजनीति में हस्तक्षप नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि कश्मीर ने पिछले दिनों में बड़ी हिंसा देखी है। ऐसे में कश्मीरियों के अधिकारों की रक्षा भी जरूरी है।
बता दें कि जम्मू कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान खत्म करने के सरकार के निर्णय के बाद इस पूर्व राज्य में लगाये गये प्रतिबंधों के खिलाफ कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद और अन्य ने याचिका दाखिल की थी। न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की तीन सदस्यीय पीठ ने इन प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पिछले साल 27 नवंबर को सुनवाई पूरी की थी।
केन्द्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान समाप्त करने के बाद वहां लगाये गये प्रतिबंधों को 21 नवंबर को सही ठहराया था। केन्द्र ने न्यायालय में कहा था कि सरकार के एहतियाती उपायों की वजह से ही राज्य में किसी व्यक्ति की न तो जान गई और न ही एक भी गोली चलानी पड़ी।
गुलाम नबी आजाद के अलावा, कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन और कई अन्य ने घाटी में संचार व्यवस्था ठप होने सहित अनेक प्रतिबंधों को चुनौती देते हुये याचिकाएं दायर की थीं। केन्द्र ने कश्मीर घाटी में आतंकी हिंसा का हवाला देते हुये कहा था कि कई सालों से सीमा पार से आतंकवादियों को यहां भेजा जाता था, स्थानीय उग्रवादी और अलगावादी संगठनों ने पूरे क्षेत्र को बंधक बना रखा था और ऐसी स्थिति में अगर सरकार नागरिकों की सुरक्षा के लिये एहतियाती कदम नहीं उठाती तो यह ‘मूर्खता’ होती। केन्द्र सरकार ने पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अनेक प्रावधान खत्म कर दिये थे।