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अयोध्या विवाद: दो जजों का फैसला, कहा-मामला बड़ी बेंच को भेजने की जरूरत नहीं; अगली सुनवाई 29 अक्टूबर को

उच्चतम न्यायालय ने ‘मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं’ के बारे में शीर्ष अदालत के 1994 के फैसले को फिर से विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से गुरुवार को इनकार कर दिया। यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था।

Written by: India TV News Desk
Updated on: September 27, 2018 14:55 IST
supreme court decision on namaz issue ayodhya dispute ram temple- India TV Hindi
supreme court decision on namaz issue ayodhya dispute ram temple

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने ‘मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है या नहीं’ के बारे में शीर्ष अदालत के 1994 के फैसले को फिर से विचार के लिए पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से गुरुवार को इनकार कर दिया। यह मुद्दा अयोध्या भूमि विवाद की सुनवाई के दौरान उठा था। वर्तमान में यह मुद्दा उस वक्त उठा जब प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ अयोध्या मामले में 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। अदालत ने राम जन्म्भूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर अपने फैसले में जमीन को तीन हिस्से में बांट दिया था।

अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लल्ला में बराबर-बराबर बांट दिया जाये। न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने अपनी और प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की ओर से फैसला सुनाते हुये कहा कि मौजूदा मामले में 1994 का फैसला प्रासंगिक नहीं है क्योंकि उक्त निर्णय भूमि अधिग्रहण के संबंध में सुनाया गया था।

हालांकि, इस खंडपीठ के तीसरे न्यायाधीश एस अब्दुल नजीर बहुमत के फैसले से सहमत नहीं थे।

उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर अब 29 अक्तूबर को आगे सुनवाई होगी।

1994 के फैसले पर फिर करेगा विचार

बता दें कि मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दलील दी गई थी कि 1994 में इस्माइल फारुकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है और ऐसे में इस फैसले को दोबारा परीक्षण की जरूरत है और इसी कारण पहले मामले को संवैधानिक बेंच को भेजा जाना चाहिए। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा है कि कोर्ट इस पहलू पर फैसला लेगी कि क्या 1994 के सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच के फैसले को दोबारा देखने के लिए संवैधानिक बेंच भेजा जाए या नहीं। इसी मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अभी फैसला सुरक्षित किया है।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच हिंदू और मुस्लिम पक्षों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। दोनों पक्षों ने 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को अस्वीकार किया है, जिसमें विवादित जमीन को बांटने की बात की गई थी। उस विवादित जमीन पर बाबरी मस्जिद थी। हाई कोर्ट ने जमीन को 2:1 के अनुपात में बांटने का फैसला सुनाया था।

2010 में आया था बड़ा फैसला

1994 के फैसले में पांच जजों की पीठ ने कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है। 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए एक तिहाई हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई रामलला को दिया था।

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