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ऐसा समाज बनना चाहिए जिसमें राष्ट्रवाद कूट-कूटकर भरा हो: भागवत

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आज समाज में जितनी भी बिरादरियां हैं सभी ने अपने संगठन बना रखे हैं। हमारा मकसद उन तक पहुंचना होना चाहिए। उनमें सद्भाव पैदा कर एक ऐसा समाज तैयार किया जाए जिसमें राष्ट्रवाद का भाव कूट-कूटकर भरा हो।

Reported by: Bhasha
Published : July 29, 2019 22:19 IST
MOhan
Image Source : PTI मोहन भागवत

मथुरा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सद्भावना समिति की दो दिवसीय बैठक के समापन सत्र को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आज समाज में जितनी भी बिरादरियां हैं सभी ने अपने संगठन बना रखे हैं। हमारा मकसद उन तक पहुंचना होना चाहिए। उनमें सद्भाव पैदा कर एक ऐसा समाज तैयार किया जाए जिसमें राष्ट्रवाद का भाव कूट-कूटकर भरा हो।

उन्होंने कहा, ‘‘हमें हर वर्ग में अपने संबंध इस तरह बनाने हैं। लोगों के घरों पर जाकर उनके साथ भोजन करें। उनके दुख दर्द में शामिल हों। समाज में जो भी कुरीतियां हैं उन्हें दूर किया जाए। समाज को संगठित करने के लिए सभी मिल-जुलकर काम करें और उन्हें समझाएं कि वह पहले हिन्दू हैं और बाकी सब उसके बाद।’’

आरएसएस के सूत्रों के अनुसार, यूं तो देश भर में ही संघ को और भी ताकतवर बनाने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन संघ इस समय उन राज्यों पर ज्यादा जोर दे रहा है, जहां शाखाओं की संख्या कम है। ऐसे राज्यों में संघ ने शाखाएं बढ़ाने का फैसला लिया है। पश्चिम बंगाल और केरल के साथ पूर्वोत्तर के सभी राज्यों - अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर, मेघालय और मिजोरम में आरएसएस अपनी सक्रियता में तेजी लाएगा। विशेष तौर पर इन राज्यों में स्कूली स्तर से ही बच्चों में संघ की विचारधारा पैदा करने के लिए वहां नए स्कूल भी खोले जाएंगे। आदिवासी क्षेत्रों में चलाए जा रहे एकल विद्यालयों की संख्या में वृद्धि की जाएगी।

बैठक के अंतिम दिन तीन सत्र हुए, जिनमें सामाजिक सद्भाव बढ़ाने पर जोर दिया गया। संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ संघ के सह सरकार्यवाह भैया जी जोशी, दत्तात्रेय होसबोले, कृष्णगोपाल और सुरेश सोनी ने भी प्रचारकों को संबोधित किया।

रविवार को मोहन भागवत ने जहां वृन्दावन के सुदामा कुटी आश्रम में पहुंचकर सुतीक्ष्ण दास महाराज के कार्यक्रम में भाग लिया, वहीं सोमवार को वे महावन में यमुना किनारे रमणरेती स्थित श्रीकाष्र्णि उदासीन आश्रम में महंत काष्र्णि संत गुरु शरणानन्द के यहां पहुंचे। उन्होंने संत-महात्माओं के साथ बैठक कर हिन्दू समाज की स्थिति पर विचार-विमर्श करते हुए संत समाज से मदद मांगी। उन्होंने वहां संतों के साथ ही प्रसाद ग्रहण किया। इस दौरान गीता मनीषी महामण्डलेश्वर संत ज्ञानानंद वृन्दावन के कई अन्य संत मौजूद थे।

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