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अटल, मनमोहन, मोदी... किसके राज में कितनी बढ़ी महंगाई? जानें, क्या कहते हैं विश्व बैंक के आंकड़े

जानें, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉक्टर मनमोहन सिंह, और अब तक नरेंद्र मोदी के शासन में क्या रहा है महंगाई का हाल।

Written by: Vineet Kumar Singh @VickyOnX
Published on: September 14, 2021 19:04 IST
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Image Source : PIXABAY REPRESENTATIONAL कोरोना महामारी के इस दौर में जरूरी वस्तुओं की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी का बजट बिगाड़ रखा है।

नई दिल्ली: पिछले कुछ महीनों से देश में महंगाई ने आम आदमी का बजट बिगाड़ रखा है। ईंधन से लेकर एलपीजी, चीनी से लेकर खाने का तेल तक, सभी की कीमतों में इजाफा देखने को मिल रहा है। ऊपर से कोरोना महामारी ने लोगों की आय पर भी बुरा प्रभाव डाला है। चाय की दुकान से लेकर सियासी गलियारों तक, हर जगह महंगाई पर चर्चा हो रही है। लेकिन क्या मोदी सरकार में महंगाई की दर सबसे ज्यादा है? उपभोक्ता कीमतों के आधार पर सबसे ज्यादा महंगाई का दौर देश में कब रहा है? आइए, देखते हैं अटल बिहारी वाजपेयी, डॉक्टर मनमोहन सिंह, और अब तक नरेंद्र मोदी के शासन में क्या रहा है महंगाई का हाल।

1998-2004 में क्या था महंगाई का ग्राफ

मार्च 1998 से लेकर मई 2004 तक भारतीय जनता पार्टी के दिवंगत नेता अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। इसके पहले भी वह 1996 में एक बार 13 दिन तक प्रधानमंत्री रहे थे। मार्च 1998 से मई 2004 तक की महंगाई दर उनके शासनकाल में आटे-दाल के भाव की सही हालत बयां कर सकती है। विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, 1998 में उपभोक्ता कीमतों के आधार पर महंगाई दर 13.23 फीसदी थी जो कि उनके 6 साल के शासकाल में सबसे ज्यादा थी। 1998 में वह दूसरी बार पीएम बने थे ऐसे में महंगाई पर काबू पाना उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी।

1998 के बाद के वर्षों में वाजपेयी ने इस चुनौती का अच्छी तरह सामना किया और विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक 1999 में महंगाई दर 4.67, 2000 में 4.009, 2001 में 3.779, 2002 में 4.297, 2003 में 3.806 और 2004 में 3.767 फीसदी रही। इस तरह देखा जाए तो अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में सरकार ने महंगाई पर काफी हद तक काबू पाया था और 1998 को छोड़ दिया जाए, जब वाजपेयी ने सत्ता संभाली थी, तो उपभोक्ता कीमतों के आधार पर मुद्रास्फीति 5 फीसदी से नीचे ही रही। वास्तव में 2001, 2003 और 2004 में तो यह 4 के भी नीचे रही थी। 2004 में हुए लोकसभा चुनावों में वाजपेयी नीत बीजेपी की हार हुई और केंद्र में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में एक नई सरकार सत्तासीन हुई।

2004 से 2014 तक सरपट दौड़ा ग्राफ
2004 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तक उपभोक्ता कीमतों के आधार पर महंगाई दर 3.767 फीसदी थी, लेकिन आने वाला समय अपने अंदर बवंडर थामे हुए था। मनमोहन सिंह के शासनकाल में 2005 में महंगाई दर 4.246, 2006 में 5.797, 2007 में 6.373, 2008 में 8.349, 2009 में 10.882, 2010 में 11.989, 2011 में 8.858, 2012 में 9.312, 2013 में 11.064 और 2014 में 6.65 फीसदी रही। इस तरह देखा जाए तो मनमोहन सिंह के 10 साल के शासन में वाजपेयी के शासनकाल की तुलना में महंगाई न सिर्फ बढ़ी बल्कि इसकी रफ्तार भी बहुत तेज रही।

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Image Source : DATA.WORLDBANK.ORG
डॉक्टर मनमोहन सिंह के शासनकाल में उपभोक्ता कीमतों के आधार पर महंगाई दर। (आंकड़े: विश्व बैंक)

मनमोहन सिंह के शासनकाल में 2009, 2010 और 2013 ऐसे साल रहे जब महंगाई दर 10 से भी ज्यादा रही। एक तरफ वाजपेयी के 6 वर्षों के दौरान सिर्फ 1998 में ही एक ऐसा साल था जब महंगाई दर 5 फीसदी से ज्यादा थी, वहीं मनमोहन सिंह के 10 साल के शासनकाल के दौरान सिर्फ 2004 और 2005 में ही यह 5 फीसदी से नीचे रही, उसमें भी 2004 में मई तक वाजपेयी सत्ता में थे। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई और महंगाई इसकी सबसे बड़ी वजहों में एक रही। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने 2014 में जीत दर्ज की और केंद्र में एक नई सरकार अस्तित्व में आई।

2014 से 2020 तक क्या रहा महंगाई का हाल
2014 में उपभोक्ता कीमतों के आधार पर भारत में महंगाई दर 6.65 थी, और यही वह साल था जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने। इसके बाद 2015 में महंगाई दर 4.907, 2016 में 4.948, 2017 में 3.328, 2018 में 3.945, 2019 में 3.723 और 2020 में 6.623 फीसदी रही। इस तरह देखा जाए तो पीएम मोदी के शासनकाल में लगातार 5 साल महंगाई दर 5 फीसदी के नीचे रही, और 3 साल तो यह 3 फीसदी के भी नीचे रही। 2019 के अंतिम दिनों में कोरोना ने दुनिया में अपने पैर फैलाने शुरू किए और 2020 आते-आते पूरी दुनिया इसकी चपेट में आने लगी।

भारत की बात करें तो मार्च 2020 में देश में लॉकडाउन लग गया और आर्थिक गतिविधियां अगले कई महीनों के लिए ठप पड़ गईं। इस दौरान लाखों लोगों की आजीविका पर भी असर पड़ा। तमाम लोगों के व्यापार खत्म हो गए, कई लोगों की नौकरियां चली गईं और लोगों की बचत रोजमर्रा की चीजें जुटाने में खर्च होने लगी। देखा जाए तो मोदी सरकार के दौरान अधिकतम 2 महंगाई दरें 2014 की 6.65 फीसदी और 2020 की 6.623 रही हैं। हालांकि 2014 में सत्ता से बेदखल होने वाली मनमोहन सरकार से तुलना करें तो सिर्फ 2004, 2005, 2006 और 2007 में ही महंगाई दर इससे कम रही।

धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था में लौट रही रौनक पर...
कोरोना महामारी ने न सिर्फ देश में बल्कि दुनिया भर में करोड़ों लोगों की जिंदगियों पर बुरा असर डाला है। महामारी के चलते भारत में तमाम उद्योग धंधे लंबे समय तक ठप रहे और ऐसे में इन उद्योगों में छोटा-मोटा काम करने वाले, दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोगों की आजीविका पर काफी बुरा असर पड़ा। इसके अलावा खोमचे लगाने वाले, ठेले पर सामान बेचने वाले, रेहड़ी-पटरियों पर अपना सामान बेचकर 2 जून की रोटी कमाने वालों के ऊपर भी कोरोना महामारी के चलते लगे प्रतिबंधों ने बुरा असर डाला और उनकी आय में कमी देखने को मिली।

यहां क्लिक कर देखें विश्व बैंक के आंकड़े

आम जनता की कम होती आय ने महंगाई को और विकराल बना दिया और आम जनता पर इसका बुरा प्रभाव दिखा। हालांकि विश्व बैंक के आंकड़ों की बात करें तो मोदी सरकार में अभी भी महंगाई का स्तर मनमोहन सरकार के दौरान अधिकांश सालों में नजर आए महंगाई के स्तर के आसपास भी नहीं है। फिलहाल देश में एक बार फिर उद्योग धंधों में रौनक लौट आई है, सेंसेक्स नई ऊंचाइयों की तरफ अग्रसर है, जीडीपी में 2 अंकों में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है और बाजार की हालत संभलती दिख रही है। हालांकि, जरूरी वस्तुओं की बढ़ती कीमतें जब तक नियंत्रण में नहीं आएंगी, तब तक आम आदमी की नजर में सेंसेक्स की चकाचौंध और उछाल मारती जीडीपी का कोई खास मतलब नहीं रहेगा।

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