![Second Lieutenant Arun Khetarpal](https://static.indiatv.in/khabar-global/images/new-lazy-big-min.jpg)
नई दिल्ली: 14 अक्टूबर को भारत में एक ऐसा वीर जन्मा था, जिसने 21 साल बाद बता दिया था कि भारत के नौजवान अगर ठान लें तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं है। जी हां, हम बात कर रहे हैं 1971 के भारत-पाक युद्ध के हीरो अरुण खेत्रपाल की। बड़ापिंड शंकरगढ़ सेक्टर में दुश्मन की सेना से दो-दो हाथ करते हुए इस परमवीर ने ऐसा पराक्रम दिखाया था कि पूरा देश आज उसे सलाम करता है। 16 दिसंबर यानी कि आज भारत विजय दिवस मना रहा है ऐसे में भारतमाता के इस सपूत को याद करना बेहद जरूरी है।
अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर 1950 को पुणे में हुआ था। उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल (आगे चलकर ब्रिगेडियर बने) एम. एल. खेत्रपाल भी भारतीय सेना के इंजीनियरिंग विभाग में थे। खेत्रपाल ने 1967 में NDA में दाखिला लिया और जून 1971 में 17 पूना हॉर्स बटालियन में कमीशंड ऑफिसर बने। भारतीय सेना में अफसर बनने के कुछ ही महीने बाद भारत और पाकिस्तान में जंग छिड़ गई। अरुण की बटालियन युद्ध के समय शंकरगढ़ में तैनात थी। 16 दिसंबर को सुबह 8 बजे पाकिस्तानी सेना ने सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की बटालियन पर हमला बोल दिया। पाकिस्तानी सैनिक अमेरिका निर्मित 50 पेटन टैंकों के सहारे आगे बढ़ रहे थे, लेकिन उन टैंको और पाकिस्तान की जीत के बीच एक नौजवान अफसर खड़ा था, जिसका नाम अरुण खेत्रपाल था।
50 पाकिस्तानी टैंकों के सामने थे 2 भारतीय टैंक
2 टैंकों के साथ आगे बढ़कर खेत्रपाल ने दुश्मन से लोहा लेना शुरू कर दिया। खेत्रपाल ने दुश्मन के सबसे मजबूत हिस्सों पर हमला किया लेकिन दुश्मन नुकसान के बावजूद पीछे हटने को तैयार नहीं था। इसी दौरान भारतीय सेना के दूसरे टैंक का कमांडर भी शहीद हो गया और खेत्रपाल अकेले पड़ गए। इसके बाद 21 साल का परमवीर जाग उठा और एक के बाद एक पाकिस्तानी टैंकों को तबाह करता हुआ आगे बढ़ता गया। पाकिस्तानी सेना की तरफ से भी काउंटर अटैक हुआ जिसमें खेत्रपाल के टैंक को भारी नुकसान पहुंचा। मौत सामने थी, फिर भी खेत्रपाल के कदम नहीं रुके और शहीद होने से पहले उन्होंने पाकिस्तान के एक और टैंक को तबाह कर दिया। इस लड़ाई में अरुण ने कुल 10 पाकिस्तानी टैंकों के परखच्चे उड़ा दिए थे।
'सर, मैं अपना टैंक छोड़कर नहीं जाऊंगा'
लड़ाई के दौरान अरुण के टैंक पर जब हमला हुआ और उनका टैंक जलने लगा, तब उनसे टैंक छोड़कर निकल आने के लिए कहा गया। अरुण का जवाब था, 'नहीं सर, मैं अपना टैंक छोड़कर नहीं आऊंगा। मेरी मेन गन अभी भी काम कर रही है और मैं इन्हें (दुश्मनों) को छोड़ूंगा नहीं।' ('No Sir, I will not abandon my tank. My Main gun is still working and I will get these bastards.') यह अरुण की बहादुरी का ही नतीजा था कि उस लड़ाई में पाकिस्तानी सेना के पांव उखड़ गए। 17 दिसंबर को अरुण का अंतिम संस्कार हुआ और उनके परिवार को उनकी शहादत के बारे में 26 दिसंबर को तब पता चला, जब उनकी अस्थियां घर पहुंची। खेत्रपाल को उनके अदम्य साहस के लिए वीरता के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च भारतीय पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।