नई दिल्ली: जब सिंघू बॉर्डर पर सड़क के किनारे स्थित राजपूताना रेस्तरां के मालिक को लगने लगा कि वह कोविड-19 महामारी के सबसे खराब आर्थिक संकट से निकल चुके हैं, तो किसानों का विरोध शुरू हो गया। 2 महीने बाद भी उनका रेस्तरां खाली है, लेकिन हाईवे पूरा भरा हुआ है। चौबीसों घंटे लंगर सेवा चलने, उद्योगों के पूरी तरह से बंद होने और लोगों और वाहनों की आवाजाही कम होने के चलते दिल्ली-हरियाणा नेशनल हाईवे पर स्थित कई भोजनालयों की आर्थिक हालत बहुत खराब होती जा रही है।
‘होटल बंद करने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा’
हजारों किसान 26 नवंबर से राष्ट्रीय राजधानी के विभिन्न बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे हैं, जिनमें ज्यादातर किसान पंजाब और हरियाणा से हैं। किसानों की मांग है कि तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त किया जाए। होटल के मालिक ओम प्रकाश राजपूत ने कहा, ‘लोग यहां भोजन करने क्यों आएंगे जब उन्हें यह बाहर लंगरों में मुफ्त भोजन मिल रहा है? ’ 40 वर्षीय राजपूत ने कहा, ‘कैसा बिजनस? कोई भी नहीं आता है। मैं इस दुकान के लिए 35,000 रुपये किराए का भुगतान कर रहा हूं और 8 कर्मचारी हैं। बिना किसी आय के मैं कब तक कर्मचारियों के वेतन और किराए का प्रबंध कर सकता हूं? यदि यह इसी तरह जारी रहा, तो मेरे पास इसे बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा?’
‘कई अन्य होटलों पर भी लटक रही तलवार’
रेस्तरां में एक रसोइए के रूप में काम करने वाले व बिहार के रहने वाले 23 साल के मोहम्मद एहसान ने कहा कि राजपूत ने उन्हें बताया कि वह अगले महीने भोजनालय बंद कर देंगे। एहसान का वेतन 17,000 रुपये से घटकर 14,000 रुपये हो गया है। वह पहले से ही एक नई नौकरी की तलाश कर रहा है। होटल की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। ऐसी ही हालत एक अन्य छोटे-से भोजनालय पंजाबी जायका का भी है, जिसकी हर दिन की बिक्री 1,200 रुपये से भी कम की है। इस होटल के भविष्य पर भी तलवार लटका हुआ है। कमोबेश यही हाल इस क्षेत्र के सभी होटलों का है।