जम्मू। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त कर दिया है। इसी के साथ जल्द ही राज्य के आधिकारिक ध्वज को भी स्थायी रूप से हटा दिया जाएगा।
खबरों के अनुसार, श्रीनगर में सिविल सचिवालय भवन पर तिरंगे के साथ आधिकारिक राजकीय ध्वज अभी भी फहरा रहा है। राज्य का ध्वज गहरा लाल रंग का है, जिसपर तीन सफेद खड़ी पट्टियां और एक सफेद हल चित्रित हैं। ध्वज का लाल रंग 13 जुलाई, 1931 के कश्मीर आंदोलन के रक्तपात को दर्शाता है, ध्वज की तीन पट्टियां राज्य के तीन अलग-अलग खंडों, जम्मू, कश्मीर और लद्दाख को दर्शाती हैं, तो वहीं हल कृषि के महत्त्व को दर्शाता है। जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत राष्ट्रीय ध्वज के साथ अपने अलग झंडे को फहराने की अनुमति दी गई थी।
उल्लेखनीय है कि संसद ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने संबंधी संकल्प को मंजूरी दी। जम्मू-कश्मीर विधानसभा अध्यक्ष निर्मल सिंह मंगलवार को अपने सरकारी वाहन से राज्य के ध्वज को हटाने वाले संवैधानिक पद पर बैठे पहले व्यक्ति बने।
पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी-भारतीय जनता पार्टी की सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे सिंह ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘मैंने कल ही अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के तुरंत बाद अपने आधिकारिक वाहन से राज्य का ध्वज हटा दिया।’’ उन्होंने कहा कि जल्द ही प्रदेश के राजकीय ध्वज को हटाने के संबंध में एक अधिसूचना जारी होने की संभावना है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि राज्य के ध्वज को हटाया जा सकता है क्योंकि यह अब केंद्रशासित प्रदेश है।’’
अधिवक्ता अरुण कंदरू ने कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान और अलग झंडा था। 7 जून, 1952 को, जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा द्वारा एक आधिकारिक राज्य ध्वज की घोषणा संबंधी एक प्रस्ताव पारित किया गया था।
भाजपा के एक नेता ने कहा कि भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ के दिनों से अनुच्छेद 370 का विरोध करने के लिए एक अभियान शुरू किया था। भारतीय जनसंघ आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी बना। भाजपा नेता ने कहा, जम्मू-कश्मीर के भारतीय संघ में विलय के बाद, भाजपा द्वारा एक नारा दिया गया था, ‘‘एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे।’’
इस प्रावधान का विरोध करने और जम्मू-कश्मीर के पूर्ण एकीकरण के लिए राष्ट्रीय जागरूकता फैलाने के लिए मुखर्जी ने तब अटल बिहारी वाजपेयी के साथ देश भर में यात्रा की थी और 11 मई, 1953 को बिना किसी परमिट के जम्मू-कश्मीर में प्रवेश किया था, जो एक क्रांतिकारी कदम था। मुखर्जी को वहां जम्मू-कश्मीर पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था और बाद में 23 जून, 1953 को हिरासत में उनकी मृत्यु हो गई थी। मुखर्जी के इस कदम ने राज्य में प्रवेश के लिए परमिट प्रणाली को समाप्त कर दिया।’’
राजनीतिक विश्लेषक राजीव पंडित का कहना है कि परमिट प्रणाली को समाप्त कर दिया गया। इसके बाद प्रधानमंत्री और सदर-ए-रियासत पद को मुख्यमंत्री और राज्यपाल के पद में तब्दील कर दिया गया, लेकिन संविधान और ध्वज कायम रहा।
पीडीपी-भाजपा शासन के दौरान, राज्य सरकार ने 12 मार्च, 2015 को एक परिपत्र जारी किया था, जिसमें संवैधानिक प्राधिकारियों को सरकारी भवनों और वाहनों पर तिरंगा के साथ राज्य का ध्वज फहराने के लिए कहा गया था। गौरतलब है कि, 27 दिसंबर, 2015 को जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की एकल पीठ के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति हसनैन मसूदी ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वे सभी आधिकारिक वाहनों और इमारतों पर राष्ट्रीय ध्वज के साथ राज्य ध्वज फहराएं। हालांकि एक जनवरी 2016 को जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति बीएल भट्ट और न्यायमूर्ति ताशी रब्सतान की पीठ ने इस पर स्थगनादेश पारित किया था।