नई दिल्ली: ऑर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर का कहना है कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का सर्वश्रेष्ठ समाधान अदालत से बाहर समझौता ही है, जिसके तहत मुस्लिमों को अयोध्या की भूमि राम मंदिर के निर्माण के लिए हिंदुओं को भेंट कर देनी चाहिए। अयोध्या विवाद की मध्यस्थता में शामिल हुए 61 वर्षीय आध्यात्मिक गुरु ने हाल ही में मुस्लिम समुदाय के सुन्नी और शिया दोनों वर्गो के नेताओं से मुलाकात की थी। उनका कहना है कि वह सरकार के संपर्क में नहीं हैं और सरकार का उनके प्रयासों से कोई संबंध नहीं है।
श्री श्री रविशंकर ने इस बात से स्पष्ट इनकार किया कि उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मसले में किसी एक के पक्ष में फैसला सुनाने से 'खूनखराबा' हो सकता है। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, "यह भगवान राम की जन्मस्थली है, इसलिए इस स्थान से एक मजबूत भावनाएं जुड़ी हैं और चूंकि यह मुसलमानों के लिए इतना महत्वपूर्ण स्थान नहीं है, साथ ही यह ऐसा स्थान है जो विवादित है, इसलिए यहां की नमाज स्वीकार नहीं होगी। इससे किसी भी प्रकार से मकसद पूरा नहीं होगा और जब इससे दूसरे समुदाय (मुस्लिमों) का मकसद पूरा नहीं होता, तो उन्हें इसे भेंट में दे देना चाहिए।"
श्री श्री रविशंकर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अगर मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाता है, तो दिल जलेंगे और अगर यह फैसला मस्जिद के पक्ष में जाता है, तो भी दिल जलेंगे।उन्होंने कहा, "दोनों ही स्थितियों में समाज में मनमुटाव होगा। मैं दोनों पक्षों के लिए सौहार्दपूर्ण स्थिति कायम करना चाहता हूं, जहां दोनों पक्ष साथ रहें और दोनों का सम्मान कायम रहे। हम यही फार्मूला सुझा रहे हैं..ऐसा क्यों न किया जाए?"
श्री श्री रविशंकर ने उम्मीद जताई कि इस मामले में अदालत से बाहर ही कोई राह निकल आएगी, क्योंकि वे दोनों पक्षों के लोगों से बातचीत कर रहे हैं और वे इस बात से सहमत हैं कि कोई सुलह का रास्ता निकलना चाहिए।उन्होंने कहा, "मैंने केवल इसी मंशा से पहल की। ऐसा नहीं है कि मैं इस मसले में अचानक कूद आया हूं।" यह पूछे जाने पर कि क्या 2019 लोकसभा के चुनाव से पहले इस मसले का सौहार्दपूर्ण हल ढूंढ़ने के लिए कोई समय सीमा भी तय की गई है, तो उन्होंने इससे इनकार करते हुए कहा कि इसका चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है।
श्री श्री रविशंकर ने इस बात को स्वीकार किया कि मंदिर मुद्दा पूरे भारत में ध्रुवीकरण का एक कारण है और इसलिए सभी समुदायों को साथ आने की जरूरत है। मुस्लिम समुदाय के शिया और सुन्नी वर्गो के नेताओं से अपनी मुलाकातों के बारे में उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष यह मानते हैं कि इस मसले को अदालत के बाहर सुलझाना चाहिए। उन्होंने कहा, "वहां पहले ही श्रीराम का मंदिर मौजूद है। वे सभी जानते हैं कि उसे हटाया नहीं जा सकता। इसलिए हमें बैठकर बात करनी चाहिए।"
सुन्नी धर्मगुरु मौलाना सलमान नदवी ने श्री श्री से 10 फरवरी को बेंगलुरू स्थित आर्ट ऑफ लिविंग के आश्रम में मुलाकात की थी और उनके फार्मूले को समर्थन दिया था। इस कारण उन्हें ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से बर्खास्त कर दिया गया था। श्री श्री रविशंकर ने फरवरी में लखनऊ में फिर नदवी से मुलाकात की थी। इसके बाद 6 मार्च को एआईएमपीएलबी को एक सौहार्दपूर्ण उपाय सुझाते हुए उन्होंने विवादास्पद स्थल की पूरी 2.77 एकड़ भूमि मुस्लिमों द्वारा सद्भावना के तौर पर हिंदुओं को भेंट में देने का प्रस्ताव रखा था। उनका कहना था कि इसके बदले में हिंदू उस स्थल के पास ही पांच एकड़ भूमि भेंट करें, ताकि उस पर और बड़ी मस्जिद बनाई जा सके।
एआईएमपीएलबी ने हालांकि इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया। एआईएमपीएलबी के अध्यक्ष और सदस्यों को 6 मार्च को लिखे एक पत्र में रविशंकर ने इस विवाद को सुलझाने के लिए देश के सामने मौजूद चार विकल्पों की बात की थी और सर्वोच्च न्यायालय के एक पक्ष के हक में फैसले के संभावित परिणामों पर चर्चा की थी।
पुरातत्व के इन सबूतों के आधार पर कि मस्जिद से काफी समय पहले से वहां मंदिर थी, अदालत द्वारा विवादित स्थल हिंदुओं को दिए जाने की पहली संभावना को लेकर रविशंकर ने कहा कि ऐसा होने पर मुस्लिमों के मन में न्याय प्रणाली के बारे में गंभीर संदेह पैदा होगा और उनका इस पर से भरोसा उठ सकता है। इसके चलते मुस्लिम युवा हिंसा की राह पर भी चल सकते हैं।
उन्होंने कहा कि अगर हिंदुओं की इस मामले में हार होगी और उन्हें मुस्लिमों को बाबरी मस्जिद के पुननिर्माण के लिए यह भूमि देनी पड़ेगी तो पूरे देश में भारी सांप्रदायिक उथल-पुथल हो जाएगी। यह एक एकड़ भूमि जीतकर भी वे देश के बहुल समुदाय की सद्भावना हमेशा के लिए हार जाएंगे।
रविशंकर ने वहां एक मंदिर और एक मस्जिद दोनों के निर्माण के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक के बारे में बात की और कानून के माध्यम से मंदिर के चौथे विकल्प पर चर्चा की। उन्होंने एआईएमपीएलबी के नेताओं को लिखे पत्र में कहा कि इन चारों ही विकल्पों में चाहे वे अदालत के जरिए हों या सरकार के माध्यम से देश के लिए, परिणाम दुष्कर होंगे और खासकर मुस्लिम समुदाय के लिए। उन्होंने कहा, "मेरे हिसाब से इसका सर्वश्रेष्ठ उपाय अदालत से बाहर फैसला है।"
पत्र में उन्होंने कहा, "एक पलकनामे में लिखा जाएगा कि यह मंदिर हिंदुओं और मुसलमानों दोनों के सहयोग से बना है। इससे आने वाली पीढ़ियों और सदियों के लिए यह मसला हमेशा के लिए हल हो जाएगा।" खून-खराबे वाली अपनी टिप्पणी पर उन्होंने कहा, "मैंने ऐसा कभी नहीं कहा। मैंने यह कहा था कि हम अपने देश में वैसा संघर्ष नहीं देखना चाहते, जैसा हम सीरिया में देख रहे हैं।"