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स्वस्थ समाज और सफल राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता पहली जरूरत : भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने आज कहा की हमारे समाज में विद्यमान सभी प्रकार के भेदभाव को निर्मूल करते हुए समरसता के निर्माण में लग जायें।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: September 15, 2017 23:51 IST
Mohan bhagwat- India TV Hindi
Image Source : PTI Mohan bhagwat

जयपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने आज कहा की हमारे समाज में विद्यमान सभी प्रकार के भेदभाव को निर्मूल करते हुए समरसता के निर्माण में लग जायें। स्वस्थ समाज व सफल राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता पहली जरूरत है। भागवत ने अपने जयपुर प्रवास के तीसरे दिन भारती भवन में राजस्थान क्षेत्र के प्रचारकों की बैठक को सम्बोधित करते हुए कहा कि प्रचारक एक प्रकार से सामाजिक साधना है। प्रचारक को समाज में रहकर निर्लिप्त भाव से देश और समाज के हित के लिए कार्य करना होता है। 

उन्होंने कहा कि संघ में प्रचारक वह होते हैं जो अपना घर-परिवार छोड़कर पूरी तरह से अपने आप को संघ कार्य में समर्पित कर देता है। जब तक वह प्रचारक है तब तक उनको पूरा समय संघ की योजना के अनुसार बताए गए स्थान एवं कार्य में ही लगाते हैं। जो योजक का कार्य करके क्षेत्र में परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढालकर सभी को साथ लेकर काम करते हैं। वह स्वयं का परिवार छोड़ समाज को ही अपना परिवार मानते है। 

सरसंघ प्रमुख ने कहा कि इस समय राजस्थान में करीब 200 प्रचारक है। उन्होंने राजस्थान के वरिष्ठ प्रचारक रहे सोहन सिंह का जिक्र करते हुए कहा कि कार्य की आवश्यकता अनुसार विविध संगठनों में भी प्रचारक भेजे जाते है जो वहां संगठन मंत्री कहलाते है। उन्होंने कहा कि समाज और देश के लिए पूर्ण जीवन देने वाले स्वयंसेवक प्रारंभ में विस्तारक कहलाते हैं। दो वर्ष के बाद यदि वह निरंतर समय देना जारी रखते हैं तब वह प्रचारक कहलाते है। कोई भी स्वयंसेवक विस्तारक प्रचारक तब बन सकता है जब वह अपना अध्ययन पूर्ण कर चुका हो। 

डॉ. भागवत ने कहा कि कार्य विस्तार के साथ कार्य का दृढ़ीकरण होना चाहिए। प्रत्येक स्तर पर टोली बने, टोली सभी प्रकार के कार्यों का समग्रता के साथ चिंतन कर निर्णय करें। प्रचारकों को कार्य की दृढ़ता व इसके लिए टोली निर्माण पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने हनुमान जी का उदाहरण देकर बताया कि विवेकशीलता बढ़नी चाहिए। उन्होंने दृढीकरण़ का अर्थ बताते हुए कहा कि जो नीचे के दो स्थानों का, रक्षण, पोषण व संरक्षण कर सके। 

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