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नहीं होता 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' तो हो जाती खालिस्तान की घोषणा

1 जून 1984 को अर्द्धसैनिक बलों ने श्री हरमिंदर साहिब परिसर के आसपास घेराबंदी करके ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरु किया था। इस कार्रवाई में कई आतंकवादी मारे गए। कार्रवाई अगले दिन भी जारी रही। 3 जून को पूरे पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया और ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत कार्रवाई शुरू हो गई।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published : June 06, 2018 10:40 IST
Security tightened in Amritsar ahead of 'Operation Blue Star' anniversary
इस कार्रवाई से जहां पंजाब समस्या ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी तरफ़ खींच लिया वहीं इससे सिख समुदाय की भावनाएँ भी बुरी तरह आहत हुईं।

नई दिल्ली: 6 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी को देखते हुए स्वर्ण मंदिर और आसपास के इलाकों में तीन हजार से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है। अगर ऑपरेशन ब्लू स्टार को समय रहते अंजाम न दिया गया होता तो कभी भी खालिस्तान की घोषणा हो सकती थी। ये रहस्योद्घाटन किया था भारत सरकार और ऑपरेशन ब्लूस्टार के सैन्य कमांडर मेजर जनरल केएस बराड़ ने। आज से 34 साल पहले भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर को खालिस्तान समर्थक जनरैल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से मुक्त कराने के लिए एक अभियान चलाया था जिसे ऑपरेशन ब्लू स्टार से जाना जाता है। 1984 में ये ऑपरेशन 1 से 6 जून तक चला था।

इस कार्रवाई से जहां पंजाब समस्या ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी तरफ़ खींच लिया वहीं इससे सिख समुदाय की भावनाएँ भी बुरी तरह आहत हुईं। पर्यवेक्षक का तो ये भी मानना है कि  इस कदम ने बजाए समस्या को सुलझाने के और जटिल बना दिया। पंजाब में भिंडरावाले की जड़े गहरी होती जा रहीं थी और देखते ही देखते उसके नेतृत्व में अलगाववादी ताकतें मज़बूत होने लगी जिनकी पाकिस्तान हर तरह से मदद कर रहा था। मेजर जनरल के.एस. बराड़ का कहना था कि उनकी जानकारी के मुताबिक कुछ ही दिनों में ख़ालिस्तान की घोषणा होना जा रही थी और उसे रोकने के लिए ऑपरेशन को जल्द से जल्द अंजाम देना बेहद ज़रूरी हो गया था।

1 जून 1984 को अर्द्धसैनिक बलों ने श्री हरमिंदर साहिब परिसर के आसपास घेराबंदी करके ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरु किया था। इस कार्रवाई में कई आतंकवादी मारे गए। कार्रवाई अगले दिन भी जारी रही। 3 जून को पूरे पंजाब में कर्फ्यू लगा दिया गया और ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत कार्रवाई शुरू हो गई। प्रदेश में रेल, सड़क और वायु यातायात रोक दिया गया और दरबार साहिब परिसर की फोन-वाटर सप्लाई लाइनें काट दी गईं। उसी रात सैन्य कार्रवाई फिर शुरू हुई और इस बार घेराबंदी की गई थी हरमिंदर साहब की जहां जरनैल सिंह भिंडरांवाला सहित उनके साथी जनरल सुबेग सिंह और अमरीक सिंह अपने समर्थकों के साथ छुपे हुए थे और सैनिक कार्रवाई के जवाब में गोलीबारी कर रहे थे।

इस दौरान शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष संत हरचंद सिंह लोंगोवाल, जत्थेदार गुरचरण सिंह तोहड़ा, बलवंत सिंह रामूवालिया, भान सिंह, अबिनाशी सिंह आदि सिख नेता परिसर स्थित एसजीपीसी कार्यालय में उपस्थित थे। तीन और चार जून की रात को सेना व आतंकियों के बीच जबरदस्त गोलीबारी जारी रही और नौबत बमबारी तक पहुंच गई। ले. जनरल के. सुंदरजी और रंजीत सिंह दयाल की अगुवाई वाले इस ऑपरेशन के तहत 5 जून को मेजर जनरल केएस बराड़ के नेतृत्व में शुरू हुई सैन्य कार्रवाई के दौरान जहां भिंडरावाला, अमरीक सिंह, सुबेग सिंह आदि चरमपंथी मारे गए, वहीं लोंगोवाल और तोहड़ा को बंदी बनाकर हवाई जहाज से अज्ञात स्थान पर ले जाया गया। अन्य अकाली नेताओं को भी गिरफ्तार किया गया।

श्री हरमंदिर साहिब परिसर स्थित श्री अकाल तख्त साहिब सहित इसके आसपास की कई इमारतों को भारी क्षति पहुंची। और इस तरह सात जून को परिसर पर सेना का पूरा नियंत्रण हो गया था। जानकारी के अनुसार इस दौरान कई सिविलियंस की भी जान गई, जो 3 जून को गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी दिवस पर दरबार साहिब में माथा टेकने आए थे, लेकिन सैन्य कार्रवाई से पहले बाहर नहीं निकल पाए।

इसमें कोई शक़ नहीं कि ऑपरेशन ब्लू स्टार ने सिखों को बुरी तरह आहत किया। लेकिन उससे भी ज्यादा नुकसान चारों तरफ जंगल की आग की तरह फैल रही अफवाहों से हुआ। यहां तक कि खुद फौज भी इससे अछूती नहीं रही नतीजतन बड़ी संख्या में सिख जवानों ने विद्रोह कर दिया था। बिहार के रामगढ़ में सिख रेजिमेंट के जवानों ने तो पूरी छावनी पर कब्जा कर लिया और आर्मी की गाड़ियों पर सवार होकर अमृतसर की तरफ निकल पड़े। आजाद भारत में पहली बार सेना में इस तरह का विद्रोह हुआ था।

सैन्य विद्रोह के अलावा ऑपरेशन ब्लू स्टार के तीन दिनों के भीतर ही पंजाब में 30 से ज्यादा लोगों की जान चली गई। बाहरी ताकतों ने इस माहौल का पूरा फायदा उठाया। पंजाब में अलगाववाद और आतंकवाद अपने चरम पर पहुंच गया जिसने अगले चार सालों में कई बेगुनाहों की जान ली। ऑपरेशन ब्लू स्टार से सिक कितना आहत और गुस्से में थे इसका अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि 31 अक्तूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की खुद उनके ही अंगरक्षकों ने गोली से छलनी कर हत्या कर दी। ये अंगरक्षक सिख थे।

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