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कंधार की कहानी: मसूद अज़हर की रिहाई का पूरा सच जानिए, अजीत डोभाल की ज़ुबानी

2019 के चुनावी दंगल में 20 साल पुरानी कंधार विमान अपहरण कांड भी सुर्खियों में हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मौलाना मसूद अजहर की तस्वीर दिखाकर बीजेपी और राषट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पर भी निशाना साध रहे हैं।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: March 12, 2019 23:09 IST
Aitj Doval- India TV Hindi
Aitj Doval

नई दिल्ली: 2019 के चुनावी दंगल में 20 साल पुरानी कंधार विमान अपहरण कांड भी सुर्खियों में हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मौलाना मसूद अजहर की तस्वीर दिखाकर बीजेपी और राषट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पर भी निशाना साध रहे हैं। वे मूसद अजहर की रिहाई का पूरा आरोप तत्तकालीन बीजेपी सरकार और अजीत डोभाल पर मढ़ रहे हैं। आपको बता दें कि 1999 में एयर इंडिया का विमान हाईजैक किया गया था और मुसाफिरों को रिहा कराने के लिए भारत सरकार ने एक क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप बनाया जिसे तत्कालीन कैबिनेट सेक्रेटरी प्रभात कुमार हेड कर रहे थे। लेकिन अजित डोभाल उस ग्रुप में शामिल नहीं थे। डोभाल तब IB  में स्पेशल डायरेक्टर हुआ करते थे। लेकिन डोवल के पास कश्मीर में काउंटर टेररिज्म से लड़ने का तजुर्बा था लिहाजा सरकार ने उन्हें खासतौर पर बंधकों को छुड़ाने की जिम्मेदारी सौंपी।

अजीत डोभाल ने बताया, 'कंधार वाला जो हाईजैकिंग का इंसीडेंट था वो एक फॉरेन टेरेट्री में था. एक ऐसी टेरेट्री में था जिस सरकार के साथ हमारे कोई राजनीतिक संबंध नहीं थे..और वो एक ऐसा लैंडलॉक देश था जिसमें जाने के लिए..अगर हमें किसी हवाई जहाज से भी ले लाना पड़ता हो तो उस देश की इजाज़त चाहिए थी जो कि हमें बहुत मुश्किल से मिल रही थी..जब हम नेगोशिएशन के लिए भी गए तो हमारे जहाज को पाकिस्तान ने जाने की इजाज़त नहीं दी।'

उस वक्त अजीत डोवल अफगानिस्तान के कंधार एयरपोर्ट पर मौजूद थे। बंधक बनाए गए हिंदुस्तानियों की रिहाई के लिए बातचीत कर रहे थे। तालिबान की जमीन पर तालिबान के संगीनों के साए में आतंकियों और भारत के क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप के बीच बातचीत हो रही थी। 

अजीत डोभाल ने बताया, 'वहां पर हमारा ऑब्जेक्ट अपने यात्रियों को केवल खाली कराना नहीं था। लड़ना केवल उन हाईजैकर के साथ नहीं था जो उसके अंदर थे..उससे बड़ी जो उनका टोटल सपोर्ट तालिबान की जो वहां पर सरकार थी..उनके टैंक..उनके मुजाहिद..उनके वॉलेंटियर..जिन्होंने पूरा का पूरा कांधार एयरपोर्ट ढ़का हुआ था। वहां पर एंटी एयरक्राफ्ट गन्स और उनके टैंक्स वगैरा चारों तरफ थे..अगर हमें उन तक पहुंचना था और अपने यात्रियों को निकालना था तो पहले उनको इनसे लड़ना पड़ेगा..और अगर इनसे लड़ना पड़ेगा तो ये उतने ही नहीं होते ये पूरे देश के ऊपर एक तरह का आक्रमण होता..उस आक्रमण पर विजय पाने के बाद ही उस हवाई जहाज को रेस्क्यू किया जा सकता था..लेकिन उस केस में सबसे पहले अगर इस तरह का अगर कोई इंगेजमेंट शुरु होता तो सबसे पहले केजुअल्टी वो जहाज होता तो पैसेंजर्स तो सारे ही जाते।'

डोभाल के मुताबिक बंधक संकट के दौरान वो आतंकियों से सख्ती से निपटना चाहते थे...लेकिन भारत सरकार की मुश्किल वक्त की बढ़ती सुई के साथ बढ़ने लगी...मीडिया का दबाव...बंधक यात्रियों के घरवालों का विरोध प्रदर्शन और इन सब के बीच हाईजैकर्स ने हिंदुस्तान की जेल में कैद अपने 36 आतंकी साथियों की रिहाई के साथ-साथ 200 करोड़ रुपए की फिरौती की डिमांड रखी थी...ये वो वक्त था जब हालात भारत के एकदम विपरीत थे क्योंकि कंधार एयरपोर्ट पर कमांडो ऑपरेशन मुमकिन नहीं था...तो दूसरी तरफ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI भारतीय नेगोशिएशन टीम को दवाब में रखने के लिए आतंकियों तक छोटे से से छोटी जानकारी मुहैय्या करा रही थी।

डोभाल ने बताया कि कंधार में चल रही नेगोशिएशन के दौरान आतंकी इस बात का बखूबी फायदा उठा रहे थे...वो समझ चुके थे कि भारत अपने नागरिकों की जान जोखिम में डालने का...खतरा मोल नहीं लेगा। 

डोभाल ने बताया, 'जहां तक पैसे की डिमांड थी...उसके लिए हमने थोड़ा सा बहस की...लेकिन मुख्य तौर पर वो डिमांड उन्होंने ड्रॉप कर दी...मुल्ला उमर के कहने पर...क्योंकि उन्होंने कहा कि ये इस्लाम के खिलाफ है और इसलिए ये गैर-इस्लामिक काम आप नहीं करें। दो डिमांड ..एक सज्जाद अफगानी की डेडबॉडी लौटाने की और एक 200 मिलियन डॉलर की...ये डिमांड उन्होंने तकरीबन नेगोसिएशन होने के...मैं आपको बताऊं नेगोसिएशन के करीब डेढ़ दिन तक कोई डिमांड नहीं थी...ये डिमांड भी काफी देर के बाद आई और काफी देर तक नेगोसिएशन इसी बात पर चली कि आप अपनी डिमांड तो दीजिए। उन्होंने शुरु किया था कश्मीर से जवानों को हटाने से..पॉलीटिकल डिमांड के तौर पर थी..कि आपने हमारा मुल्क ले रखा है...ये कर रखा है...वो कर रखा है..जो भी बातें होती हैं..इस्लाम के नाम पर..वगैरह के नाम पर...लेकिन जब उनके लाते-लाते...कि इस पर आओ...क्या करना है...कैसे करना है...तो जो डिमांड आई थी..उसके अंदर में तीन डिमांड थी। 36 आदमियों को छोड़ने की लिस्ट...सज्जाद अफगानी की बॉडी लौटाने और 200 मिलियन डॉलर। ये दो डिमांड उन्होंने कुछ समय के बाद मान ली और उन्होंने ये कहा कि...हमने भी कहा कि ये इस्लामिक है...गैर-इस्लामिक है...कौन-कौन सी खिलाफ है...और कौन-कौन से इस्लामिक कानून हैं..जो इसे रोकते हैं...और आपको नहीं करने चाहिए...तो खैर वो मान गए।'

क्राइसिस मैनेजमेंट ग्रुप का हिस्सा रहे अजीत डोवल समझ चुके थे कि तालिबान की जमीन पर हाईजैकर्स की शर्तों को पूरी तरह खारिज करते हुए बंधकों की रिहाई मुश्किल है...ऐसे में बीच का रास्ता खोजा जाने लगा। 

उन्होंने बताया, 'किसी भी ऑपरेशन की सिचुएशन के अंदर किसी भी ऑपरेशन इंगेजमेंट में आप.. आपका एग्जिक्यूटिव एक्शन वही होता जो कि उपलब्ध विकल्पों में से सबसे अधिक प्रभावी हो सकता है..सबसे अधिक कॉस्ट इफेक्टिव हो सकता है.. सबसे ज्यादा सफलता के चांसेज हों..और सबसे जल्दी से जल्दी समय में पूरा किया जा सकता है..यहां पर अफगानिस्तान को तालिबान के रूल से हटाना संभव नहीं था..और तालिबान को उनसे डिसएंगेज करना संभव नहीं था..और ISI तालिबान और हाईजैकर ये तीनों इंटिटी एक ही इंटिटी थी हम इनके साथ में ज्वाइंटली लड़ रहे थे..वहां पर हम उस दौरान में एक कोई ऐसी स्ट्रैटजी के बारे में सोच सकें जिसमें कि तालिबान इनको सपोर्ट न करे..क्योंकि अजहर मसूद का जब वो कोस्ट कैंप में था और वहीं ट्रेनिंग भी देता था और उनको धार्मिक उपदेश भी देता था..तब से लेकर ओसामा बिन लादेन और बाकी सब के साथ बड़े घनिष्ठ संबंध थे..इस ग्रुप के इस तंजींम के उसके साथ में बड़े घनिष्ट संबंध थे।'

बंधकों की रिहाई के लिए अजीत डोवल के दिमाग में जो ऑपशन मौजूद थे....वो शीशे की तरह साफ थे। यानी हिंदुस्तान को पता था कि क्या करना है।

डोभाल ने बताया, 'हमारे पास दो ऑप्शन थे ...या तो हम उनके बारे में भूल जाएं..और अपने जहाज के बारे में भूल जाएं और अपने पैसेन्जर्स के बारे में भूल जाएं..अपनी कंट्री के अंदर जो पब्लिक ओपिनियन का ग्राउंड सेल था उसके बारे में भूल जाएं..जो मीडिया कह रहा था तो पॉलिटिकल लीडरशिप के ऊपर कम्पल्शन था उसके बारे में भूल जाएं..नैगोशियेट नहीं करें और क्योंकि हम वहां पर हाईजैक को वैकेंट नहीं कर सकते तो हम इसके बारे में एक इसको सोच लें कि ये नेशन एक प्रिंसिपल पोजिशन लेगा चाहे नुकसान कुछ भी हो ..दूसरा ये था कि नहीं हम इस चीज को मिनिमाइज़ करें और नेशन के सामने जितना भी हो सकता है चाहे उसमें डिसक्रैडिट भी हो क्या हम अपने नुकसान को मिनिमाइज़ करें अगर हम गेन्स को मैक्सिमाइज़ नहीं कर सकते ..उस सिचुएशन में हमारी ये जरुर कोशिश थी पहली कोशिश यही थी कि हमें दो परसेंट और चार परसेंट ये उम्मीद थी।

कंधार एयरपोर्ट पर बंधकों को आतंकियों की कैद से छुड़ाने के लिए भारत के पास कमांडो ऑपरेशन का विकल्प मौजूद था...लेकिन अजित डोवल के मुताबिक बहुत कोशिश के बाद भी तालिबान किसी भी कीमत पर राजी नहीं हुआ..ऐसे में ऑपेरशन करने से बात बिगड़ने का डर था.

डोभाल ने कहा, 'वहां पर एक लिमिटेड कमांडो ऑपरेशन करके उनको रेस्क्यू करना एक संभावना थी अगर हमको ग्राउंड सपोर्ट न भी मिलता लेकिन अगर ग्राउंड से अपोजिशन मिलता तो फिर ये संभव नहीं था ये कहीं भी संभव नहीं था..कि अगर किसी एयरपोर्ट के अंदर में आप किसी हाईजैक एयरक्राफ्ट को न्यूट्रलाइज करना चाहते हैं हाईजैकिंग को लेकिन जो ग्राउंड सपोर्ट जो वहां के हैं वो आपका विरोध करना शुरु करें..वो आपके ऊपर अटैक करें तो फिर ये कमांडो एक्शन की कोई संभावना नहीं थी।'

आखिरकार नेगोसिएशन टीम से हुई बातचीत के बाद 3 आतंकियों के बदले बंधकों की रिहाई पर हाईजैकर्स राजी हो गए। 31 दिसंबर को सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच समझौते के बाद कंधार एयरपोर्ट पर बंधकों को रिहा कर दिया गया। ये ड्रामा उस वक्त खत्म हुआ जब सरकार भारतीय जेलों में बंद तीन आतंकियों को रिहा करने के लिए तैयार हो गई। तत्कालीन विदेश मंत्री जसवंत सिंह खुद तीन आतंकियों को अपने साथ कंधार ले गए थे। छोड़े गए आतंकी में जैश-ए-मोहम्मद का आका मौलाना मसूद अजहर, अहमद ज़रगर और शेख अहमद उमर सईद शामिल थे। हालांकि डोभाल ये मानते है कि हाईजैकर्स अपने मंसबूों में कामयाब नहीं होते अगर अमेरिका से वक्त रहते मदद मिली होती। अजीत डोभाल का ये इंटरव्यू 2009 का है। तब डोभाल ने आईसी 184 कांड का एक-एक सच बताया था। उन्होंने ये भी कहा था कि इस पूरे हालात से हिंदुस्तान को सबक लेना चाहिए...ताकि दोबारा ऐसा वाकया ना हो।

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