अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर शिवानी सिंह का स्पेशल ब्लॉग-
हर किसी की अपनी उड़ने की चाहत होती है, कुछ बेहतर कर गुजरने की जिद। फिर चाहे वो लड़का हो या फिर लड़की। ऐसा ही मेरा भी बचपन से उड़ने का सपना था कि कुछ ऐसा करुं जिससे मां-बाप को गर्व हो। लेकिन एक छोटे से गांव में रहकर इतने बड़े सपने पूरा करना बहुत ही मुश्किल था। शिक्षा के अभाव के साथ-साथ कोई ओर सुविधा न होना, हमेशा से ही मेरी सपनों में अड़चन बना। लेकिन कहते है न कि अगर आप कुछ सोच लो और परिवार का साथ मिल जाएं तो आपको अपने सपनों में रंग भरने की चाहत पूरी करना थोड़ा आसान हो जाता है। ऐसा ही कुछ मेरी जिंदगी की कहानी ….एक आम लड़की की कहानी है... हर किसी की कहानी स्पेशल होती है क्योंकि वह इसी से सीखकर अपने कदमों को आगे बढ़ाते हैं….
मेरे हर सपने और हर सीढ़ी में मेरे साथ मेरे मां-बाप और मेरी बहन खड़ी रही। एक बड़ी बहन का फर्ज क्या होता है, यह आज समझ में आता है कि उसे फर्ज को निभाना कितना कठिन होता है। जबकि वह भी उसी माहौल में पढ़ी-लिखी हो जहां पर मैं रहती हूं। ऐसे में खुद पढ़ना और मेरा भी हौसला बढ़ना...सच में बड़ी बात है।
माता-पिता ने कभी भी मुझे लड़के से कम नहीं समझा। वहीं मेरे साथ भी व्यवहार किया जो हमारे प्यारे से छोटे भाई के साथ किया। जिस स्कूल में उसने पढ़ाई की तो मुझे भी उसी स्कूल में पढ़ाया। और सच कहूं इन सब बातों के चलते सपनों की चादर खुल चुकी थी और उसे मुझे ही फैलाना था। मेरे माता पिता का वह सपना था कि मेरी बेटी डॉक्टर, इंजीनियर या फिर कोई सरकारी नौकरी करें।
मै आज जहां पर हूं उसमें सबसे ज्यादा मेहनत तो मेरे माता-पिता की है, जिन्होंने खुद इतना कठिन परिश्रम करके हमें पढ़ाया और लिखाया। लेकिन कई बार ऐसा समय आता है कि हमें समझ नहीं आता है कि हम क्या करें और क्या न करें। कई बार हम गलत रास्ते पर चले जाते है। ऐसे में मेरी बहन ने मेरा साथ दिया और उसने एक बात कही जिसे आज तक में नहीं भूली और उस बात को गांठ बांधकर रख लिया और उसी को हमेशा फॉलो करती हूं।
जब मैं हाईस्कूल में थी तो मैं बहुत परेशान थी और मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं जीवन में आगे क्या करूंगी जिसके कारण मेरा पढ़ाई से मन हट गया था। एक दिन मेरी बहन ने मुझे उदास देखा तो उसने मुझसे पूछा तब मैने उसे सब कुछ बता दिया । कुछ देर बाद वह बोली कि तेरा आगे करने का क्या मन या तेरा क्या सपना है तो मैने बताया, "मैं कुछ अलग करना चाहती हूं। मैं अपनी जिंदगी खुल के जीना चाहती हूं।'' इसके बाद वह बोली, ''अपने दिल की करों, तुम जिस क्षेत्र में जाना चाहती हो उसी में जाओ। किसी के कहने पर मत चलो क्योंकि दूसरे के कहने पर जो काम करोगी वो तुम पर बोझ होगा और वह तुम ज्यादा दिन सह नहीं पाओगी और उसमें तुम्हे सफलता भी नही मिलेगी।''
बस फिर क्या था... मैं निकल पड़ी अपने सपनों के सफर में और फिर मैंने अपना करियर खुद चुना। लेकिन यहां भी कहा शांति मिल सकती थी। साल 2012 में ग्रेजुएशन कर जब मैंने मां-पापा से बोला कि मुझे पत्रकारिता करनी है, तो वह एक दम सोच में पड़ गए कि उन्हें समझ नहीं आया कि वह कैसे मुझे समझाएं कि इसमें क्या है जो इंजीनियर, टीचर और डॉक्टर में नहीं ? लेकिन मेरी जिद के आगे वह भी हार गए और मेरी एंट्री हुई एक नई दुनिया में। मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई के लिए कानपुर की यूनिवर्सिटी में दखिला लिया।
अब मेरी जिंदगी का एक ऐसा दौर शुरु हुआ जहां पर मेरे लिए हर चीज नई थी, क्योंकि मैं एक गांव से पढ़ी हुई कैसे शहर के लोगों को सामना करूं..? मुझे ये नहीं पता था। लेकिन इसमें मेरे दोस्तों और प्रोफेसरों ने पूरा साथ दिया। लेकिन इन सब में मेरे सबसे ज्यादा साथ मेरे पापा रहें। 12-12 घंटे यूनिवर्सिटी के बाहर बैठकर मेरी पढ़ाई कराई जिससे कि मेरी क्लास न छूटे, क्योंकि मेरा घर यूनिवर्सिटी से 50 किलोमीटर दूर था। जहां पर इतने संसाधन भी नहीं थे, ऐसे में पिता किसी भगवान की तरह आएं और खुद भूखे-प्यासे रहकर मेरी पढ़ाई कराई। अब ऐसा लगता है कि मानो मैं अपने सपने पूरे नहीं कर रही बल्कि मेरे माता-पिता अपने सपने पूरे करने के लिए मुझसे ज्यादा मेहनत कर रहे हैं। हर जगह वह हमसे ज्यादा परीक्षा देते हैं। अगर आप पास हुए तो वह भी होंगे और अगर आप फेल तो वह भी। इसके साथ ही उनके सपने भी टूट जाएंगे।
मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रही थी लेकिन कहीं ना कहीं परेशानियां भी साथ चलती रही। समाज अलग-अलग तरह की बातें करने लगा कि लड़की बड़ी हो गई है। कहीं वो गलत रास्ते पर न चली जाएं, उसे बाहर पढ़ने मत भेजो। परिवार की दूसरी लड़कियों की तरह ग्रेजुएशन कराकर घर में बैठाओं और समय पर शादी कर दो। फिर अपने ससुराल जाकर पढ़ाई करें, नौकरी करें या फिर घर-परिवार संभाले। ऐसे में लगता है समाज जो कि खुद के घर पर नजर न रखकर औरों के घर पर ताक-झाक क्यों करता है? क्या उसका कोई परिवार नहीं है? जैसे समाज के लोग मेरे मां-बाप को सलाह दे रहे है क्या वह अपने घर-परिवार में भी ऐसा ही करते है। इन सबकी मां-पापा ने एक बात नहीं मानी और मेरे ऊपर विश्वास कर मुझे बाहर पढ़ने के लिए भेजा। बस एक बात कही, ''तुम्हें इतनी ऊंचाई छूनी है कि इन लोगों का मुंह बंद कर सको।'' बस फिर क्या था निकल पड़ी अपने, मां-पापा और बहन के सपने को पूरा करने के लिए...इसके बाद फिर कभी नहीं देखा पीछे मुड़कर।
आज जब मां-पापा मेरे बारे में किसी दूसरे से बात करते हैं और उनके मन में जो खुशी होती है उसे देखकर लगता है कि शायद मैंने कई हद तक उनके सपनों को पूरा कर दिया है। आज मैं देश के सबसे बड़े टीवी चैनल इंडिया टीवी में कार्यरत हूं, अभी तो बस सफर की शुरुआत हुई है, लेकिन इस बात का पूरा विश्वास है कि अगर मां-पापा, बहन और दोस्तों का साथ रहा तो हर परेशानी को पार कर नई कहानी लिखूंगी।