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स्वामी विष्णुदेवनंद के महाप्रयाण दिवस पर देश-विदेश से जुटे अनुयायी

संस्थान से जुड़े पदाधिकारी ने बताया कि स्वामी विष्णुदेवनंद ने 9 नवंबर 1993 में महासमाधि लेते हुए शरीर को त्यागा था। उनकी स्मृति में इस बार रजत जयंती महाप्रयाण समारोह आयोजित किया गया है। 

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published : November 01, 2018 7:25 IST
स्वामी विष्णुदेवनंद के महाप्रयाण दिवस पर देश-विदेश से जुटे अनुयायी
स्वामी विष्णुदेवनंद के महाप्रयाण दिवस पर देश-विदेश से जुटे अनुयायी

नई दिल्ली: विभिन्न हिस्सों व विदेशों से आए हजारों की संख्या में अनुयायियों ने द्वारका स्थित शिवानंद योग संस्थान में अपने गुरू स्वामी विष्णुदेवनंद के महाप्रयाण रजत जयंती पर एकत्रित होकर ध्यान, साधन के जरिये उन्हें स्मरण किया। इस दौरान उपस्थित श्रद्धालुओं ने कहा कि स्वामी विष्णुदेवनंद के पश्चिम में योग को पहचान दिलाने और भारत में योग, साधान के जरिये आत्म प्राप्ति का संदेश देकर इसके पुनरुत्थान की दिशा में कार्य किया था।

24 सितंबर को निममार, केरल से शुरू हुई जन्म समाधि यात्रा में स्वामी विष्णुदेव के जीवन और उनके संदेश के बारे में बताया जा रहा है। योग, ध्यान साधना का मार्ग अपनाते हुए अनुयायी उनकी याद में समारोह में शामिल हुए। यात्रा का समापन नेटाला, हिमालय में नवंबर में गंगा नदी के समीप होगा। इस दौरान देश-विदेश के अनुयायी, वरिष्ठ स्वामी और शिष्यों आदि की उपस्थिति में सेमीनार, सम्मेलन, योग प्रदर्शन व सत्संग तथा योग और वेदांत आदि से जुड़ी बातों को बताया जाएगा।

संस्थान से जुड़े पदाधिकारी ने बताया कि स्वामी विष्णुदेवनंद ने 9 नवंबर 1993 में महासमाधि लेते हुए शरीर को त्यागा था। उनकी स्मृति में इस बार रजत जयंती महाप्रयाण समारोह आयोजित किया गया है। जिसमें देश भर के अनुयायी एकत्रित होकर विभिन्न राज्यों में पहुंचकर ध्यान, साधना, योग के जरिये विश्व में शांति की कामना कर रहे हैं। द्वारका में भी इसी के मद्देनजर विदेशों के अलावा देश के विभिन्न राज्यों से हजारों की संख्या में अनुयायी एकत्रित हुए और स्वामी विष्णुदेवनंद के संदेश को याद किया। 

उन्होंने बताया कि चूंकि स्वामी विष्णुदेव ने भारतीय सेना में लघु करियर के दौरान ही स्वामी शिवानंद सरस्वती द्वारा लिखी गई पुस्तक को पढ़ा और प्रेरित होकर 1947 में ऋषिकेश में ही उन्होंने शिवानंद के संस्थान में प्रवेश ले लिया था। बाद में संस्थान की ओर से वह हठ योग के पहले प्रोफेसर भी नियुक्त किए गए जिन्होंने इस क्षमता में, हजारों भारतीय और पश्चिमी छात्रों को प्रशिक्षित किया। साथ ही उन्होंने उन्नत हठ योग तकनीकों में महारत हासिल करने के अपने अभ्यास को भी अंतिम समय तक जारी रखा।

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