Wednesday, November 06, 2024
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कहानी महज 23 साल की उम्र में देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीद-ए-आजम भगत सिंह की

आज आजादी के उस नायक का जन्मदिन है जो महज 23 साल की उम्र मे फांसी में झूलने के बाद भी आज के युवाओं के दिल में जिंदा हैं।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: September 28, 2019 0:03 IST
Students pay floral tribute to Shaheed Bhagat Singh on the...- India TV Hindi
Image Source : PTI Students pay floral tribute to Shaheed Bhagat Singh on the eve of his birth anniversary at Chandrashekhar Azad Park, in Prayagraj.

नई दिल्ली। BHAGAT SINGH BIRTHDAY: आज आजादी के उस नायक  का जन्मदिन है जो महज 23 साल की उम्र मे फांसी में झूलने के बाद भी आज के युवाओं के दिल में जिंदा हैं। हम बात कर रहे हैं भारत मां के सच्चे सपूत भगत सिंह की। जिनका भारत की आजादी की लड़ाई में भगत सिंह का बहुत बड़ा योगदान रहा है|

उन दिनों में भगत सिंह सभी नौजवानों के लिए यूथ आइकॉन थे, जो उन्हें देश के के लिए कुछ कर गुजरने और देश के प्रति अपना योगदान देने की प्रेरणा देते थे| महज 23 साल की उम्र में ही देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले भगत सिंह का जन्म सिख परिवार में हुआ था। उन्होंने बचपन से अंग्रेजों द्वारा भारतीय लोगों पर अत्याचार होता देखा, तभी से उनके मन में देश के लिए कुछ करने की ज्वाला उतपन्न हो गई थी। आज हम बताएंगे आखिर ऐसा क्या हुआ जिसने एक पढ़ने लिखने वाले सिख लड़के की सोच को ही बदल दिया।

सरदार भगतसिंह का नाम अमर शहीदों में सबसे प्रमुख रूप से लिया जाता है। उनका का जन्म 27 सितंबर (मतांतर से 28 सितंबर)1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था। उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्‍वान सिंह भारत की आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे। ये दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस्‍य थे। भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए ये बचपन से ही अंग्रेजों से घृणा करने लगे थे।13 अप्रैल 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड ने एक पढ़ने लिखने वाले सिख लड़के की सोच को ही बदल दिया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि वो लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। काकोरी कांड में रामप्रसाद 'बिस्मिल' सहित 4 क्रांतिकारियों को फांसी व 16 अन्य को कारावास की सजा से भगत सिंह इतने ज्यादा बेचैन हुए कि चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए जिसके बाद इस संगठन का नाम हो गया था हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन। इस संगठन का उद्देश्य था सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सकने वाले नवयुवक तैयार करना।

 इसके बाद भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स को मारा। इस कार्रवाई में क्रां‍तिकारी चन्द्रशेखर आजाद ने भी उनकी पूरी सहायता की। इसके बाद भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर अलीपुर रोड़ दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेम्बली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके। बम फेंकने के बाद वहीं पर उन दोनों ने अपनी गिरफ्तारी भी दी।

 
इसके बाद 'लाहौर षडयंत्र' के इस मुकदमें में भगतसिंह को और उनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव को 23 मार्च,1931 को एक साथ फांसी पर लटका दिया गया। यह माना जाता है कि मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह ही तय थी,लेकिन लोगों के भय से डरी सरकार ने 23-24 मार्च की मध्यरात्रि ही इन वीरों की जीवनलीला समाप्त कर दी और रात के अंधेरे में ही सतलज के किनारे उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया। यह एक संयोग ही था कि जब उन्हें फांसी दी गई और उन्होंने संसार से विदा ली,उस वक्त उनकी उम्र 23 वर्ष 5 माह और 23 दिन थी और दिन भी था 23 मार्च। फांसी से पहले भगत सिंह ने अंग्रेज सरकार को एक पत्र भी लिखा था,जिसमें कहा था कि उन्हें अंग्रेजी सरकार के खिलाफ भारतीयों के युद्ध का प्रतीक एक युद्धबंदी समझा जाए तथा फांसी देने के बजाए गोली से उड़ा दिया जाए,लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 

भगतसिंह की शहादत से न केवल अपने देश के स्वतंत्रता संघर्ष को गति मिली बल्कि नवयुवकों के लिए भी वह प्रेरणा स्रोत बन गए। वह देश के समस्त शहीदों के सिरमौर बन गए। उनके जीवन पर आधारित कई हिन्दी फिल्में भी बनी हैं जिनमें- द लीजेंड ऑफ भगत सिंह,शहीद,शहीद भगत सिंह आदि। आज भी सारा देश उनके बलिदान को बड़ी गंभीरता व सम्मान से याद करता है। भारत और पाकिस्तान की जनता उन्हें आजादी के दीवाने के रूप में देखती है जिसने अपनी जवानी सहित सारी जिंदगी देश के लिए समर्पित कर दी।

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