नयी दिल्ली: आम आदमी को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि सरकार से मंजूरी प्राप्त सभी सरकारी और निजी प्रयोगशालाओं में कोविड-19 के संक्रमण की जांच मुफ्त में की जानी चाहिए। कोर्ट ने केन्द्र को तत्काल ही इस संबंध में निर्देश जारी करने को कहा। वर्तमान में निजी प्रयोगशालाओं को कोरोना वायरस की जांच के लिए 4,500 रुपये शुल्क लेने की अनुमति दी गयी है। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट की पीठ ने कोविड-19 की जांच मुफ्त में कराने के लिये वकील शशांक देव सुधि द्वारा दायर एक जनहित याचिका की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के बाद केन्द्र को इस बारे में निर्देश दिये।
पीठ ने कहा कि कोविड-19 से संबंधित जांच एनएबीएल से मान्यता प्राप्त या फिर विश्व स्वास्थ संगठन या भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद से मंजूरी प्राप्त किसी एजेंसी द्वारा ही करायी जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि निजी अस्पतालों और प्रयोगशालाओं को राष्ट्र के समक्ष उत्पन्न इस संकट से निबटने के लिये कोरोना वायरस महामारी के प्रसार पर अंकुश पाने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।
अदालत ने केंद्र से कहा कि ऐसा तंत्र भी विकसित किया जाए, जिससे टेस्ट के लिए लोगों से ज्यादा फीस ली जाए तो उसे सरकार वापस लौटाए। पीठ को केंद्र ने बताया कि देशभर की कुल 118 प्रयोगशालाओं (लैब) में रोजाना 15 हजार टेस्ट किए जा रहे हैं और हम इसकी क्षमता बढ़ाने के लिए 47 निजि लैब को भी जांच की मंजूरी दे रहे हैं।
इस दौरान डॉक्टरों और स्टाफ पर हमले के मद्देनजर केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कहा कि डॉक्टर हमारे कोरोना वॉरियर्स हैं और उन्हें पर्याप्त सुरक्षा दी जा रही है।
बता दें कि शीर्ष अदालत ने इस मामले पर तीन अप्रैल को भी सुनवाई की थी और केंद्र से जवाब मांगा था। याचिकाकर्ता ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) द्वारा जांच की फीस की सीमा 4500 रुपये तय किए जाने पर भी सवाल उठाया था, साथ ही जांच सुविधाओं के जल्द विस्तार की भी मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने कहा था कि आमजन के लिए सरकारी अस्पतालों और प्रयोगशालाओं में जांच कराना मुश्किल है और ऐसे में वे निजी प्रयोगशालाओं और अस्पतालों में आईसीएमआर द्वारा तय की गई फीस देकर जांच करवाने के लिए विवश होंगे।
याचिकाकर्ता ने कहा कि जांच ही एक रास्ता है, जिसके जरिए महामारी को रोका जा सकता है। अधिकारी पूरी तरह से इस हाल से पूरी तरह अनभिज्ञ और असंवेदनशील हैं कि आम आदमी पहले से ही लॉकडाउन के चलते आर्थिक दिक्कतों का सामना कर रहा है।