कांचीपुरम (तमिलनाडु): कांची पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती का पार्थिव शरीर एक कुर्सी पर रखकर मठ के एक हॉल में लाया गया और इसे प्रमुख स्थान पर रखा गया जिससे कि श्रद्धालु दिवंगत संत के अंतिम दर्शन कर सकें। शंकराचार्य के मुख पर असीम शांति और आंखें बंद नजर आईं। पार्थिव देह ‘हाथ जोड़े होने’ की मुद्रा में रखी गई।
जयेंद्र सरस्वती का आज 82 साल की उम्र में हृदय धड़कन बंद हो जाने से देहांत हो गया। उनका पार्थिव शरीर कांची कामकोटि पीठ में प्रमुख स्थान पर रखा गया जिससे कि उनके अनुयायी उनके अंतिम दर्शन कर सकें। शोकाकुल एक महिला श्रद्धालु ने कहा, ‘‘वह जगत गुरु थे।’’
शंकराचार्य के माथे पर पवित्र भस्म और लाल कुमकुम तथा गले में पुष्प मालाएं दिखीं। वह मठ के 69वें आचार्य थे। समय के साथ भीड़ बढ़ती रही और पुलिस उसे प्रबंधित करती दिखी। अनेक अति विशिष्ट लोगों और देशभर से श्रद्धालुओं के पहुंचने की संभावना के मद्देनजर प्रवर्तन एजेंसियां मठ में व्यापक प्रबंध कर रही हैं।
मठ के अनुसार शंकराचार्य के अंतिम संस्कार की रस्म कल से शुरू होगी जिसे वैदिक भाषा में ‘बृंदावन प्रवेश कार्यक्रम’ कहा जाता है। टि्वटर पर मठ के अधिकारी ने कहा, ‘‘पूज्यश्री जयेंद्र सरस्वती शंकराचार्य स्वामीगल का बृंदावन प्रवेश कार्यक्रमम कल सुबह आठ बजे से शुरू होगा।’’
मठ के अधिकारियों ने कहा कि धार्मिक रस्में दिनभर चलने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय से विभिन्न जगहों से अंतिम संस्कार के बारे में पूछा गया, लेकिन उन्होंने अति विशिष्ट व्यक्तियों के दौरों की पुष्टि नहीं की। मठ की वेबसाइट के अनुसार कांची कामकोटि पीठ की स्थापना श्री आदि शंकराचार्य ने 482 ईसा पूर्व की थी जहां 70 आचार्यों की अविछिन्न परंपरा रही है।
चेन्नई के 75 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित कांचीपुरम को सात ‘मोक्षपुरों’ में से एक माना जाता है जहां आदि शंकराचार्य ने मठ की स्थापना की और अपने बाद उत्तराधिकारियों की क्रम रेखा स्थापित की। दशकों पहले कनिष्ठ संत विजयेंद्र सरस्वती को जयेंद्र सरस्वती का उत्तराधिकारी नामांकित किया गया था।